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________________ कन्हैयालाल डूंगरवाल आजाद होने के बाद संविधान में किये गये प्रावधानों के अनुसार हिन्दी राष्ट्रभाषा हो जानी चाहिए थी पर राज्य भाषा विधेयक लाकर अंग्रेजी को अनन्त काल के लिए चालू रखी है। आज अंग्रेजी उच्च वर्ग की पहचान बन गई है। विद्यार्थी में देश की संस्कृति, जनता के दुःख-दर्द, गरीबी मिटाने का संकल्प कुछ भी नहीं है। तोता रटंत पढ़कर परीक्षा पास करना ही मुख्य उद्देश्य हो गया है। मेरा कहने का अर्थ यह नहीं है कि देश में शिक्षा के क्षेत्र में कुछ भी नहीं हुआ। विद्या, हुनर और विज्ञान के क्षेत्र में काफी कुछ काम हुआ है किन्तु आज की दुनियां के मुकाबले में हम अभी पिछड़े हैं। मैंने जब वकालत शुरू की हाईकोर्ट में तब कानून की पढ़ाई अंग्रेजी में चलती थी। अंग्रेजी हटाओ और भाषाई आंदोलनों के कारण हिन्दी और देशी भाषाओं में काम चलने लगा। आज मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में ७०-८०% काम हिन्दी में होता है किन्तु संविधान में प्रदत्त शक्ति से हिन्दी के प्रयोग की अनुमति मिल गई। जज को हिन्दी में लिखने की स्वतंत्रता तो है पर साथ में अंग्रेजी अनुवाद की अनिवार्यता के कारण सभी अंग्रेजी में ही निर्णय दे रहे हैं, फलस्वरूप कानूनी भाषा का निर्माण नहीं हो रहा है और निर्णय शिक्षा के उद्देश्य - अंग्रेजी में होने से हिन्दी माध्यम के वकीलों को तकलीफ होती है। भाषा का निर्माण किताबें लिखने मात्र से नहीं होता, उपयोग से विद्या, हुनर और विज्ञान होता है। अंग्रेजी साम्राज्यवाद के गुलाम देशों व मातृभाषा होने के देश को आजाद हुए करीब ५५ वर्ष होने आये किन्तु अभी भी कारण ब्रिटेन, अमरीका में अंग्रेजी है, शेष दुनियां में अंग्रेजी नहीं के शिक्षा के बारे में कोई मूलभूत परिवर्तन नहीं हुआ। राज्य व्यवस्था में बराबर है, केवल काम चलाऊ है। शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून और व्यवस्था उसके मूलभूत कर्तव्य हैं। हमलोग विद्या, हुनर और विज्ञान के क्षेत्र में काफी तरक्की कर किन्तु व्यवस्था इन सबमें असफल है। शिक्षा का मूलभूत सिद्धान्त है लेते यदि मातृभाषाओं में पढ़ाई होती, किन्तु अब मामला काफी उलझ कि उसे मातृभाषा में होना चाहिये। देश में भाषावार प्रांतों का गठन इसी गया है। इजराईल में स्कूलों में ४ घंटे पढ़ाई और ४ घंटे हुनर के द्वारा दृष्टि से हआ था कि देश की सभी भाषाएँ विकसित और उन्नत होंगी उत्पादन होता है जिसके कारण स्कूलों में आमदनी हो जाती है। और साथ-साथ राष्ट्रभाषा देश की भाषा होगी, सरकारी कामकाज, जर्मनी, फ्रांस, जापान, रूस आदि सभी देशों में उनकी भाषा में ही विधायक कार्य और शिक्षा के माध्मय के रूप में। संविधान में प्रावधान शिक्षा दी जाती है। है कि सबको शिक्षा दी जायेगी, कोई भेदभाव नहीं होगा। समानता होगी शिक्षा का उद्देश्य है कि शिक्षित युवजन चौड़ी छाती और ऊँचा किन्तु आज अमीरों, गरीबों के लिए अलग-अलग व्यवस्था है। सिर लेकर चलें। उनमें स्वाभिमान, स्वदेशी व मानवतावादी भाव वस्तुतः साधारण स्कूलों में भी अंग्रेजी का बोलबाला हो गया है। हो। आज हम जाति, धर्म में बंटे हैं। देश में मनुष्य और हिन्दुस्तानी नतीजा है कि विद्यार्थी को न अंग्रेजी आ रही है, न अपनी भाषा। नये बहुत कम हैं। विद्यार्थी और शिक्षकों में पारिभाषिक शब्द, व्याकरण और शब्द रचना राष्ट्रीय आंदोलन में देशी भाषा, भूषा, भवन चलते थे। अब मीडिया की भारी त्रुटियाँ रहती हैं। उच्च मध्यम श्रेणी के जीवन व उपभोक्तावाद का प्रचार कर रहा है। देश बुनियादी शिक्षा, हिन्दू संस्कृति की शिक्षा, मुस्लिम मदरसे, की समस्याओं के समाधान के लिए उसका उपयोग नहीं होता। कान्वेन्ट स्कूल चलते हैं। कान्वेन्ट स्कूल आम लोगों में भी रूतबे देर से सही पर शिक्ष को राजनीति से ऊपर उठकर सर्वानुमति की पहचान बन रहे हैं। जिन लोगों के माँ-बाप अंग्रेजी बोलते हैं से बिना भेदभाव के उपलब्ध कराई जानी चाहिये तभी देश का उनके बच्चों को बचपन से ही अंग्रेजी में ढाला जाना है। भविष्य उज्ज्वल होगा। बच्चा भाषा के बोझ से दबा रहता है। आज तो देश में सब तरह की पढ़ाई हिन्दी में व अन्य भाषाओं में हो सकती है किन्तु देश अधिवक्ता, पूर्व विधायक, नीमच (म० प्र०) विद्वत खण्ड/९८ शिक्षा-एक यशस्वी दशक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012030
Book TitleJain Vidyalay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year2002
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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