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________________ ० अजय डागा छोटी-छोटी पर आवश्यक बातें * सबको सूर्योदय से पहले उठना चाहिये। * उठते ही भगवान का स्मरण करना तथा त्वमेव माताच पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव, त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव, इस प्रकार स्तुति करनी चाहिये। * अपने से बड़ों को प्रणाम करना चाहिये। * शौच-स्नान करके दंड-बैठक, दौड़-कुश्ती आदि शारीरिक व्यायाम करना चाहिये। विद्यालय में ठीक समय पर पहुँचना और भगवत् स्मरण पूर्वक मन लगाकर पढ़ना चाहिये। किसी प्रकार उधम न करते हुए मौन रहकर भगवत के नाम का जप और स्वरूप की स्तुति करते हुए प्रतिदिन जाना-आना चाहिये। * विद्यालय की स्तुति-प्रार्थना आदि में अवश्य शामिल होना और उनको मन लगाकर प्रेमभावपूर्वक करना चाहिये क्योंकि मन न लगाने से समय तो खर्च हो ही जाता है और लाभ होता नहीं। * पिछले पाठ को याद रखना और आगे पढ़ाये जाने वाले पाठ को उसी दिन याद कर लेने से पढ़ाई के लिए सदा उत्साह बना रहेगा। * पढ़ाई कभी कठिन नहीं मानना चाहिये। * अपनी कक्षा में सबसे अच्छा बनने की कोशिश करनी चाहिये। * किसी विद्यार्थी को पढ़ाई में अपने से अग्रसर होते देख कर खुलकर प्रसन्न होना चाहिये और यह भाव रखना चाहिये कि यह उन्नति कर रहा है इससे मुझे भी पढ़कर उन्नति करने का प्रोत्साहन एवं अवसर प्राप्त होगा। * अपने किसी सहपाठी से डाह नहीं करनी चाहिए और न यही भाव रखना चाहिये कि वह पढ़ाई में कमजोर रह जाय जिससे उसकी अपेक्षा मुझे लोग अच्छा कहें। * किसी भी विद्या अथवा कला को देखकर उसे दिलचस्पी के सात समझने की चेष्टा करनी चाहिये क्योकि जानने और सीखने की उत्कण्ठा विद्यार्थियों का गुण है। * अपने को उच्च विद्वान मानकर कभी अभिमान न करना चाहिये क्योंकि इससे आगे बढ़ने में बड़ी रुकावट होती है। * नित्यप्रति बड़ों की तथा दीन-दुःखी प्राणियों की कुछ न कुछ सेवा अवश्य करनी चाहिये। * किसी भी अंगहीन दुःखी, बेसमझ गलती करने वाले को देखकर हँसना नहीं चाहिये। * मिठाई, फल आदि दूसरों को बाँटकर खाना चाहिये। * न्याय से प्राप्त हुई चीज को ही काम में लेना चाहिये। * दूसरे की चीज उसके देने पर भी न लेने की चेष्टा रखनी चाहया * हर एक आदमी के द्वारा स्पर्श की हुई मिठाई आदि एवं अन्न की बनी खाद्य वस्तुएँ नहीं खानी चाहिये। भूख से कुछ कम खाना चाहिये एवं सदा प्रसत्रतापूर्वक भोजन करना चाहिये। * भोजन के समय क्रोध, शोक, दीनता, द्वेष आदि भाव मन में लाना उचित नहीं क्योंकि इनके रहने से भोजन ठीक से नहीं पचता। * भोजन करने के पहले दोनों हाथ, दोनों पैर और मुँह. इन पाँचों को अवश्य धो लेना चाहिये। * भोजन के बाद कुल्ले करके मुँह साफ करना उचित है, क्योंकि दाँतों में अन्न रहने से पायरिया आदि रोग हो जाते हैं। * चलते-फिरते और दौड़ते समय एवं अशुद्ध अवस्था में तथा अशुद्ध जगह में खाना-पीना नहीं चाहिए क्योंकि खाते-पीते समय सम्पूर्ण रोम कूपों से शरीर आहार ग्रहण करता है। * स्नान और ईश्वरोपासना किये बिना भोजन नहीं करना चाहिये। * लहसून, प्याज, अण्डा, माँस, शराब, ताड़ी आदि का सेवन कभी नहीं करना चाहिये। शिक्षा-एक यशस्वी दशक विद्यालय खण्ड/१९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012030
Book TitleJain Vidyalay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year2002
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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