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पुष्करलाल केडिया
देश को स्वतन्त्र हुए ५४ वर्ष हो गये लेकिन नागरिकों के समान व्यवहार का चिंतन करें तो ऐसा लगता है हम आजादी के पूर्व जहाँ थे आज भी वहीं है। राष्ट्र की नजर आज की नयी पीढ़ी पर है और इसके निर्माण की जिम्मेवारी हम पर है।
२. किताब कापी पर पुस्तकालय की तरह नम्बर लगाना : बच्चे अपने कापी किताब के कवर पर सामने ही स्टीकर लगाकर विषय का नाम लिख लेते हैं। समय सारणी के अनुसार कापी किताब छाँटने के लिए हर कापी किताब को उलट-पुलट कर
देखना पड़ता है। यदि पुस्तकालय की तरह किनारे की तरफ भी नम्बर लगाकर सूची बना ली जाये तो कापी किताब छाँटने में सुविधा
शिक्षा प्रेमियों के नाम एक पैगाम रहेगी। कोई कापी किताब न मिलने पर भी उसे उसकी जानकारी
हो जायेगी।
राष्ट्र की स्वाधीनता की स्वर्ण जयन्ती धूमधाम से हमने मनाई देश को स्वतन्त्र हुए चौवन वर्ष हो गये। स्वाधीनता दिवस आगे भी इसी प्रकार मनाते रहेंगे। इन समारोहों में स्वतन्त्रता की महत्ता एवं कर्तव्यबोध के ओजस्वी भाषण सुनने को मिलेंगे। लेकिन यदि नागरिकों के समान व्यवहार पर चिन्तन करें तो ऐसा लगता है हम आजादी के पूर्व जहाँ थे वहीं आज भी हैं। आम नागरिकों में सफाई, स्वास्थ्य, सदाचार में विशेष बदलाव नजर नहीं आ रहा है।
हम सब किसी न किसी रूप से शिक्षा क्षेत्र से जुड़े हैं। शिक्षक, प्रबन्धकारिणी सदस्य अभिभावक दानदाता - सामाजिक कार्यकर्तासहयोगी सभी का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सम्बन्ध शिक्षा से है।
विद्यालय चरित्रवान इन्सान निर्माण के केन्द्र हैं । चरित्र निर्माण की भूमिका में कई ऐसी छोटी-छोटी बाते हैं, जिन पर शिक्षा प्रेमियों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। बीज छोटा होता है पर वही बीज विराट रूप ग्रहण करता है। इसी तरह बात छोटी नजर आयेगी पर उसका असर विराट नजर आयेगा ।
विद्वत खण्ड / ४६
१. कागज कलम पास रखना विद्यालयों में जब भी किसी के भाषण- उद्बोधन आदि का कार्यक्रम होता है, बच्चों को सभागार में एकत्र होने की सूचना दी जाती है एवं बच्चे कागज कलम लिए बिना सभागार में उपस्थित हो जाते हैं विशिष्ट व्यक्ति अपने विचार प्रकट करके चले जाते हैं पर उसका कोई भी अंश बच्चे द्वारा नोट नहीं किया जाता है। कुछ ही दिनों में वह सब कुछ भूल जाता है। यही आदत उसके जीवन का एक अंग बन जाती है। प्रवचन पंडालों आदि कार्यक्रमों में हजारों-हजारों व्यक्ति सुनने के लिए एकत्र होते हैं पर कुछ एक को छोड़कर किसी के पास कागज कलम दिखाई नहीं देता ।
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यही आदत बड़े होने पर फाइलों, रजिस्टरों में किनारों पर विवरण लिखने का मार्ग प्रशस्त करेगी। घरों में सामानों को सुचारू रूप से लिखकर रखा जा सकेगा।
३. समाचार पत्र पत्रिकाओं से कटिंग काटना : समाचार पत्रपत्रिकाओं को पढ़ने के बाद अपने मन पसन्द के चुटकुले, पहेलियाँ, कविताएँ, गीत, कार्टून, लेख आदि काटकर रखने का अभ्यास कराना चाहिए। अच्छी-अच्छी रुचिकर बातें पढ़ने के बाद जल्द ही भूल जाते हैं। पुरानी कापियों पर भी कटिंग चिपकाई जा सकती है। इस विधि से अपनी पसन्द का अनमोल संग्रह हो जायेगा।
४. हाबी ( रुचि) अनुसार संग्रह : बच्चों को उनकी मन पसन्द चीज को हाबी (रुचि अनुसार संग्रह के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। पोस्टेज स्टाम्प, फर्स्ट डे कवर, सिक्के, फोटो, ऑटोग्राफ आदि । किसी भी विषय में रुचि पैदा होने से बच्चे का मन एक नये लक्ष्य की प्राप्ति के लिए लगा रहेगा। ५. सफाई व्यवस्था विद्यालय में कूड़ा करकट डालने की निश्चित स्थान पर समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। देखने में आता है। कि बच्चे टिफिन के समय में टिफिन करके कागज, दोना आदि इधर-उधर डाल देते हैं। बाद में सफाई कर्मचारी उन्हें एकत्र कर फेंकता है। "जहाँ खाओ वहीं गिराओ" एक आदत सी बन जाती है सड़क पर कूड़ा मत फेंको "जहाँ तहाँ मत थूको" के नारों का
शिक्षा एक यशस्वी दशक
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