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0 अमर कुमार शाही, १०-ब
गोविन्द सिंघी, सप्तम ग
पैसों की माया
शर्म का मोल नहीं, ईमान का मोल नहीं, सच्चाई का मोल नहीं, सिर्फ.....सिर्फ पैसे का मोल है । यह पैसे की माया है, आदमी न सोचता है, न समझता है, सिर्फ पैसे की ओर भागता है, दौलत की आकांक्षा रखता है। पैसे की खातिर, हत्या, डकैती व चोरी करता है । माँ-बाप व परिवार का त्याग करता है, रिश्ते नातों का परित्याग करता है । यह पैसे की माया है, दोस्त दुश्मन बन जाते हैं। प्यार शत्रु हो जाता है, सिर्फ पैसे की खातिर । यह दुनिया बदल जाती है यह पैसे की माया है।
जंगल में वन डे जंगल में वन डे क्रिकेट का, आयोजन था भारी। सभी जानवरों ने की जमकर, मैचों की तैयारी।
कप्तानी का भार शेर ने, पहले पहल उठाया। उद्घाटन का मैच जीत कर,
उसने नाम कमाया । शतक जमाकर बड़ी शान से, हाथी जी मुस्काये। चीते की इक तेज गेंद ने, तीनों विकेट उड़ाये।
पुरस्कार बल्लेबाजी का, कंगारू ने पाया । छक्के चौके से ही उसने,
दोहरा शतक बनाया। आँखों देखा हाल, रेडियो से भी गया सुनाया। जंगल टी.वी. ने भी सारे, मैचों को दिखलाया।
विद्यालय खण्ड/४६
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
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