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________________ - ज्योति श्रीमाल, नवम् अ देवरानी झट बोलीनहीं, सचिन-सा क्रिकेटर बनायेंगे। धीरे-धीरे वक्त बीतने लगा, पड़ने लगी फिर संबंधों में दरार, जब आ गया मन में अहंकार, पहली कक्षा का परिणाम आया था। जेठानी का पुत्र प्रथम आया था। देवरानी की बेटी ने करिश्मा दिखलाया, तीनों सेक्शनों में सबसे ऊँचा स्थान पाया। परन्तु निज सुत कक्षा में पंचम था, क्योंकि वह क्रिकेट टीम का कैप्टन था। जेठानी ने रसगुल्लों का पैकेट मँगवाया था, संग रसगुल्लों के टॉफी का रौब दिखाया था, देवरानी ने समोसों का भोज दिया था, समोसों के संग बेटी का रिज़ल्ट भेज दिया था। उसके बेटे का कप स्कूल ने रख लिया था। सिर्फ रिज़ल्ट और एक तोहफा भेज दिया था। फिर नियति बन गयी थी दिल ही दिल में घुलना, क्योंकि होने लगी थी बात-बात में तुलना। भाइयों में भी पड़ गयी दरार, कारण था पत्नियों का अहंकार; दरार का हुआ यह परिणामएक परिवार के हो गये तीन मकान। बेटा इस वर्ष सारे स्कूल में प्रथम था। यदि न पड़ी होती रिश्तों में दरार; तो आज मिलता उसे सबका प्यार। छीन लिया अहंकार नेबड़ों का दैव दुर्लभ आशीर्वाद ।। अहंकार का परिणाम बेटे ने पूछा-माँ क्यों नहीं चलती हो चाचा-चाची के पास, याद बहुत आती है दादा दादी की। माँ की आँखें बरसने लगीं, बीती बातें याद आने लगीं। उत्तर दिया-बेटा थोड़ा और वक्त निकल जाने दे। तेरा सालाना रिज़ल्ट तो आने दे।। बेटे का चेहरा कुम्हला गया, बैट बॉल उठाया और चला गया। माँ को याद आने लगा अपना वह सुखी संसार। हाँ, कभी था उसका भी हँसता खेलता संयुक्त परिवार, बीती घड़ियाँ याद आने लगीं; अँखियाँ भर के बहने लगीं। उसके गृहप्रवेश पर जेठानी ने बढ़कर गले लगाया था, देवरानी के आगमन पर स्वयं उसने इस रस्म को निभाया था, जेठानी में बड़ी बहन का रूप समाया था। देवरानी में अपनी सखी को पाया था। कैसे मिलकर मनाते थे दीवाली, रंगों की फुहार लेकर आती थी होली, पुत्र जन्म पर सारा परिवार खिलखिलाया था। सास ससुर का मानो बचपन लौट आया था। पहले जेठानी ने ही तो इसके मुँह से 'माँ' सुना था। देवरानी ने भी कितना सुंदर सपना बुना था। गोद में लेकर भाभी बोली थींभई इसे तो इंजिनियर बनायेंगे, विद्यालय खण्ड/४८ शिक्षा-एक यशस्वी दशक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012030
Book TitleJain Vidyalay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year2002
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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