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आशुतोष शुक्ला, पंचम ख
साक्षरता
किसी देश की अशिक्षा उसकी उन्नति में एक महान् रुकावट है। जब तक कोई देश पूर्ण शिक्षित नहीं हो जाता तब तक उसकी सम्यक् उन्नति नहीं हो सकती। संसार में शिक्षित होने के उपरान्त ही किसी देश ने पूर्ण उन्नति की है। भारत के पिछड़े रहने का एक प्रमुख कारण यहाँ की अशिक्षा है। विदेशी शासन के कारण यहाँ की जनता को शिक्षित करने का अत्यल्प प्रयास किया गया। यह एक अत्यन्त आश्चर्यजनक विषय है कि १९५१ की जन गणना के अनुसार भारत में साक्षरों की संख्या लगभग साढ़े सोलह प्रतिशत थी। इनमें से कुछ व्यक्ति ऐसे हैं जो किसी प्रकार हस्ताक्षर कर सकते हैं। अवशिष्ट तीस करोड़ व्यक्ति अशिक्षित हैं।
निरक्षरता - एक महान् अभिशाप: यदि गम्भीरतापूर्वक विचार किया जाय तो ज्ञात होगा कि भारत में प्राचीनकाल में भी साक्षरता कुछ व्यक्तियों तक ही सीमित थी शिक्षा पर ब्राह्मणों का आधिपत्य था तथा उन्होंने शुद्रों को जो बहुत बड़ी संख्या में थेशिक्षा के अधिकार से वंचित रखा था। उन पर तो यहाँ तक प्रतिबन्ध लगाया था कि यदि वे वेद-मन्त्र को सुन लें तो उनके कान में शीशा पिघला कर डाल दिया जाय ।
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प्राचीन भारत शिक्षा के क्षेत्र में उन्नत था, पर सभी लोग लाभान्वित नहीं हो पाते थे। मध्यकाल में मुस्लिम शासकों ने भी शिक्षा के प्रचार पर ध्यान नहीं दिया। अंग्रेजों के युग में भारतवर्ष में साक्षरों की संख्या ५ से ७ प्रतिशत तक थी । इधर साक्षरों की संख्या मे जो वृद्धि हुई है, उसका प्रमुख कारण देश की स्वतन्त्रता
शिक्षा - एक यशस्वी दशक
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के उपरान्त राष्ट्रीय सरकार द्वारा शिक्षा का प्रचार-प्रसार है। इस प्रकार भारतवर्ष में निरक्षरता एक महान् अभिशाप बनकर यहाँ की प्रगति में बाधक रही है। जनता जब तक साक्षर नहीं हो जाती वह अपने अधिकार एवं कर्तव्य को नहीं समझ सकती किसी भी देश के नागरिकों का अज्ञानान्धकार में पड़े रहने का अर्थ देश को प्रगति के पथ से वंचित करना है।
साक्षरता का प्रचार विगत् १९३७ई० में जब देश के कई प्रान्तों में प्रथम बार राष्ट्रीय सरकार की स्थापना हुई तो निरक्षरता को दूर करने के लिए प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्था की गयी, जिसका प्रमुख लक्ष्य देश से निरक्षरता को दूर भगाना था। यह साक्षरता आन्दोलन उन दिनों जोर-शोर से चल पड़ा था और प्रायः प्रत्येक गाँव में सायंकाल के समय प्रौढों को साक्षर बनाने का कार्य होता था। सरकार ने इसके लिए काफी रुपये भी खर्च किये और प्रत्येक शिक्षक का मासिक वेतन देने के अतिरिक्त मौकों के लिए पुस्तकालय खोलने की भी व्यवस्था की इन पुस्तकालयों में प्रौदों के उपयोग के लिए विशेष प्रकार की पुस्तकें प्रकाशित की गयीं।
साक्षरता- देशोन्नति का साधन : इस प्रकार रात्रि पाठशालाओं के द्वारा कई लाख व्यक्ति साक्षर बनाये गये और इस कार्य में देश के छात्र-छात्राओं ने भी सेवा की भावना से सहयोग किया। जिस क्रम में साक्षरता आन्दोलन प्रारम्भ किया था, यदि वह क्रम अब तक बना रहता तो देश के शत्-प्रतिशत लोग साक्षर हो गये होते। अभी भारतवर्ष में साक्षरों की संख्या ६२ प्रतिशत है।
साक्षरता शिक्षा का प्रथम सोपान है। अविद्यान्धकार में पड़े रहने से कोई भी देश उन्नति नहीं कर सकता। शिक्षा के द्वारा ज्ञान-वृद्धि होती है तथा वे स्वयं अपनी उन्नति का मार्ग परिष्कृत करते हैं। अतः देश की भलाई को दृष्टिगत रखते हुए सभी लोगों को साक्षर बनाने की चेष्टा अवश्य करनी चाहिए। हम स्वतंत्र भारत के नागरिकों का कर्तव्य है कि हर प्रकार से निरक्षरता को दूर करने में सहयोग दें।
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