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विद्यालय
सन् 1930 भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास का एक समुज्ज्वल क्रान्तिकारी पृष्ठ। रावी नदी के किनारे आहूत कांग्रेस का अधिवेशन। युवा हृदय सम्राट पं. जवाहरलाल नेहरू द्वारा अध्यक्ष पद से सम्पूर्ण आजादी के लिए युवकों का आह्वान । समग्र देश में पूर्ण स्वाधीनता प्राप्ति के लिए जबर्दस्त आन्दोलन । आसेतु हिमाचल पूर्ण स्वराज्य के लिए एक प्रबल लहर। आबाल युवा वृद्ध का एक नारा- एक उद्घोष- सम्पूर्ण आजादी हमारा लक्ष्य । कभी अस्त न होने वाले ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्ताचलगामी।
दुर्धर्ष स्वातंत्र्य संग्राम की इस पृष्ठभूमि पर प्रखर राष्ट्रीय चेतना से उद्वेलित श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा के कार्यकर्ताओं द्वारा सम्यक् ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र्य को दृष्टिगत रख शिक्षा सेवा एवं साधना के प्रकल्प श्री जैन विद्यालय की सन् 1934 में स्थापना। राष्ट्र की भावी आशा के जीवन के सर्वांगीण विकास की सिद्धि हेतु पांचा गली के किराये के एक कमरे में शिक्षण का क्रम आरंभ । एक बीज का वपन । अनुकूल हवा, पानी एवं रोशनी पाकर बीज अंकुरित हो उठा एवं पौधे से वट वृक्ष का रूप धारण कर लिया।
सम्प्रति 2500 छात्रों को विज्ञान, वाणिज्य का शिक्षण प्रदान करने में बंगाल के शिक्षण संस्थानों में यह विद्यालय न केवल महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहा है अपितु अपने शत-प्रतिशत परीक्षा फल, उच्चस्तरीय शिक्षण एवं दृढ़ अनुशासन के क्षेत्र में अग्रणी स्थान रखता है। विद्यालय ज्ञान-विज्ञान के आधुनिक संसाधनों से युक्त है तथा वर्तमान युग की आवश्यकता अनुभूत करते हुए कक्षा पांच से कम्प्यूटर शिक्षा भी प्रदान कर रहा है।
शिक्षा का उद्देश्य केवल छात्रों को आजीविका हेतु शिक्षण प्रदान करना ही नहीं है बल्कि जीवन के सर्वांगीण विकास के साथ ऐसे सुनागरिक तैयार करना है जो समय पड़ने पर समाज एवं राष्ट्र के आह्वान पर अपना सर्वस्व समर्पित कर सकें। शिक्षा का उद्देश्य एक ऐसे चरित्र का निर्माण करना है जो आवश्यकता पड़ने पर सब कुछ उत्सर्ग करने के लिए कटिबद्ध हो सके। इस दृष्टि से जब देखते हैं तो एक निराशा चतुर्दिक दृष्टिगत होती है। लगता है दिशाहीन और निरुद्देश्य है वर्तमान शिक्षा प्रणाली। भटकाव और नैराश्य से ग्रसित होकर अंधकार में हाथ पांव पटक रही है हमारी युवा पीढ़ी। बेरोजगारी, भय, आतंक और बेचैनी ने एक ऐसे आक्रोश को जन्म दिया है जो समग्र राष्ट्र एवं विश्व को लीलता जा रहा है। भ्रष्टाचार, बेईमानी, अत्याचार और अनाचार के अन्तहीन चक्कर में फंसा है सम्पूर्ण विश्व । ज्ञान विज्ञान के अनेक नये आयामों एवं क्षितिजों के उद्घाटन के बाद भी नैतिक एवं चारित्रिक ह्रास के कारण समग्र विश्व भयावह विभीषिका से संत्रस्त एवं पीड़ित है। आज आवश्यकता है विज्ञान की दुर्दम्य आकांक्षा के साथ आध्यात्मिकता के समन्वय की। ज्ञान विज्ञान की इस उदग्र ऊर्जा को यदि संयम, नियम एवं मर्यादा की वल्गा से नियंत्रित नहीं किया तो सर्वनाश के ज्वालामुखी का विस्फोट सुनिश्चित है, निर्विवाद है। और विश्व में इस बार जो त्रासदी घटित होगी, वह संभवत: सर्वनाश का ही कारण होगी। यह उस खण्ड प्रलय से भी अधिक प्रचण्ड एवं भयावह होगा जो विष्णु पुराण में वर्णित है, यह सम्पूर्ण प्रलय ही होगा।
इस राशि-राशि अंधकार में, प्रभूत घन अंधकार में आशा की किरण आध्यात्मिकता के प्रचार-प्रसार में सन्निहित है। आध्यात्मिकता, सुचारित्र्य एवं नैतिकता के केन्द्र बनकर ये विद्यालय आशा, विश्वास की समुज्ज्वल किरणों को चतुर्दिक विकीर्ण कर सकते हैं। ये विद्या मन्दिर ही ज्ञान-विज्ञान एवं अध्यात्म के समन्वय स्थल बनकर विश्व में शान्ति, सौरव्य एवं समृद्धि के स्थापन में सक्षम हो सकते हैं।
वस्तुत: ज्ञान-विज्ञान एवं अध्यात्म का समुचित समन्वय ही आज की महती आवश्यकता
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