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________________ । धीरेन्द्रकुमार झा, XI-D कितना सुन्दर, कितना विशाल कितना सुन्दर कितना विशाल, यह श्री जैन विद्यालय हमारा। कितना पावन इसका प्रांगण, कितना उज्ज्वल है कीर्तिमान ।। यह निर्भय अचल तपस्वी सा, यह गौरवपूर्ण मनस्वी सा। यह ज्ञान-निधान, सुखद, उन्नत, कर्तव्य पुनीत तपस्वी सा ।। यह सरस्वती का शुभ मंदिर, भारत संस्कृति का अमल स्रोत। निज कर्मशक्ति, निज धर्मभक्ति, इसके कण-कण में, ओत-प्रोत॥ कितने वर्षों से छात्रों ने, पाया है इससे ज्ञान-दान। कितना विशाल कितना सुन्दर, यह श्री जैन विद्यालय हमारा ।। शिक्षक गण जहां सिखाते हैं, अनुशासन का मूल मंत्र। होता जिससे जीवन पुनीत, मन का शासक बन एक तन्त्र ।। नित नूतन भावों को लेकर, होते रहते हैं व्याख्यान। कर्तव्यों पर हम मिट जायें, रहता सबको यही ध्यान ।। जलता है जिसका कीर्ति दीप, है जहां शान्ति जाज्वल्यमान, कितना सुन्दर कितना विशाल, यह श्री जैन विद्यालय हमारा ।। हीरक जयन्ती स्मारिका विद्यार्थी खण्ड /२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012029
Book TitleJain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKameshwar Prasad
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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