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खैर! लड़कियों की शिक्षा का प्रतिशत जो चाहे रहा हो, उनकी और अंग्रेजी पर उनकी पकड़ से बेहद प्रभावित हैं। मेलों के स्थिति निश्चित रूप से परिवर्तित है। वे लड़कों के साथ कदम-से- आयोजकों का मानना है कि देश की प्रतिभाओं पर आरक्षण की कदम मिलाकर शिक्षित हो रही हैं और कहीं-कहीं तो उन्हें पीछे पड़ती मार ने उन्हें विदेशों की ओर भागने के लिए मजबूर किया छोड़कर आगे निकल रही हैं। उनमें आत्मबोध का विकास हुआ है। है। वहाँ छात्र-छात्राओं को सब्ज़बाग नहीं दिखाये जाते बल्कि प्रशिक्षित नारी ने व्यावसायिक योग्यताएँ अर्जित की हैं। उसने रोजगारोन्मुख शिक्षा प्रदान की जाती है। वैश्वीकरण के दौर में आर्थिक स्वतन्त्रता का सुख भोगा है। उसमें निर्णय लेने का साहस प्रतिभा-पलायन का रोना बेमानी है। पैदा हुआ है। आत्मरक्षा के लिए जूडो-कराटे के शिक्षण ने कम्प्यूटर के उदय ने शिक्षा के क्षेत्र में हलचल मचा दी है। इस निपुणतापूर्वक आक्रामक होने के तेवर भी पैदा किये हैं। क्रांतिकारी घटना ने संपूर्ण विश्व को एक ग्राम में तब्दील कर दिया सशक्तिकरण के दौर में संतुलित, दूरदर्शी एवं विवेकसम्पन्न बोध ही है। समय की रफ्तार के साथ चलने के लिए 'सरवाइवल ऑफ द नारी-छवि को गरिमा प्रदान करेगा एवं शिक्षा के नये प्रतिमान फास्टेस्ट' की नीति ने चाहे-अनचाहे कम्प्यूटर-शिक्षण को अनिवार्य स्थापित करने में सशक्त भूमिका निभायेगा।
बना दिया है। नेटवर्क के प्रवेश ने शिक्षण-प्रशिक्षण की नई प्रणालियाँ शिष्टाचार में परिणत होते भ्रष्टाचार, बाजारवाद और आरक्षण के ईजाद की हैं। यह सच है कि कम्प्यूटर घर बैठे अल्प समय और भँवर में फँसा विद्यार्थी दिग्भ्रमित है। राजनीति में उसका इस्तेमाल अल्प श्रम के माध्यम से असीम ज्ञान उपलब्ध करवा सकता है, किया जा रहा है, उसे भागीदार नहीं बनाया जा रहा। वह डरा-डरा, पर, इसके लिए मशीन के सामने बैठने की मानसिकता, व्यवस्था सहमा-सहमा है, कभी एक दिशा में दौड़ रहा है तो कभी दूसरी और स्थान की अनुकूलता की कवायद से गुजरना पड़ता है। सोयेदिशा में। एक के बाद एक प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षाओं में बैठता, चारों बैठे- किसी भी स्थिति में पुस्तक की उपलब्धता और सुविधा का तरफ हाथ-पाँव मारता अपने लिए स्थान सुरक्षित करना चाहता है। सुख अलग ही होता है। मनुष्य और मनुष्य के बीच कहे-अनकहे दो-तीन तरह के पाठ्यक्रमों (कोर्सेज़) का बोझ लेकर चलने के जो संवाद होता है वह मनुष्य और यंत्र के बीच संभव नहीं। इसी कारण एक के प्रति भी पूरी तरह समर्पित नहीं हो पाता एवं संदर्भ में मैं रमशे दवे का कथन उद्धृत करना चाहूँगी- "स्लेट चाहे परीक्षाफल मनोनुकूल नहीं हो पाता। कोचिंग सेंटर एवं स्कूल- कम्प्यूटर के परदे में बदल जाए, किताबें इन्टरनेट और वेबसाइटों कॉलेज की दुहरी मार झेलते हुए विद्यार्थी की मानसिकता रुग्ण हो का रूप धारण कर लें और शिक्षक चाहे दूरदर्शन या प्रौद्योगिकी जाती है। कभी वह आक्रामक हो उठता है तो कभी दयनीय। कभी संसाधनों के एंकर्स में बदल जाएँ और मशीन, मशीन की पराकाष्ठा वह शिक्षक के अनुपस्थित होने पर कक्षाएँ न होने की शिकायत भले हो जाए, मगर द्रष्टा नहीं हो सकती। इसलिए मनुष्य की भूमिका करता है तो कभी शिक्षक से गुहार लगाता है कि बिना पढ़ाये ही दृष्टि और द्रष्टा की भूमिका है, विचार और ज्ञान की भूमिका है। छोड़ दिया जाये। कभी पाठ्यपुस्तक न लाने पर विद्यार्थियों का ढीठ इसलिए आशा की जा सकती है कि चाहे शिक्षा मनुष्य का भविष्य बने रहना और कभी किसी भी गल्ती पर लज्जित होने के बजाय हो या न हो, मनुष्य शिक्षा का भविष्य अवश्य होगा ("इक्कीसवीं पूरी कक्षा का ठहाके लगाना - यह आम दृश्य है। न जाने विद्यार्थी शती में शिक्षा का भविष्य"-सितम्बर २००१, वागर्थ)।" स्वयं पर हँसते हैं या शिक्षक पर। और कभी किसी शिक्षिका को शिक्षा बहुआयामी प्रक्रिया है। इसमें ज्ञान के साथ श्रम एवं देखकर 'लाल छड़ी मैदान खड़ी.....', 'ओ मनचली कहाँ शारीरिक स्वास्थ्य के साथ नैतिक उन्नयन का समन्वय आवश्यक है। चली.....' जैसे फिल्मी गीतों की कड़ियों के माध्यम से फिकरे जानकारी या सूचनात्मक ज्ञान को ही शिक्षा का पर्याय न समझकर, कसते हुए वे अपने दुस्साहसी व्यक्तित्व का आतंक जमाते देखे जीवन के लिए, जीवन के माध्यम से शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिये। जाते हैं। उच्च शिक्षा के बावजूद भी बेरोजगारी सुरसा की तरह मुँह क्या ये संदर्भ फिर गाँधी की ओर मुड़ने का संकेत नहीं देते? बाये खड़ी रहती है और बहुत बार आतंकवाद की राह पर ले
वृन्दावन गार्डेन्स चलती है। किसी अखबार में एक खबर छपी थी कि भारतीय छात्रों
९८, क्रिस्टोफर रोड, कोलकाता-७०० ०४६ को लुभाने के लिये ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों ने हाल ही में दिल्ली में मेले आयोजित किये हैं। इन मेलों का उद्देश्य है कि ब्रिटेन की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा और उसकी विविधता को भारतीय छात्रा के सामने रखना। ब्रिटेन के विश्वविद्यालय भारतीय छात्रों के मेहनती स्वभाव
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
विद्वत खण्ड/३५
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