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________________ जीबन ज्योति : साध्वी शशिप्रभाश्रीजी इन सब धार्मिक प्रवृत्तियों और वातावरण का ऐसा प्रभाव हुआ कि दो बहनों में वैराग्य का अंकुर उदित हुआ। उनमें से एक थी सुखलालजी गोलेच्छा की सुपुत्री एवं श्री "ललवानी की पुत्रवधू इन्द्रादेवी । थे सद्यः परिणीता थीं और १५ वर्ष की आयु में सांसारिक भोगों को त्यागकर संयमी जीवन ग्रहण करने के लिए उद्यत हो गई थीं। दूसरी थीं-श्रीमान सोहनराजजी सा. झावक की सुपुत्री पुष्पाकुमारी । ये समुदायाध्यक्ष पू. श्री चम्पाश्रीजी की शिष्या घोषित हुई और इनका दीक्षोपरान्त नाम दिया गया-जितेन्द्रश्रीजी । विनय-वैयावृत्य करते हुए आप अपना जीवन सफल बना रही हैं। ___ इसी चातुर्मास में अभिवृद्धिरूप पंचरंगी तप, सामूहिक आयम्बिल, एकासने, अठाई ११-१५, क्षीरसागर गौतम पात्र आदि अनेक प्रकार की तपस्याओं की झड़ी लग गई। इस प्रकार फलौदी का चातुर्मास व्याख्यान, तपस्या, प्रत्याख्यानादि की अधिकता से पूर्ण सफल रहा। इसी समय (वि. सं. २००० में) आचार्य सम्राट श्रीमज्जिनहरिसागर सूरीश्वर जी म. सा. का चातुर्मास प्रसिद्ध तीर्थ जसलमेर में था। चातुर्मास पूर्णकर आपश्री फलौदी पधारे । श्रीसंघ ने बहुत ही उत्साहपूर्वक पूज्येश्वर का नगर-प्रवेश कराया। यद्यपि गुरुदेव का लक्ष्य ज्ञान भण्डार को सुव्यवस्थित कराने के लिए लोहावट पधारना था किन्तु भक्तों के अत्याग्रह के कारण कुछ दिन फलौदी ठहरे। व्याख्यान का क्रम चालू किया। प्रवचन का लाभ सज्जनश्रीजी आदि साध्वी मंडल ने भी लिया। ___ संघ पू. गुरुदेव से होली चातुर्मास वहीं फलौदी में करने की भावभरी विनय की किन्तु पू. गुरुदेव को लोहावट जाना था और चरितनायिका जी की बड़ी दीक्षा भी करवानी थी। अतः बडी दीक्षा के लिए फाल्गुन शुक्ला ५ का दिन निर्णीत कर लोहावट पधार गये। पू. उपयोगश्रीजी म. सा. को चरितनायिका जी की बड़ी दीक्षा करवाने हेतु लोहावट जाना था। किन्तु अभी २ महीने बाकी थे, फिर चरितनायिका जी पं. श्री ब्रह्म दत्त से तिलकमंजरी महाकाव्य का अध्ययन कर रही थीं और जनता का भी अत्यधिक आग्रह था, इन्हीं सब कारणों से साध्वी मंडल फलौदी में ही विराजता रहा । इसी बीच एक वयःस्थविरा साध्वीजी असाध्य रुग्ण हो गई। और हमारी चरितनायिका सज्जनश्रीजी में सेवा-वैयावृत्य की भावना अत्यधिक है, ग्लान-रुग्ण की सेवा वे अपना पुनीत कर्तव्य मानती हैं । अतः वयःस्थविरा रुग्ण साध्वी जी की सेवा में तन-मन से लग गईं। फाल्गन मास शुरू हो गया था तथा अध्ययन भी सम्पूर्ण हो गया था। अतः तत्र विराजित साध्वियों से आज्ञा लेकर आपश्री ने लोहावट की ओर प्रस्थान किया। आपश्री के साथ ही दीक्षित विबुधश्रीजी की बड़ी दीक्षा होनी थी, साथ ही अन्य सात साध्वियों की भी बड़ी दीक्षा का कार्यक्रम था । वीरश्रीजी म. सा. व हेमश्रीजी को दशवकालिक के योगोद्वहन करने थे। इस प्रकार १० साध्वीजी म. योंगोद्वहन करने वाले थे। __शुभ दिन से योगोद्वहन प्रारम्भ हो गये। इस उपलक्ष्य में दो अष्टान्हिका महोत्सव हुए अर्थात् योगोद्वहन के साथ ही पूजाओं का क्रम भी प्रारम्भ हो गया। प्रभु भक्ति का सुन्दर रसप्रद वातावरण बन गया। सज्जनश्रीजी व उपयोगश्रीजी म. सा. को पूजाओं का बहुत शौक था। जब आपथी वीणा-जैसे मधुर स्वर में पूजा गातों तो जनसमूह भक्ति रस में निमग्न होकर झूम उठता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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