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उनकी मान्यता प्राप्त देवी देवताओं की छवियां प्रथम बार अंकित की। गई। पुरु के साथ हुए युद्ध में विजय प्राप्त कर अलेक्जेंडर ने चांदी के डेका ड्रेचम एवं टेट्राड्रेचम सिक्के जारी किए। अलेक्जेंडर के मरणोपरांत उसके उत्तराधिकारियों एवं क्षत्रपों द्वारा सिक्के मुद्रित किए जाते रहे और अब तक लगभग बाईस बेक्ट्रियन शासकों द्वारा जारी सिक्के ज्ञात हो चुके हैं। स्वर्ण मुद्रा सर्वप्रथम इन्हीं शासकों में से एक डायोडोटस द्वारा मुद्रित की गई। संसार की सबसे पहली निकेल धातु से बनी मुद्राएं भी इन्हीं शासकों द्वारा यहां जारी की गईं। स्ट्रेटो द्वितीय द्वार शीशे से बने सिक्के भी प्रचलित किए गए। इनके सिक्कों में प्रथम बार लिपि का उपयोग किया गया। ग्रीक भाषा तथा खरोष्ठि लिपि में प्राकृत भाषा का उपयोग इनके सिक्कों पर हुआ है। कुछ शासकों द्वारा ब्राझि लिपि का भी प्रयोग किया गया है। ___ लगभग 135 ई0पू0 से 75 ई0पू0 तक 'शक' लोगों ने बेक्ट्रियन शासन का अंत कर इन्हें भारतवर्ष से विस्थापित कर दिया। इन शक शासकों में सर्वप्रथम माओस एवं वोनोन के चांदी तथा ताम्र धातुओं में मुद्रित सिक्के प्राप्त हुए हैं। इनके उत्तराधिकारी एजेज प्रथम के सिक्के बहुलता से पाए जाते हैं। इसके बाद भी कई शक-पहलवों के सिक्के पाए गए हैं। प्रथम शताब्दि के लगभग कुषाणों के आविर्भाव के साथ ही इन शक-पहलव शासकों का अंत हुआ।
कुषाण चीन की सीमावर्ती क्षेत्र विशेष की घुमंतू जनजातियां थीं जिन्हें यू-ची कहा जाता था। इन्हीं की एक शाखा क्यू-शुआंग (कुषाण) ने उत्तरी भारतवर्ष में अपने शासन को फैलाया। इन्होंने पूर्व में वाराणसी तक अपने राज्य को स्थापित किया तथा पश्चिम में भी भारतीय सीमाओं को उल्लंधित किया। इस तरह से इन्होंने एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की जो लगभग एक शताब्दि तक कायम रहा। इन शासकों में सर्वप्रथम कुजुल कडफिसेज ने ताम्रमुद्राएं जारी कीं। इसके पुत्र विमा कडफिसेज ने सर्वप्रथम भारतवर्ष में सोने के विभिन्न परिमाणों के प्रचुर मात्रा में सिक्के प्रचलित किए। इन मुद्राओं को हम चौथाई दीनार, दीनार तथा दो दीनार के रूप में जानते हैं। विमा कडफिसेज की ताम्रमुद्राओं पर शिव की छवियां भी अंकित हैं जो यह दर्शाती हैं कि वह भारतीय शैव परम्परा से अत्यधिक प्रभावित रहा होगा। विमा कडफिसेज के । उत्तराधिकारी हुविष्क प्रथम तथा कनिष्क प्रथम ने भी क्रमश: सिक्के जारी किए। कनिष्क प्रथम ने शिव की छवि वाले सिक्के तो जारी किए ही साथ ही बुद्ध के नाम वाले सिक्के भी मुद्रित करवाए। कनिष्क प्रथम के पश्चात् हुविष्क द्वितीय, हुविष्क तृतीय, वासुदेव प्रथम, वासुदेव द्वितीय, वासुदेव तृतीय, कनिष्क द्वितीय, वसिष्क, कनिष्क तृतीय तथा मस्र ने । क्रमश: कुषाण सिक्के जारी किए। लेकिन कुषाणों का ह्रास वासुदेव द्वितीय के समय से होने लग गया। शशेनियन राजाओं ने अरदासिर प्रथम के कार्यकाल में कुषाण क्षेत्रों को विशेषत: गांधार और हिन्दू के पश्चिमी क्षेत्रों को जीतना आरम्भ कर दिया था। इन हस्तगत क्षेत्रों पर राजपरिवार के व्यक्तियों का आधिपत्य किया जाने लगा। इन राजनयिकों द्वारा शशैनियन मुद्राओं से मिलते-जुलते सिक्के जारी किए गए। इनमें
से सापुर, अरदासिर प्रथम, अरदासिर द्वितीय, फिरोज प्रथम एवं होरमिड प्रथम, फिरोज द्वितीय, वराहरन प्रथम, वराहरन द्वितीय, होरमिड द्वितीय के सिक्के हमें प्राप्य हैं।
कुषाण राजा कनिष्क तृतीय के समय में सिन्धु नदी के पूर्वी हिस्से, जो कुषाण, अधिकार में थे वे भी नीपूनद, गदाहर, गडाखार, पयास
और शक जनजातियों द्वारा हस्तगत किए जाने लगे। शकों ने तो हरियाणा तक के कुछ हिस्सों पर अधिकार कर लिया। इन्होंने भी अपने सिक्के जारी किए। तत्पश्चात् शशेनियन राजाओं द्वारा हस्तगत सीमाओं को एक अन्य जनजाति किदारा ने जीत लिया। इनके द्वारा जारी सिक्कों को 'किदार कुषाण' सिक्कों के नाम से जाना जाता है।
मौर्य साम्राज्य के पतन के पश्चात् उत्तर भारतवर्ष में छोटे-छोटे जनपद पुन: स्वतंत्र होकर अपना राज्य स्थापित करने लगे। पुष्यमित्र शुंग ने 184 ई0 पूर्व में मौर्य साम्राज्य को हस्तगत कर अपने ताम्र आहत सिक्के जारी किए। उनके वंशजों ने विदिशा से भी आहत मुद्राएं जारी की। शुंग के पश्चात् कण्व वंशजों ने सिक्के प्रचलित किए। इस प्रकार हम देखते हैं कि गुप्त साम्राज्य के प्रारम्भ होने से पूर्व विभिन्न क्षेत्रीय, जनपदीय एवं राजकीय सिक्के विभिन्न शासकों द्वारा जारी किए गए। ये मुद्राएं आहत सिक्कों के सदृश, डाइ से बनी तथा ढलाई की भी प्राप्त होती हैं। आलेख रहित मुद्राएं गांधार, एरन, उज्जैनी एवं कौशाम्बि आदि स्थानों से प्राप्त हुई हैं तथा आलेख जनित मुद्राएं गांधार, वाराणसी, श्रावस्ति, उद्देहिका, सुदवपा, कौशाम्बि, उज्जयिनी, एराकन्य, विदिशा, महिस्मती, कुरार, तगार, त्रिपुरी एवं पुष्कलवती से जारी की गई। इसी प्रकार पंजाब क्षेत्र के जनजातीय गणतंत्रों यथा औदम्बर, कुनिंद एवं यौधेयों द्वारा अपने-अपने देवताओं के नाम से मुद्राएं जारी की गईं। द्वितीय श0ई0पू0 में पंजाब के क्षेत्रों से जिन जनजातीय राजनयिकों ने मुद्राएं प्रचलित की उनमें अग्रेय, क्षुद्रक, राजन्य, शिवि, त्रिगर्त एवं यौधेय प्रमुख हैं। प्रथम श0इ0पू0 में हमें औदम्बर, राजन्य, वृष्णि, वेमक एवं कुनिंद शासकों के सिक्के उपलब्ध होते हैं। प्रथम सदी के लगभग इन क्षेत्रों से हमें मालव एवं कुलुत लोगों द्वारा जारी सिक्कों की जानकारी मिलती है। इसी तरह द्वितीय शती के आते-आते एक और जनजातीय यथा अर्जुनायन के सिक्कों के बारे में पता चलता है। विदेशी आक्रमण के भय से इनमें से कतिपय जनजातियां चौथी शताब्दि तक राजस्थान की ओर प्रस्थापित होने लग गईं। उधर गंगा-यमुना के समतलीय क्षेत्रों में उपर्युक्त समय में चार प्रमुख राज्यों की स्थापना हुई यथा शूरसेन, पांचाल, कौशल एवं वत्स। शूरसेन से हमें गौमित्र एवं उसके उत्तराधिकारियों के सिक्के प्राप्त हुए हैं। तत्पश्चात् शेषदत्त एवं उसके उत्तराधिकारियों के सिक्के भी इस क्षेत्र से प्राप्त हुए हैं। दो अन्य शासकों बलभूति एवं अपलता की मुद्राएं भी हमें इस क्षेत्र में परिलक्षित हुई हैं। इनके अतिरिक्त कतिपय विदेशी शासकों राजूवूला एवं उसके उत्तराधिकारियों के भी सिक्के इसी क्षेत्र विशेष से प्राप्त हुए हैं।
उधर पांचाल क्षेत्र से ताम्र सिक्कों की एक पूरी की पूरी शृंखला हमें प्राप्त होती है, जिनको बीसियों शासकों ने प्रचलित किया। कौशल
हीरक जयन्ती स्मारिका
विद्वत् खण्ड / ९४
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