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अशोक बोथरा
वाली शिक्षा ही वास्तविक शिक्षा है जो मानवीय मूल्यों की समझ लोगों में पैदा कर सके। तकनीकी शिक्षा मनुष्य को इन गुणों के अभाव में रोबोट के अलावा कुछ और नहीं बनाती। अत: शिक्षाप्रेमियों, शिक्षण संस्थाओं और शिक्षकों को तकनीकी शिक्षा के साथ-साथ मानवीय मूल्यों के स्तम्भ विनय, श्रद्धा, स्नेह, आत्मसम्मान आदि गुणों के विकास पर निरन्तर ध्यान देना चाहिए। ____ मैं आशा रखता हूँ कि हमारे विद्यालयों के शिक्षक हमारे बच्चों में इन सभी गुणों को विकसित करने में समर्थ रहेंगे जिससे हम दयावान, धैर्यवान, पुरुषार्थी लोगों को निरन्तर समाज सेवा हेतु अग्रसर पायेंगे। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए जैन धर्म में सम्यक् दर्शन, सम्यक् चारित्र, सम्यक् ज्ञान पर बल दिया गया है। स्थानकवासी जैन सभा ने शिक्षा प्रचार और प्रसार हेतु तीन विद्यालयों की स्थापना की है और कॉलेज की स्थापना के लिए प्रयासरत है। यही कारण है कि सभा की कौस्तुम्भ जयंती के प्रारंभ के साथ श्री जैन विद्यालय, हावड़ा के गौरवमय दशक को भी मनाने का आयोजन हुआ है। ईश्वर हमें ऐसी शक्ति दे कि हम निरंतर सेवा की ओर अग्रसर हों।
सहमंत्री
श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा
शिक्षा का स्वरूप शिक्षा का उद्देश्य केवल धन अर्जित करना नहीं है बल्कि इसका मूल उद्देश्य मनुष्यता का विकास करना है। विद्या विनय आदि गुणों से ओत-प्रोत होनी चाहिए। विनयहीन व्यक्ति कितना भी बड़ा विद्वान क्यों न हो वह समाज में न अपना स्थान बना पाता है, न लोग उससे किसी प्रकार का लाभ पाते हैं। उसकी स्थिति पलाश के उस पुष्प के समान होती है जो देखने में बहुत ही सुन्दर परन्तु गन्धहीन होता है। समाज में ऐसे विद्वानों से स्वार्थ पनपता है और सामान्य वर्ग उनकी विद्वता के प्रकाश से वंचित रह जाता है। ऐतिहासिक ग्रन्थों में भी इसका उल्लेख मिलता है कि सभी गुणों के होते हुए भी विनय गुण के अभाव में व्यक्ति को या तो अपमान या पराजय वरण करना पड़ा है। महाभारत युद्ध की पूरी तैयारी के बाद अर्जुन और दुर्योधन दोनों एक साथ श्रीकृष्ण के यहाँ सहायता माँगने पहुँचे। दुर्योधन अभिमान के कारण उनके सिरहाने और अर्जुन श्रद्धावश पैर की तरफ बैठे। दुर्योधन ने श्रीकृष्ण की सेना माँगी और अर्जुन ने निहत्थे श्रीकृष्ण को। अर्जुन को श्रद्धा और विनय के कारण सर्वशक्तिमान का आशीर्वाद प्राप्त हुआ और वे जयी हुए। स्वाभिमान और विनय दो शब्द हैं इनका मेल यदि किसी व्यक्ति के चरित्र में हो जाय, तो वह आदर्श पुरुष हो जाता है और ऐसे व्यक्तित्व विरले होते हैं। शिक्षा विपत्ति में धैर्य, संयम, विनय आदि गुणों को देने में समर्थ होनी चाहिए। चरित्र निर्माण को बढ़ावा देने
सभा खण्ड/१३
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
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