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________________ जीवन ज्योति : साध्वी शशिप्रभाश्रीजी वैशाख मास में पू. शशिप्रभाजी म. सा. को शास्त्री द्वितीय खण्ड की परीक्षा देनी थी, अतः चातुर्मास के बाद भी तब तक वहाँ ठहरना पड़ा। इस बीच बीकानेरवासियों ने दूसरे चातुर्मास की आग्रह भरी विनती शुरू कर दी; किन्तु फलोदी (फलवद्धि) नगरी में विराजित वात्सल्यमयी त्यागमूर्ति श्री चम्पाजी म. सा. का आग्रहपूर्ण आदेश था चातुर्मास हेतु फलोदी आने का। और चरितनायिकाजी का यह विरल गुण है कि वे बड़ों की आज्ञा अनुल्लंघनीय मानती हैं। इसलिए बीकानेर चातुर्मास की स्वीकृति न दे सकी। अस्वीकृति से बीकानेर संघ को दुःख तो बहुत हुआ पर करते क्या ? आखिर बड़े ही समारोहपूर्वक विदाई दी और साथ ही पुनः पधारने की भावभीनी विनती भी की। सैंकड़ों नर-नारियों के साथ चरितनायिकाजी ने अपनी शिष्या मंडली सहित फलोदी की ओर कदम बढ़ाये । पहली मंजिल 'नाल' पहुँचे । यह कुशल गुरुदेव का बड़ा ही चमत्कारिक स्थान है। बीकानेर संघ ने यहाँ पूजा और सार्मिवात्सल्य का आयोजन किया था । सर्व कार्य व्यवस्थित सम्पन्न होते ही उस शुष्क मरुधर प्रदेश में ज्येष्ठ मास की भयंकर गर्मी में इतनी तेज वर्षा हुई कि लोग चकित रह गये । कहने लगे-पूज्याश्री ने क्रोध-मान आदि कषायों की आग से तप्त हमारी मानस-भू को शीतल बनाया है, उसी प्रकार प्रकृति ने भी भूमि को ठण्डक प्रदान की है। यह सब पूज्याश्री की साधना का ही चमत्कार है। उनकी हार्दिक प्रसन्नता इन शब्दों में प्रगट हो रही थी। दूसरे दिन शीतल सुखद वातावरण में विहार करके आपश्री झज्झू पधारी । वहाँ भी बीकानेर संघ की ओर से स्वामी वात्सल्य था। मध्यान्ह में प्रवचन पीयूष का पान कराकर सबको सन्तुष्ट किया। कइयों ने विभिन्न प्रकार के त्याग-प्रत्याख्यान किये। । यद्यपि मरुधरा की ज्येष्ठ मास की गर्मी अति भयंकर होती है, उसमें विहार करना अति कष्टप्रद है किन्तु बीकानेर संघ की भक्ति के कारण मार्ग सुखपूर्वक पूर्ण हो गया। सानन्द फलोदी की सीमा में पहुंच गये। फलोदी चातुर्मास : वि० सं० २०२६ दो-तीन मंजिल पहले ही फलोदी के लोगों का आगमन शुरू हो गया था। साध्वी श्री जितेन्द्र श्री जी म. तथा जिनेन्द्रश्री जी म. एवं सूर्यप्रभाजी म. आदि एक मंजिल तक लेने आई। बड़े हर्षोत्साह के साथ नगरप्रवेश हुआ। जिन-दर्शन-वन्दन बरती हुईं बड़े उपाश्रय पधारों। वहाँ से वात्सल्यसरिता पू. श्री चम्पाश्री जी म. सा., श्री धर्मश्री जी म. सा., श्री रतिश्रीजी म. सा. आदि के दर्शन कर आपने स्वयं को कृतार्थ माना; हृदय आनन्द सागर में निमग्न हो गया। स्वयं पूज्येश्वरी को भी अमित हर्ष हो रहा था। चातुर्मास प्रारम्भ हुआ। यहाँ के श्रावक तत्वरुचि वाले थे। अतः आचारांग द्वितीय श्रुतस्कन्ध और 'आराम शोभा चरित्र' प्रारम्भ किया। श्रोताओं की संख्या दिनों-दिन बढ़ने लगी। यहाँ आपके अध्ययन-अध्यापन का कार्य भी सुचारु रूप से चल रहा था। मध्यान्ह में सर्व साध्वियों को अनुयोगद्वार सूत्र की वाचना देते और प्रद्युम्न चरित्र पढ़ाते थे। साध्वी श्री शशिप्रभाजी म. सा. ने पूज्यवर्याओं की निश्रा में मासक्षमण तप प्रारम्भ किया । ५ उपवास के दिन से ही शासनदेवी के गीत प्रारम्भ हो गये । बहनों में बहुत उत्साह था। सेवामूर्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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