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________________ * सदा अपने से बड़े और उत्तम आचरणवाले पुरुषों के साथ रहने की चेष्टा करें तथा उनके सद्गुणों का अनुकरण करें। * प्रत्येक कार्य करते समय यह याद रखें कि भगवान हमारे सम्पूर्ण कार्यों को देख रहे हैं और वे हमारे हित के लिए हमारे अच्छे और बुरे कार्यों का यथायोग्य फल देते हैं। * धर्म पालन करने में होनेवाले कष्ट को तप समझें। अपने आप आकर प्राप्त हुए संकट को प्रकृति का कृपापूर्वक दिया हुआ पुरस्कार समझें। * मन के विपरीत होने पर भी कभी घबरायें नहीं, अपितु परम संतुष्ट और प्रसन्न रहें। * अपने में बड़प्पन का अभिमान न करें। * दूसरों को छोटा मानकर उनका तिरस्कार न करें। किसी से घृणा न करें। * अपना बुरा करने वाले के प्रति भी उसे दुःख पहुँचाने का भाव न रखें। * कभी किसी के साथ कपट, छल, धोखाबाजी और विश्वासघात न करें। * इन्द्रियों का संयम करें। मन में किसी भी बुरे विचार को आने न दें। * अपने से छोटे बालक में कोई दुर्व्यवहार या कुचेष्टा दीखे तो उसको समझायें अथवा उस बालक के हित के लिये अध्यापक अथवा अभिभावकों को सूचित करें। * अपने से बड़े में कोई दुर्व्यवहार या कुचेष्टा दीखे तो उसके हितैषी बड़े पुरुषों को नम्रतापूर्वक सूचित करें। * अपनी दिनचर्या बनाकर तत्परता से उसका पालन करें। * सदा दृढ़प्रतिज्ञ बनें। प्रत्येक वस्तु को नियत स्थान पर रखें तथा उसकी संभाल करें। * अपने में से दुर्गुण-दुराचार हट जायें और सद्गुण सदाचार आयें, इसके लिए भगवान से सच्चे हृदय से प्रार्थना करें और भगवान के बल पर सदा निर्भय रहें। स्वाति जोशी, अष्टम् ब शिक्षा-एक यशस्वी दशक विद्यालय खण्ड/२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012030
Book TitleJain Vidyalay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year2002
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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