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मिली थीं इनमें पद्मासन स्थित 21 इंच की एक मूर्ति अम्बिका की भी थी। राजगृह में वैभारगिरि में एक शुंग कालीन दूसरी शताब्दी ई. पूर्व की अम्बिका की मूर्ति है। खण्डगिरि उड़ीसा में आदिनाथ एवं अम्बिका की मूर्तियां जो ईसा की दूसरी शताब्दी पूर्वार्द्ध की हैं। दक्षिण भारत में वैली मूलल (चित्तूर) में भी नवीं शताब्दी की अम्बिका की सुन्दर मूर्ति है। जिनदत्तसूरि एवं अम्बिका :
नागदेव नामक एक श्रावक था। वह युगप्रधान आचार्य के दर्शन करना चाहता था। इस कारण उसने गिरिनार पर्वत के अम्बिका शिखर पर जाकर तपश्चर्या की। देवी ने प्रसन्न होकर उसके हाथ में गुप्त लिपि में कुछ अक्षर लिख दिये और कहा कि जो इसे पढ़ देगा उसे ही तू युगप्रधान आचार्य मानना। नागदेव भ्रमण करता हुआ कई जगह गया किन्तु उसे कोई युगप्रधान दिखाई नहीं दिया। अन्त में वह पाटण आया वहां भी सबको अपना हाथ दिखाया। वहां विराजमान जिनदत सूरि ने इसे वासक्षेप कर शिष्य द्वारा पढ़ा दिया। शिष्य ने गुरुदेव की स्तुति पढ़ी, वह यह हैदासानुदासा इवसर्वदेवा यदीय पादाब्ज तले लुठंति मरुस्थली कल्पतरू सजीयात्, युग प्रधानो जिनदत्त सूरि ।।
यह श्लोक बहुत ही प्रचलित है। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित पाठ भी अवलोकनीय है। (ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृ. 30, 46, 216) 1- जिणदत्त नंदउ सुपहु जो भारहंमि जुग पवरो
अम्बा एवि पसाया बिन्नाओ नागदेवेण...। नागदेव वर सावएण उज्जित चडेविणु। पुच्छिय जुगवर अंबएवि उववास करेविणु। तसु भत्ति तुट्ठायतीय करि आक्खर लिखिया। भणिउ जवाइय पम्हसय जुगपवर सुधम्मिय। भमिऊष पुहवि अणहिलपुरि जुगपहाण तिणिजाणियउ। जिणदत्त सूरि नंदउ सुपहुअंबाएवि बखणियउ...2 2- जिनदत्त सूरि गुरु नमउए
अम्बिका ए देवि आयेसि जाणियइ चिहुजुगे जुगप्रधान
संयंभरिए रायडइ दीधउ श्री जिनधर्मदान...21 3- अम्बा एवि पयासकरि जाणी जुग पहाणो। नागदेव जोमुणि पवर वाणी अमिय सयाणो म॥ अमिय समाण बखाण जासु सुणिवा सुर आवइ । चउसठि जोगणि जासुनामि नहुंतणु संतावइ । जुगवर सिरि जिणदत्त सूरि महियलि जाणीजइ। निम्मलमणि दीपंतिभाल जिण जिण चंद नमिजइ...10
मन्त्री ने वैसा ही किया। कलश, झालर व पूजा के सामान सहित गये। जहां संकेत सिद्ध हुआ, तीन प्रतिमाएं प्रकट हुईं। एक वज्रमय श्री आदिनाथ प्रतिमा, दूसरी अम्बिका माता और तीसरा वालीनाथ क्षेत्रपाल प्रकट हुए। ब्राह्मणों ने कहा, प्रतिमा तो है पर मन्दिर बनाने में बाधा दी तो मंत्रीश्वर विमल दण्डनायक ने स्वर्णमुद्राएं बिछाकर भूमि ग्रहण
की और भगवान ऋषभदेव का जिनालय निर्माण कराया। अठारह करोड़ तिरेपन लाख द्रव्य व्यय हुआ। सं. 1088 में वर्धमान सूरि जी प्रतिष्ठा करवा कर स्वर्गवासी हुए। ___ महातीर्थ आबू काव्य गा-13 से (भंवरलाल नाहटा):
गुरुवर्द्धमान सूरीश्वर ने अम्बादेवी से सूचित हो। निर्देश किया आदीश्वर की प्रतिमा प्रगटेगी निश्चित हो। द्विजगण से मनपसंद भूमि इच्छित धन देकर के चाही। विछवाय स्वर्णमुद्राओं को ले लें धरती जो मन भाई...3
जिनकुशलसूरिजी को अम्बिका देवी का इष्ट था। इन्होंने कई अम्बिकादेवी की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की थी। इनके लेख भी दिये जा रहे हैं
जिनोदयसूरिजी के संघ यात्रा में जाते हुए कोटिनारपुर पहुंचने पर अम्बिका देवी की पूजा अर्चना करने का उल्लेख विज्ञप्ति पत्र में किया गया है। जयसागरोपाध्याय :
जिनराजसूरिजी के शिष्य जयसागरोपाध्याय उच्चकोटि के विद्वान और प्रभावक संत थे। गिरिनारजी पर जब संघपति नरपाल ने लक्ष्मीतिलक नामक खरतरवसही जिनालय का निर्माण कराया तब अम्बिका देवी के प्रत्यक्ष दर्शन होने का उल्लेख मिलता है... श्री उज्जयंत शिखरे लक्ष्मीतिलकाभिधो वर विहारः नरपाल संघपतिना यदादि कारयतुमारेभे। दर्शयति तदा चाम्बा श्रीदेवी देवता जन समक्षम् अतिशय कल्पतरूणां जयसागर वाचकेन्द्राणाम्...2 श्री जिनराज सूरि (द्वितीय):
वे चतुर्थ दादा श्री जिनचन्द्र सूरि के प्रशिष्य थे। वे उच्च कोटि के विद्वान् थे। उन्हें अम्बिका देवी का पूर्ण सान्निध्य था। उन्होंने मेड़ता में भी अम्बिका देवी की स्थापना की थी। वह उनके सानिध्य में ही वि. सं. 1662 में निकली हुई प्रतिमा थी। आपने प्राचीनतम लिपि को पढ़ा था। उनके रास में लिखा है कि देवी अम्बिका की कही हुई पचासों बातें सत्य साबित हुईं। देवी ने कहा था कि आपको पाचंवें वर्ष में आचार्य पद मिलेगा। अम्बिका हाजरा हजूर थी। "जय तिहुण" स्मरण करने पर अहिरूप में धरणेन्द्र ने दर्शन दिये थे। देवी ने उन्हें भट्टारक पद देने का भी आशीर्वाद दिया था जो उन्हें मिल गया था। श्री जिन सिंह सूरि के स्वर्गवास के तीन दिन पूर्व ही उन्हें यह ज्ञात हो गया था। बचपन में भी थराद एवं सांचोर के बीच उन्हें “परचा' दिया था। जिनराज सूरि कृतिकुसुमांजलि एवं ऐतिहासिक काव्य संग्रह में निम्न उदाहरण दिया गया हैघंघाणि प्रतिमातणी रे वांची लिपि महा जाण। अम्बिका साधी मेड़ते रे केता करय बखाण।।।।। पार्श्वनाथ नी सानिधि, कीधीए अखियात। घंघाणी प्रतिमातणी वांची लिपि विख्यात...2 सदगुरु साधी अम्बिका थई कहयउ परतक्ष । भट्टारक पद पांच मइ बरसई पामिसिइदक्ष...3,
हीरक जयन्ती स्मारिका
विद्वत् खण्ड / ७२
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