SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खण्ड १ | जीवन ज्योति जाने से यहाँ गड्ढा हो गया, उसी ने पानी भरने से तालाब का रूप ले लिया । तालाब के बीच मन्दिर में भगवान के चरण प्रतिष्ठित हैं । निर्वाण के समय जब भगवान के लड्डू-चढ़ता है तो चरणों के ऊपर जो व्त्र लगा है, वह एक मिनट तक हिलता रहता है, ऐसा लोग कहते हैं । जलमन्दिर बड़े सुन्दर ढंग से बना हुआ है, चारों ओर गुरुदेव के चरण-बीच में भगवान की छतरी। आने-जाने के लिये चारों ओर से मार्ग । भावपूर्वक दर्शन करके हम सभी ने स्वयं को धन्य माना। गरुवर्याश्री के हार्दिक उद्गार निकले-भगवान जिस समय जीवित थे, उस समय तो हम जाने कहाँ होंगे ? यदि मन से भगवान की वाणी सुनी होती तो इस पंचम काल में क्यों आते ? वे लोग धन्य हैं जिन्होंने प्रभु के मुखारविंद से निकली अमृतोपम वाणी का साक्षात् पान किया, हृदयंगम किया और तदनुरूप आचरण में संलग्न हो गये। फिर भी हम लोग भाग्यशाली हैं कि हमें जैनधर्म और संयमी जीवन प्राप्त हुआ तथा इन तीर्थों की यात्रा करने का सुयोग मिला। वहाँ से हम लोग गाँव मन्दिर गये, दर्शन किये और तदुपरान्त मुनीमजी की आज्ञा लेकर विश्राम हेतू ठहर गये। वहाँ समवसरण मन्दिर गये । पहले तो वहाँ चरण कमल ही थे, अब तो विशाल समवसरण की अनुकृति हो गई है। चतुर्मुख भगवान द्वादश परिषद को प्रवचन फरमा रहे हैं, ऐसा तीन गढ़ वाला मन्दिर निर्मित हो गया। गुरु गौतम का कैवल्य स्थान गुणायाजी-गुरु गौतम (इन्द्रभूति गौतम) भ. महावीर के प्रथम पट्टधर शिष्य, १४००० श्रमणों के नायके, अक्षीण महानस आदि अनेक लब्धियों के धारक और भगवान के प्रति प्रशस्त अनुराग वाले थे। यह अनुराग उनके कैवल्य में बाधक बना हुआ था, क्योंकि कैबल्य की प्राप्ति राग-दोष-दोनों के क्षय होने पर ही होती है। इसीलिए भगवान ने उन्हें देवशर्मा ब्राह्मण को प्रतिबोध देने के लिये गुणायाजी भेजा था। भगवान को निर्वाण हो गया। देव-दुन्दुभी के स्वर सुनकर गौतम स्वामी को भगवान के निर्वाण के विषय में ज्ञात हुआ, बहुत दुःख हुआ उन्हें; किन्तु दूसरे ही क्षण सुप्त ज्ञान-विवेक जाग उठा, राग-पलायन कर गया, प्रशस्त मोह की जंजीरे टूटी, कैवल्य भानु जगमगा उठा । ऐसे गुरु गौतम स्वामी के दर्शन कर हम कृतकृत्य हो गये। वहाँ से विहार करके क्षत्रियकुण्ड ग्राम पहुँचे। क्षत्रियकुण्ड ग्राम -भगवान महावीर की जन्मस्थली है। यहाँ सात पहाड़ों के मध्य अत्यन्त सन्दर जिनालय है। इसमें श्याम वर्णी भ. महावीर की प्रतिमा इतनी मनोहर है कि दृष्टि हटाये नहीं हटती, साथ ही इतनी सचिक्कण भी है कि सैकड़ों घड़े पानी डालने पर एक बूंद भी न ठहरे। इस मूर्ति के विषय में प्रसिद्ध है कि इस प्रतिमा का निर्माण भगवान के बड़े भाई नन्दीवर्धन के द्वारा भगवान के (जीवन-काल) में ही कराया गया था। इस प्रतिमा के दर्शन-वन्दन करके तन-मन विभोर हो गये। वहाँ से समीपस्थ ही काकन्दी पहुँचे । काकन्दी-यह भगवान सुविधिनाथ के च्यवन, जन्म और दीक्षा कल्याण की पावन भूमि है। धन्ना अनगार, जिनके विशिष्ट तप की प्रशंसा स्वयं भ. महावीर ने की, वे भी इसी नगरी के गौरव थे । यहाँ से विहार करके जमुही पहुँचे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy