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________________ है और यदि ऐसा संभव हो सका तो निराशा, भय और आतंक का यह अंधकार तार-तार होकर रहेगा। 'निराला' ने कहा- तम के अमाळ रे तार-तार। शिक्षक, अभिभावक एवं प्रबन्धक की सम्मिलित भूमिका ही इसमें विशेष महत्वपूर्ण होगी। जो शिक्षक ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूज्यनीय एवं वंदनीय हैं, उस पर इसका विशेष दायित्व है। यदि शिक्षक इसके लिए कमर कस लें, तो फिर वह सब कुछ संभव है जो असंभव प्रतीत होता है। आवश्यकता है मात्र दृढ़ निश्चय की, संकल्प की और तब सार्थकता एवं सफलता सुनिश्चित है। _ विद्यालय की छ: दशकीय शैक्षणिक यात्रा की सम्पूर्ति के उपलक्ष्य में हीरक जयन्ती स्मारिका के प्रकाशन का निश्चय किया गया। उसी निश्चय की पूर्ति स्वरूप यह स्मारिका आपको सौंपते हुए हमें बड़ी प्रसन्नता है। स्मारिका को पठनीय एवं संग्रहणीय बनाने हेतु हमने विद्वानों, चिन्तकों एवं मनीषियों से आलेख आमंत्रित किये। हमारे अनुरोध एवं आग्रह को स्वीकार कर जिन विद्वानों एवं विचारकों ने विभिन्न विषयों पर अपने आलेख भेजे, हम उनके प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापन करते हैं। हम विश्वास करते हैं कि भविष्य में भी उनका यह सहयोग हमें सदैव प्राप्त होगा। इस स्मारिका में विद्यालय खण्ड, विद्यार्थी खण्ड एवं अध्यापक खण्ड का संयोजन भी किया है, जिसमें विद्यालय एवं सभा के पदाधिकारियों, विद्यार्थियों एवं शिक्षक बन्धुओं की रचनाएं एवं आलेख प्रकाशित किये गये हैं। इन रचनाओं के माध्यम से विद्यालय की छवि के दर्शन सहज ही हो सकते हैं। इनकी रचनाओं के लिए भी आभार व्यक्त करते हैं। विद्वत् खण्ड में विद्वानों की रचनाएं प्रकाशित की गई हैं। स्मारिका के मुख पृष्ठ पर जैन सरस्वती का चित्र अंकित है। यह कलाकृति बीकानेर (राज0) के गंगानगर जिले के पल्लू गांव से खुदाई में प्राप्त हुई है जो बारहवीं शती की है। इस कलाकृति के भामण्डल में जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं। यह चित्र राजस्थान सरकार के सूचना एवं सम्पर्क निदेशालय से प्रकाशित द्वै मासिक पत्र 'सुजस' के सौजन्य से प्राप्त है, हम इसके लिए हार्दिक आभारी हैं। स्मारिका के प्रकाशन में जिन महानुभावों का प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष सहयोग प्राप्त हुआ है, तदर्थ कृतज्ञता-ज्ञापन हमारा कर्त्तव्य है। इसके मुद्रण एवं समय पर प्रकाशन हेतु प्रिन्टवेल (इन्डिया) के श्री ओ.पी. सिंहानिया एवं उनके सहयोगियों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करना नितान्त समीचीन है। पर्याप्त सावधानी के पश्चात् कहीं किसी तरह की त्रुटि अथवा भूल रह गई है, तो सुज्ञ पाठकगण क्षमा करेंगे। इस स्मारिका पर आपकी सुचिन्तित राय एवं प्रतिक्रिया जानकर हमें प्रसन्नता होगी। किमधिकम् -सम्पादकगण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012029
Book TitleJain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKameshwar Prasad
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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