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________________ खण्ड १ | जीवन ज्योति तीर्थभूमि वाराणसी-यह नगरी तेईसवें तीर्थंकर पार्श्व प्रभु की जन्मस्थली है। गंगा-किनारे बसी हुई है । यहाँ कई जिनमन्दिर और दादावाड़ियाँ हैं । भेलूपुर (भगवान पार्श्वनाथ की जन्मस्थली) में प्रतिवर्ष पौष वदी १० (पार्श्व प्रभु का जन्म दिन) के दिन मेला भरता है, साथ ही प्रभुपूजा और स्वधर्मीवात्सल्य भी होता है। हम लोगों ने भी पोष बदी दशमी का मेला यहीं किया। वाराणसी में हिन्दुओं का भी तीर्थ है। यहाँ हिन्दुओं के भी मन्दिर हैं । विश्वनाथ का मन्दिर अति प्रसिद्ध है। वाराणसी प्राचीनकाल से विद्या का केन्द्र रहा है। संस्कृत भाषा के अनेक श्रेष्ठ विद्यालय हैं। यथा-संस्कृत विश्वविद्यालय, हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी विद्यापीठ, पार्श्वनाथ विद्याश्रम आदि । भारत के दूरस्थ प्रान्तों के निवासी संस्कृत अध्ययन के लिए आते हैं । एक जैन यूनिवर्सिटी है, जहाँ से कई लोग पी-एच. डी. करते हैं। हम लोग जैन भवन में रुके । उन दिनों बंगला देश का युद्ध चल रहा था। अतः श्रावकों के आग्रह से १५ दिन वहीं रुके । इस बीच सिंहपुरी, चन्द्रपुरी आदि कल्याणक भूमियों की यात्रा की । वहाँ के तपागच्छ मुनिराज की निश्रा में संघ निकल रहा था । अतः हमें भी आमन्त्रित किया गया । हमें भी यात्रा करनी थी, हो लिए उनके साथ । 'संगच्छत्वं' का सूत्र सामने था। चन्द्रपुरी के पहले सिंहपुरी आता है, यह शहर से लगभग ६-१० किलोमीटर दूर है । बनारस में गाँधी परिवार की कोठी है, फार्म भी है । उनकी ओर से चाय-नाश्ता आदि की व्यवस्था थी। सिंहपरी में भ० श्रेयांसनाथ के च्यवन, जन्म, दीक्षा तीन कल्याणक हुए हैं। विशाल मन्दिर व धर्मशाला है। पास ही सारनाथ है, यह ऐतिहासिक बौद्धस्थल है, अनेक बुद्ध मन्दिर हैं । सिंहपुरी के निकट के मगदाव वन में ध्वंसावशेष हैं। इनमें सम्राट अशोक द्वारा बनवाया हुआ धर्मचक्र है, जो आधुनिक भारत का राजचिन्ह है । कई बौद्ध मन्दिर, मठ, विद्यापीठ भी दर्शनीय हैं। दूसरे दिन चन्द्रपुरी पहुंचे। यहाँ भ. चन्द्रप्रभु के तीन कल्याणक हुए हैं। पुनः बनारस लौटे । राजा शिवप्रसाद सितारेहिंद सपरिवार यहीं रहते थे। ये पूज्याश्री के संसारपक्षीय सम्बन्धी भी हैं । उनके अत्यधिक आग्रह को स्वीकार करके एक दिन उनकी सेवाभक्ति भी स्वीकार की। बनारस से बिहार कर हम लोग पटना पहुँचे । पटना-यह एक ऐतिहासिक नगरी है। पाटलिपुत्र, कुसुमपुर आदि नामों से प्राचीनकाल में प्रसिद्ध रहा है। महाराज श्रेणिक के पौत्र उदयन ने इसे बसाया और नन्द सम्राटों, चन्द्रगुप्त मौर्य, प्रियदर्शी सम्राट अशोक, जैन सम्राट सम्प्रति आदि की राजधानी रही है । पाटलिपुत्र भारत के इतिहास, संस्कृति के निर्माण और विध्वंस में भी प्रमुख भूमिका बना है। यहीं भावी तीर्थंकर पद्मनाभ का विशाल मन्दिर है और समीप ही धर्मशाला है । वहीं हम लोग ठहरे । वहाँ पर स्थानीय व बाहर से आये हुए लोगों के घर हैं। स्थूलिभद्र और सुदर्शन सेठ भी वहीं के थे । शहर के बाहर उनका स्थान बना हुआ है, जहाँ उनके चरण स्थापित हैं। हम लोग लगभग ८ दिन रहे । गुरुवर्याश्री के मार्गदर्शन में प्रायः सभी दर्शनीय ऐतिहासिक स्थल देखे, जिनसे हमारे धर्म की प्राचीनता और जैनसंस्कृति के अवशेष परिलक्षित होते थे। गुरुवर्या के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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