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________________ }પૂજ્ય ગુરૂદેવ કવિલય પં. નાનાસજી મહારાજ જન્મશતાલિદ સ્મૃતિગ્રંથ अणु और स्कंध ये दोनों ही पुद्गलोंकी विशेष अवस्थाओंके नाम हैं। द्वयणुकादि स्कंधोंका विश्लेषण करनेपर अंत में पुद्गलों की अणु अवस्थामें पहुँचते हैं। अणुओंको मिलाने पर पुद्गलोंकी स्कन्ध अवस्थामें पहुँचते हैं । . पुद्गल वह है जिसमें पूरण और गलन ये दोनों संभव हैं। इसीलिए एक दूसरे स्निग्ध, रुक्ष, गुणयुक्त स्कन्धसे मिलता है वह पूरण हैं। एक स्कन्ध से कुछ स्निग्ध, रुक्ष, गुणोंसे युक्त परमाणु विच्छिन्न होते हैं वह गलन है । "पूरयन्ति गलन्तीती पुद्गलाः” पूरण और गलनक्रिया जिसमें है वह पुद्गल हैं । (माधवाचार्य-सर्व दर्शन संग्रह) पुद्गल में स्पर्श, रस, गंध और वर्ण ये चारों ही गुण एक साथ रहते हैं। इन चारोंमें से किसीमें एक, किसीमें दो, किसीमें तीन ऐसा नहीं हो सकता। यह बात सत्य है कि, किसी में एक गुण की प्रमुखता होती है जिससे वह इन्द्रियगोचर हो जाता है और दूसरे गुण गौण होते हैं जिससे इन्द्रिचगोचर नहीं हो पाते। इन्द्रियगोचर नहीं होने से हम किसी गुणका अभाव नहीं मान सकते। आजके वैज्ञानिक हायड्रोजन और नायट्रोजन को वर्ण, गंध और रसहीन मानते हैं। यह कथन गौणता को लेकर है। दूसरी दृष्टि से इन गुणों को सिद्ध कर सकते हैं । जैसे ‘अमोनिया' एकांश हायड्रोजन और तीन अंश नायट्रोजन रहता है। अमोनियामें गंध और रस ये दो गुण हैं। इन दोनो गुणों की नवीन उत्पत्ति नहीं मानते क्योंकि यह सिद्ध है कि असत् की कभी भी उत्पत्ति नहीं हो सकती और सत् कभी भी नाश नहीं हो सकता इसलिए जो गुण अणु में होता है वही स्कन्ध में आता है। हायड्रोजन और नायट्रोजनके अंश से अमोनिया निर्मित हुआ है । इसलिए रस और गंध जो अमोनियाके गुण हैं बे गुण उस अंशमें अवश्य ही होने चाहिए। जो गुप्त गुण थे वे प्रकट हुए हैं। पुद्गलमें चारो गुंण रहते हैं। चाहे वे प्रकट हो या अप्रकट हो । पुद्गल तिन्हों कालोमें रहता है इसलिए सत् है। उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य युक्त है। जैन दृष्टिसे कितनेही पुद्गल स्कन्ध संख्यात प्रदेशोंके, कितनेही असंख्यात प्रदेशोंके और कितने ही अनंत प्रदेशोंके होते हैं। सबसे बड़ा स्कन्ध अनंत प्रदेशी होता है और सबसे लघु स्कन्ध द्विप्रदेशी होता है। अनंत प्रदेशी स्कन्ध एक आकाश प्रदेशमें भी समा सकता है। और वही स्कन्ध संपूर्ण लोक में भी व्याप्त हो सकता है। पुद्गल परमाणु लोक में सभी जगह है। (उत्तराध्ययन अ. ३६-गा. ११) कागज के ढेर को आग लगने पर कागज नष्ट हो जाते हैं और राख उत्पन्न होती है । परन्तु इस उत्पत्ति और विनाशमें अथवा कागजको पर्यायों के नाश और राख की पर्यायों की उत्पत्तिमें परमाणु अपने रुपमें विद्यमान हैं । पर्यायें बदल गई, नाम और रुप-रंग बदल गया परन्तु परमाणु में अन्तर नहीं आया। इसलिए पुद्गल द्रव्य परमाणु के शुद्ध रुप में सदा सर्वदा बना रहता है। परमाणु शब्द रहित है। शब्द की उत्पत्ति दो पुद्गल स्कन्धों के संघर्ष से होती है। परमाणु स्कन्ध से रहित है। इसलिए वह शब्द से भी रहित है । वह एक है तो भी मूर्त हैं क्यों कि उसमें वर्ण, गंध, रस स्पर्श हैं। ये चारों गुण उसके एक प्रदेशमें रहते हैं । इसलिए परमाणु मूर्त है, साकार है। पुद्गल स्कन्धों का निर्माण परमाणुओंके समूह से होता है। यदि परमाणु मूर्त नहीं होगा तो उससे बने हुए पुद्गल स्कन्ध भी मूर्त नहीं हो सकते क्योंकि अमूर्त द्रव्य मूर्तद्रव्य नहीं बना सकता और मूर्त अमूर्त के रुपमें परिणमन नहीं हो सकता क्योंकि एक द्रव्य अपने स्वभाव को छोडकर परभावरुप दूसरे द्रव्यमें परिणत नहीं हो सकता। __ द्रव्यसंग्रहमें आचार्य नेमोचंद्रने लिखा है कि "पुद्गल एक अविभाग परिच्छेद्य परमाणु आकाशके एक प्रदेशको घेरता है। उसी प्रदेशमें अनंतानंत पुद्गल परमाणु भी स्थित हो सकते हैं।" परमाणु के बिभाग नहीं होते, हिस्से नहीं होते, परमाणु परस्पर जुड़ सकते हैं और पृथक् भी हो सकते हैं। किन्तु उसका अंतिम अंश अखंड है। परमाणु शाश्वत् परिणामी, नित्य, स्कंधकर्ता और भेता भी है। परमाणु कारण रुप है, कार्यरुप नहीं । वह अंतिम द्रव्य हैं । परमाणु पुद्गळ का एक विभाग है। कन्धों की स्थिति न्यून से न्यून एक समय और अधिक से अधिक असंख्यात काल है। (भगवती सू ५/७) "स्कन्ध और परमाणु संतति की दृष्टि से अनादि अनंत है और स्थितिकी दृष्टिसे सादि-सान्त है।” (उत्तराध्ययन ३६/१३) अधिक से अधिक असंख्यात माल तरध्यन षद्न्य में पुदगल द्रव्य Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012031
Book TitleNanchandji Maharaj Janma Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChunilalmuni
PublisherVardhaman Sthanakwasi Jain Shravak Sangh Matunga Mumbai
Publication Year
Total Pages856
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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