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________________ कुछ न करने के लिए विवश कर देते हैं। शिक्षा की आवश्यकता साथ ऐसे संगठनों को संचालित करना चाहिए जो लोगों को संयमित केवल बच्चों की ही नहीं है बल्कि इसकी आवश्यकता खेत मजदूर, जीवन जीने की कला के बारे में मार्गदर्शन कराएँ। यह मार्गदर्शन किसान, कारीगर, किरानी तथा अन्य पेशे से जुड़े लोगों को भी है। किसी धर्म या मजहब से जुड़ा नहीं होना चाहिए बल्कि जीवन की उनको पुस्तकीय ज्ञान से अधिक परामर्श तथा मन्त्रणा की कला पर आधारित जीवन मूल्यों को पहचानने पर बल देने वाला आवश्यकता है जिससे स्वस्थ परम्परा प्रतिपादित हो सके। सही होना चाहिए। शिक्षा निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है, जो स्कूलों, दिशा में लोग सोचें और अपने साथ-साथ देश के हितों के बारे में महाविद्यालयों के प्रांगण तक ही सीमित नहीं है। अनुभवों से प्राप्त विचार कर सकें। धन का अपव्यय यदि रोका जा सके तो सभी शिक्षा ही वास्तविक शिक्षा है जिसके द्वारा विशेष स्थिति में उत्पन्न बेकार लोगों को रोजगार दिलाया जा सकता है। प्रत्येक देशवासी समस्या किस प्रकार हल की जाय, इसका ज्ञान प्राप्त होता है। गर्व के साथ सुन्दर ढंग से जीवनयापन कर सकता है। अनुभवहीन किताबी ज्ञान रखते हुए भी प्राय: समस्याओं का निदान . सरकार के अन्न भण्डारों में अन्न सड़ रहा है। उन्हें कैसे बाँटा नहीं ढूँढ़ पाते। सामाजिक विषमताओं को दूर करने के लिए जाय, यह विकराल समस्या है। मुफ्त में बाँटने पर मुफ्तखोरों की अनुभवी परामर्शदाताओं की आवश्यकता है जो लोगों को उत्साहित संख्या में इजाफा होगा और अकर्मण्यता बढ़ेगी। यदि कुछ मूल्य करे और सही मार्गदर्शन दे ताकि पिछड़े उपेक्षित निर्धन दृढ़ रखकर बेचा जाय तो एक वर्ग ऐसा है जो खरीदने की बिलकुल इच्छाशक्ति का सहारा लेते हुए अपने जीवनशैली को बदल सकें। क्षमता नहीं रखता है। सर्वहारा वर्ग की पहचान करने के लिए ये कार्यशालाएँ कैसी हों इसको जन संचेतना का स्वरूप कैसे दिया प्रयुक्त माध्यम इमानदारीपूर्वक काम नहीं करता है जिससे कमजोर, जाय, इस पर विचार की आवश्यकता है। इससे लोग अवश्य सम्बलहीन, दीन की सही पहचान नहीं हो पाती है और प्राप्त लाभ लाभान्वित होंगे और भारत गरीबों का देश है इस कलंक को धो कुछ पिछलग्गुओं को मिल जाता है। राजनैतिक दलों का योगदान सकेंगे। भारत के पास धन, संसाधन एवं पुरुषार्थ किसी चीज की देश में अव्यवस्था फैलाने में कम नहीं है। स्वयंसेवी संस्थाओं को कमी नहीं है। कमी यदि है तो पुरुषार्थ को जगाने की। प्रत्येक अस्पताल, विद्यालय, बूढ़ों और लाचारों के लिए सेवा संस्थानों की व्यक्ति को अपने सत्व को पहचानने की आवश्यकता है जिससे स्थापना करना चाहिए। इन संगठनों को अपने सुन्दर कार्यों से स्नेह, वह अपने अन्दर की क्षमता का सदुपयोग कर अपने जीवन को प्रेम और सद्भाव का आदर्श स्थापित करना चाहिए जिससे मानव कल्याणकारी एवं सदुपयोगी बना सके। उचित मार्गदर्शन के कारण मात्र अपने को सुरक्षित अनुभव कर सके। जाति, भाषा, धर्म, प्रान्त चीन ने जो पूंजीवादी व्यवस्था का घोर विरोधी था आज पूँजीवाद को के नाम पर फैलाए जाने वाला उन्माद सदैव निन्दनीय होता है। इससे अपनाया और वहाँ के लोग रुढ़ मार्क्सवादी सामाजिक जीवनशैली घृणा, हिंसा और प्रतिशोध की भावना फैलती है। भारत के लोगों की से हटकर जीना आरम्भ कर दिए जिससे उन्हें अब अपने जीवन पर गरीबी में और वृद्धि न हो और आपसी एकता और भाईचारा बना सन्तोष एवं गर्व है। कहने का तात्पर्य यह है कि श्रम और ऊर्जा का रहे इसके लिए स्वार्थी लोगों को पहचानें। विभिन्न मुखौटे लगाकर सदुपयोग, कुरीतियों का परित्याग, धर्माडम्बर से दूर और राजनीतिज्ञों शोषण करने वालों से बचने की शिक्षा अति आवश्यक है। के कुचक्रों को समझने वाला सामाजिक संगठन गरीबों की गरीबी कर्तव्यपालन जीवन को संयमित और सुन्दर ढंग से जीने की मिटा सकता है। इससे दुर्लभ मनुष्य जीवन धन्य हो सकता है और प्रेरणा देता है। आपस में लड़ना और दूसरे के अधिकारों को छीनना हम भारतीय कह सकते हैं कि हम गरीब नहीं हैं। विश्व के सामने नहीं सिखाता-“मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना"। कहने अपने गौरवशाली अतीत के साथ संभ्रान्त वर्तमान को प्रतिस्थापित का अर्थ यह है कि आज के साधनों का प्रयोग जीवन स्तर को कर सकते हैं, ऐसे लोग जो समाज के विभिन्न वर्गों में चेतना फैला सुधारने के लिए किया जाना चाहिए। विवेकपूर्ण जीया जीवन गरीबी कर उनको सन्मार्ग पर चलते हुए सुन्दर जीवन जीने की शैली को को दूर रखता है। बहुत अधिक मात्रा में भोजन करने वाला व्यक्ति समझा सकें। तभी हमारे देश और समाज का कल्याण हो सकता अवश्य रोगी हो जाता है और उसे डॉक्टरों, अस्पतालों का चक्कर है। ऐसे ही लोगों की उम्मीदों पर प्रजातान्त्रिक देश की कल्पना की लगाते-लगाते जीवन का बहुमूल्य समय कष्ट के साथ जीना पड़ता गई थी। विभिन्न स्तर से आये अनुभवी 'सादा जीवन उच्च विचार' है। यदि वह अपने को संयमित रखता, यदि भोजन का अधिक अंश रखने वाले समाज सुधारक समस्याओं को सुलझाने में सहायक होंगे ग्रहण न करके जरुरतमंद को देता तो अवश्य स्वस्थ एवं सुन्दर और हमारे देश का चतुर्दिक विकास होगा। जीवन जीता। अति संभ्रान्त और धनी वर्ग से समाज को कुछ उपप्रधानाचार्यअपेक्षाएँ हैं जो पूरी नहीं हो पा रही हैं। उन्हें धन के दान के साथ श्री जैन विद्यालय फॉर ब्वायज, हावड़ा विद्यालय खण्ड/१८ शिक्षा-एक यशस्वी दशक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012030
Book TitleJain Vidyalay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year2002
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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