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________________ जीवन ज्योति : साध्वी शशिप्रभाश्रीजी मुख से उन स्थानों की ऐतिहासिकता सुनकर ज्ञानवृद्धि हुई। सांस्कृतिक गौरव का एक चित्र सामने आया। वहाँ से नालन्दा कुण्डलपुर की ओर कदम बढ़ाए। नालन्दा-भगवान महावीर के समय यह राजगृही नगरी का उपनगर था। बाद में यहाँ विश्वविख्यात नालन्दा विश्वविद्यालय स्थापित हुआ जहाँ अनेक विद्यार्थी विद्याध्ययन के लिए आते थे, अब तो ध्वंसावशेष मात्र ही हैं, बौद्धविहार भी खण्डहर हो चुके हैं। 'नया पाली विश्वविद्यालय' भी देखा । एक बौद्ध मठ ऐसा देखा जिसमें १२५ वर्ष के बौद्ध साधु थे, वे बड़े सरल हृदयी व प्रज्ञाचक्षु थे। कुण्डलपुर-यहाँ आदिनाथ भगवान की केशों वाली विशाल मूर्ति है । इस प्राचीन मूर्ति के दर्शन करके मन प्रफुल्लित हो गया । बगीची में छोटी-सी दादाबाड़ी भी है। राजगह-यह महाराज श्रेणिक की राजधानी रही है। इसके उपनगर नालन्दा में भ० महावीर ने १४ चातुर्मास किये थे तथा यही बीसवें तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ की च्यवन, जन्म, दीक्षा और केवल ज्ञान कल्याणक की पावन भूमि है । यहाँ विशाल जिनमन्दिर, धर्मशाला व भोजनशाला है। शिखरबद्ध विशाल मन्दिर में श्यामवर्णी भ० मुनिसुव्रत नाथ की विशाल प्रतिमा के दर्शन पाकर मन आनन्दसागर में निमज्जित हो गया । पूज्या गुरुवर्या तो प्रायः ध्यानस्थ हो जातीं। उनकी ऐतिहासिकता बताकर हमारे ज्ञान में भी वृद्धि करतीं । वास्तव में प्राचीन तीर्थस्थानों का सही आनन्द वही अनभव कर सकता है, जो उनकी ऐतिहासिकता का जानकार हो तथा जिसकी नजर कला-पारखी और हृदय सौन्दर्य में रस लेने वाला हो । ये तीन भूमियाँ आज भी हमें मन की पवित्रता और भक्ति-लीनता को प्रेरणा दे रही हैं। पूज्या गुरुवर्या के साथ हमने उदयगिरि विपुलगिरि आदि पाँचों पहाड़ों की यात्रा की । स्थानकवासी प्रसिद्ध मुनि जयन्तीलालजी अपनी शिष्य मंडली सहित अपने गुरुदेव श्रीजीवनलाल जी म० का स्वर्गारोहण दिवस मनाने आये हुए थे। हम लोगों को भी जयन्ती दिवस तक रुकने का आग्रह किया गया । तीसरे पहाड़ के नीचे स्वर्गस्थान पर समाधि बनी हुई है, वहीं आयोजन था। बौद्ध फ्यूजी गुरु भी आये हुए थे। हम लोग इस आयोजन में सम्मिलित हुए। सभी के भाषणों के बाद गुरुवर्याश्री का भाषण हुआ। भाषण इतना जोशीला, सरस और आकर्षक था कि सभी श्रोताओं ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की। नजदीक ही शान्तिस्तूप पर्वत है, वहाँ इलैक्ट्रिक रोप लगी हुई है, तथागत बुद्ध का चतुर्मुखी स्टेच्यू है, चारों ही ओर अलग-अलग पोज में बुद्ध-मूर्तियाँ हैं । सैकड़ों व्यक्ति देखने के लिए देश-विदेश से आते हैं। यहाँ से बिहार करके पावापुरी आये। पावापुरी--- यह भगवान महावीर के प्रथम समवसरण, तीर्थस्थापन और निर्वाणभूमि है । पावापुरी में प्रवेश करते-करते मन-मस्तिक २५०० वर्ष पीछे पहुंच गया। भगवान महावीर की स्मृति मानस पटल पर तैरने लगीं। . जलमन्दिर को देखकर भगवान की पार्थिव देह का अग्नि संस्कार स्थल दृष्टि में नाच उठा। किंवदंती है कि भगवान के अग्नि संस्कार के उपरान्त देवी-देवताओं, मानवों द्वारा अत्यधिक भस्मी ले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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