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________________ खण्ड १ । जीवन ज्योति जिस उपलक्ष्य में यह महोत्सव हो रहा था, प्रतीक्षित बड़ी दीक्षा का वह शुभ दिन फाल्गुन शुक्ला ५ आ पहुँचा । सभी योगोद्वाहिका साध्वीजी केशर के छपे हुए कपड़े पहनकर गुरुवर्या और गुरुबहनों के बड़ी दीक्षा के स्थान चम्पावाड़ी में पहुँचे । यह स्थान लोहावट ग्राम के बाहर है तथा यहाँ पूज्य गुरुवरों एवं तपस्वीवर पूज्य छगनसागर म. सा के चरण पादुकाएँ और मूर्तियाँ हैं । इस पावन स्थल में लोगों की भीड़ पहले से ही मौजूद थी। जयपुर, जोधपुर, फलौदी आदि से बड़ी दीक्षा वाले साध्वीजी के परिवारीजन व अन्य श्रावक-श्राविका भी बड़ी संख्या में आये। लोहावट श्रीसंघ ने मुक्तहस्त ने इस विशाल समारोह में द्रव्य का सदुपयोग कर पुण्यानुबन्धी पुण्य का उपार्जन किया। इस प्रकार वि० सं० २००० फाल्गुन शुक्ला ५ को परम श्रद्धय शासन सम्राट श्रीमज्जिनहरिसागरसूरीश्वरजी के वरद हस्त से बड़ी दीक्षा का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।। बड़ी दीक्षा के उपरान्त साध्वी मंडल ने पू. गुरुवर्या के चरणों में पहुँचने के लिए जयपुर की ओर कदम बढ़ाये। मार्ग में ओसिया तीर्थ के दर्शन किये और सीधे मेड़ता रोड, पुष्कर होते हुए अजमेर पहुँचे । इधर पू. चम्पाश्रीजी म. सा., श्री धर्मश्रीजी म. सा. आदि जयपुर चातुर्मास करके दुइ दाँतरी होते हुए किशनगढ़ पहुंच चुके थे। पू. उत्तमश्रीजी म. सा. का वार्षिक तप चल रहा था। तप का पारणा वहीं हो, किशनगढ़ श्रीसंघ का ऐसा आग्रह था अतः वहीं विराज रही थीं। सज्जनश्रीजी आदि साध्वियाँ भी किशनगढ़ श्री संघ के अत्यधिक आग्रह से पारणा तक वहीं रुकी रहीं। सानन्द पारणा होने के बाद जयपुर की ओर प्रस्थान किया। दाँतरी ग्राम में सुखलालजी गोलेच्छा की पुत्री इन्द्रकुमारीजी की दीक्षा सं० २००१ की वैशाख शुक्ला ६ को सानन्द सम्पन्न हुई तथा उन्हें राजेन्द्रश्रीजी नाम देकर पू. उपयोगश्रीजी म. सा की शिष्या घोषित किया गया। ___वहाँ से नूतन दीक्षित साध्वीश्री राजेन्द्रश्रीजी म. को साथ लेकर जयपुर पधारीं । वि० सं० २००१ का जयपुर चातुर्मास चरितनायिकाजी का यह चातुर्मास पूज्या गुरुणीजी की निश्रा में हुआ। इसी चातुर्मास में कोटा के सेठ श्री केसरीसिंहजी ने अगला चातुर्मास कोटा करने की विनती की। सेठ केसरीसिंहजी हमारी चरितनायिकाजी के फूफी श्वसुर हैं और विवाह होने के पश्चात् वहीं आपको संवेगीधर्म की प्राप्ति तथा आत्म-कल्याण का मार्ग प्रशस्त हुआ था। अतः होली चातुर्मास में कोटा चातुर्मास की स्वीकृति दे दी गई। वि० सं० २००२ का कोटा चातुर्मास पू. प्रवर्तिनीजी म. सा. की आज्ञा से मण्डल संचालिका उपयोगश्रीजी म. सा. सज्जनश्रीजी म. सा. समनश्रीजी म. सा. राजेन्द्र श्रीजी म. सा. आदि ४ मार्ग के अनेक स्थानों को फरसते हुए कोटा पहुँचे तो कोटा श्री संघ एवं सेठ केसरीसिंह जी ने आपश्री का भावभरा स्वागत किया, हर्षोल्लास एवं शाही बैंड बाजों के साथ आपका नगर प्रवेश कराया गया। व्याख्यान एवं तपस्याओं की झड़ी लग गई। अठाई महोत्सव, साधर्मीवात्सल्य आदि भी खूब हुए। सेठ साहव ने बहुत पुण्यलाभ लिया। कुल मिलाकर चातुर्मास सफल रहा। चातुर्मास समाप्ति के पश्चात नूतन दीक्षिता राजेन्द्रश्रीजी की बड़ी दीक्षा के लिए सैलाना पहुंचना था । अतः कोटा से प्रस्थान करके मानपुर-मन्दसौर-जावरा होते हुए नागेश्वर पहुंचे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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