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________________ लैमनेड, सोडा और बर्फ का सेवन नहीं करना चाहिये क्योंकि * सभा में जाते समय अपने पैरों का किसी दूसरे से स्पर्श न हो इनसे संसर्गजन्य रोग आदि आने की बहुत सम्भावना है। जाये, इसका ध्यान रखें। अगर भूल से किसी के पैर लग जाये उत्तेजक पदार्थों का सेवन कदापि न करें। तो उससे हाथ जोड़कर क्षमा माँगें। मिठाई, नमकीन, बिस्कुट, दूध, दही, मलाई, चाट आदि बाजार * सभा में बैठे हुए मनुष्यों के बीच में जूते पहनकर न चलें। सभा की चीजों को नहीं खाना चाहिये क्योंकि दुकानदार लोभवश में भाषण या प्रश्नोत्तर करना हो तो सभ्यतापूर्वक करें। सभा में स्वास्थ्य और शुद्धि की ओर ध्यान नहीं देते जिससे बीमारियाँ अथवा पढ़ने के समय बातचीत न करें। होने की सम्भावना रहती है। * सबको अपने प्रेम भरे व्यवहार से संतुष्ट करने की कला सीखें। * बीड़ी, सिगरेट, भाँग, चाय आदि नशीली चीजों का सेवन कभी * कभी प्रमाद में उद्दण्डता न करें। न करें। * पैर, सिर और शरीर को बार-बार हिलाते रहना आदि आदतें * अन्न और जल के सिवा किसी और चीज की आदत नहीं बुरी हैं, इससे बचें। डालनी चाहिये। ___ * कभी किसी का अपमान और तिरस्कार न करें। कभी किसी * दाँतों से नख नहीं काटना चाहिये। दातुन कुल्ले आदि करने के का जी न दुखायें। समय को छोड़कर अन्य समय मुँह में अँगुली नहीं देनी चाहिये। * शौचाचार. सदाचार और सादगी पर विशेष ध्यान रखें। प्रात:काल उठते ही जल का सेवन अवश्य करें। यह अमृत * अपनी वेश-भूषा अपने देश और समाज के अनुकूल तथा सादा के समान लाभकारी है। रखें। भड़कीले फैशनदार और शौकीनी के कपड़े न पहनें। * पुस्तक के पन्नों को अँगुली पर थूक लगा कर नहीं उलटना ___ * इत्र, फुलेल, पाउडर और चर्बी से बना साबुन, वैसलिन आदि चाहिये। न लगायें। * किसी की भी जूठन खाना और किसी को खिलाना निषिद्ध है। * जीवन खर्चीला न बनायें अर्थात अपने रहन-सहन, खान-पान, * रेल आदि के पाखाने के नल का अपवित्र जल मुँह धोने, कुल्ले पोशाक-पहनावे आदि में कम से कम खर्च करें। करने या पीने आदि के काम में कदापि न लेना चाहिये। * शरीर के कपड़ों को साफ तथा शुद्ध रखें। * कभी झूठ न कहें, सदा सत्य भाषण करें। कभी किसी की कोई * शारीरिक और बौद्धिक बल बढानेवाले सात्विक खेल खेलें। भी चीज न चुरावें। परीक्षा में नकल करना भी चोरी ही है तथा * जूआ, ताश, चौपड़, शतरंज आदि प्रमादपूर्ण खेल न खेलें। नकल में मदद देना भी चोरी करना है। इससे सदा बचना टोपी और घड़ी का, फीता, मनीबैग, हैंडबैग, बिस्तरबंद, चाहिये। कमरबंद और जूता आदि चीजें यदि चमड़े की बनी हों तो उन्हें * माता-पिता-गुरु आदि बड़ों की आज्ञा का उत्साह पूर्वक पालन काम में न लेवें। करें। बड़ों की आज्ञा पालन से उनका आशीर्वाद मिलता है * बुरी पुस्तकें और गंदा साहित्य न पढ़ें। जिससे लौकिक और पारमार्थिक उन्नति होती है। * अच्छी पुस्तकों को पढ़ें और धार्मिक सम्मेलनों में जायें। गीता, * किसी से लड़ाई न करें, किसी को गाली न बकें। अश्लील गंदे रामायण आदि धार्मिक ग्रन्थों का अभ्यास अवश्य करें। शब्द उच्चारण न करें। किसी से भी मार-पीट न करें। कभी * पाठ्य ग्रन्थ अथवा धार्मिक पुस्तकों को आदरपूर्वक ऊँचे आसन रूठे नहीं और जिद्द न करें। पर रखें। भूल से भी पैर लगने पर उन्हें नमस्कार करें। * कभी क्रोध न करें। दूसरों की बुराई और चुगली न करें। * अपना ध्येय सदा उच्च रखें। अध्यापकों एवं अन्य गुरुजनों की कभी हँसी दिल्लगी न उड़ायें प्रत्युत उनका आदर सत्कार करें और जब अध्यापक पढ़ाने के * अपने कर्तव्य पालन में सदा उत्साह तथा तत्परता रखें। किसी लिए आयें और जायें तब उनका खड़े होकर नमस्कार करके भी काम को कभी असम्भव न मानें, क्योंकि उत्साही मनुष्य के सम्मान करें। लिये कठिन काम भी सुगम हो जाते हैं। * सभा में सभ्यता से आज्ञा लेकर नम्रतापूर्वक चलें, किसी को नीना * अपना प्रत्येक कार्य स्वयं करें। यथासम्भव दूसरे से अपनी सेवा * लांघकर न जायें। न करायें। विद्यालय खण्ड/२० शिक्षा-एक यशस्वी दशक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012030
Book TitleJain Vidyalay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year2002
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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