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दीपक कौर, नवम ब
की माँ रात कासराजा ने साल से कहा,
पास में बैठी थी उसने यह सब सुना। 'अज' अर्थात् 'व्रीहि' ऐसा उसे भी याद था। शर्त में अपना पुत्र हार जायेगा इस भय से पर्वत की माँ रात को राजा के पास गयी और पूछा, "राजन्! 'अज' का क्या अर्थ है?" वसुराजा ने संबंधपूर्वक कहा, "अज का अर्थ 'व्रीहि' है।" तब पर्वत की माँ ने राजा से कहा, "मेरे पुत्र ने अज का अर्थ बकरा कह दिया है, इसलिए आपको उसका पक्ष लेना पड़ेगा। आपसे पूछने के लिए वे आयेंगे।" वसुराजा बोले, "मैं असत्य कैसे कहूँ? मुझसे यह नहीं हो सकेगा।" पर्वत की माता ने कहा, "परंतु यदि आप मेरे पुत्र का पक्ष नहीं लेंगे, तो मैं आपको हत्या का पाप दूंगा।" राजा विचार में पड़ गया-"सत्य के कारण मैं मणिमय सिंहासन पर अधर में बैठता हूँ। लोकसमुदाय का न्याय करता हूँ। लोग भी यह जानते हैं कि राजा सत्य गुण के कारण सिंहासन पर अंतरिक्ष में बैठता है। अब क्या करूँ? यदि पर्वत का पक्ष न लूँ तो ब्राह्मणी मरती है, और यह तो मेरे गुरु की स्त्री है।" लाचार होकर अंत में राजा ने ब्राह्मणी से कहा, "आप खुशी से जाइये। मैं पर्वत का पक्ष लूँगा।' ऐसा निश्चय कराकर पर्वत की माता घर आयी। प्रभात नारद, पर्वत और उसकी माता विवाद करते हुए राजा के पास आये। राजा अनजान होकर पूछने लगा-"पर्वत, क्या है?" पर्वत ने कहा, "राजाधिराज! अज का अर्थ क्या है? यह बताइये।" राजा ने नारद से पूछा-"आप क्या कहते हैं?" नारद ने कहा-" 'अज' अर्थात् तीन वर्ष के 'व्रीहि', आपको क्या याद नहीं है?" वसराजा ने कहा- "अज का अर्थ है बकरा, व्रीहि नहीं।" उसी समय देवता ने उसे सिंहासन से उछालकर नीचे पटक दिया; वसु कालपरिणाम को प्राप्त हुआ।
इस पर से यह मुख्य बोध मिलता है कि हम सबको सत्य और राजा को सत्य एवं न्याय दोनों ग्रहण करने योग्य हैं।
श्री जैन विद्यालय, कोलकाता
सत्य सामान्य कथन में भी कहा जाता है कि सत्य इस 'सृष्टि का आधार' है; अथवा सत्य के आधार पर यह 'सृष्टि टिकी है।' इस कथन से यह शिक्षा मिलती है कि धर्म, नीति, राज और व्यवहार ये सब सत्य द्वारा चल रहे हैं और ये चार न हों तो जगत का रूप कैसा भयंकर हो? इसलिए सत्य 'सृष्टि का आधार' है, यह कहना कुछ अतिशयोक्ति जैसा या न मानने योग्य नहीं है।
वसुराजा का एक शब्द असत्य बोलना कितना दु:खदायक हुआ था, उसे तत्त्वविचार करने के लिए मैं यहाँ कहता हूँ।
वसुराजा, नारद और पर्वत ये तीनों एक गुरु के पास विद्या पढ़े थे। पर्वत अध्यापक का पुत्र था। अध्यापक चल बसा। इसलिए पर्वत अपनी माँ के साथ वसुराजा के राज्य में आकर रह रहा था। एक रात उसकी माँ पास में बैठी थी, और पर्वत तथा नारद शास्त्राभ्यास कर रहे थे। इस दौरान में पर्वत ने 'अजैर्यष्टव्यम्' ऐसा एक वाक्य कहा। तब नारद ने कहा, "अज का अर्थ क्या है, पर्वत?" पर्वत ने कहा, "अज अर्थात् बकरा।" नारद बोला, "हम तीनों जब तेरे पिता के पास पढ़ते थे तब तेरे पिता ने तो 'अज' का अर्थ तीन वर्ष का 'व्रीहि' बताया था; और तू उलटा अर्थ क्यों करता है?" इस प्रकार परस्पर वचन-विवाद बढ़ा। तब पर्वत ने कहा, "वसुराजा हमें जो कहें वह सही।" यह बात नारद ने भी मान ली और जो जीते उसके लिए अमुक शर्त की। पर्वत की माँ जो
विद्यालय खण्ड/६४
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
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