________________
खण्ड १ | जीवन ज्योति
फलोदी संघ को ज्यों ही मालूम हुआ कि आप लोग पलाना पधार गयी हैं तो श्री गुलाबराय
० बरड़िया ( ० श्री उपयोग श्रीजी के सांसारिक जीवन में (पति) जीवन-साथी थे) ने वहाँ स्वामि-वात्सल्य रखा; फलोदी से आपश्री के दर्शनार्थ उमड़ आई जनता का हार्दिक स्वागत-सत्कार किया, भोजन आदि से तृप्त किया । पलाना स्टेशन पर लगभग ५०० व्यक्तियों का स्वामी - वात्सल्य था । सं० २००० का फलोदी चातुर्मास
२५
सद्ज्ञान गोष्ठी करते हुए साध्वी मंडल फलोदी की सीमा में पधारे। जय-जयनादों से हर्षोंल्लासपूर्वस आपश्री का नगर प्रवेश कराया गया । बैण्ड बाजों की मधुर ध्वनियों के साथ आप सब लोग धर्मशाला में पहुँचीं । वहाँ मांगलिक प्रवचन हुआ, जो बहुत प्रभावशाली रहा। संघ के आग्रह पर प्रतिदिन व्याख्यान देना स्वीकार किया ।
वहाँ से आप सभी शीतलपुरा के उपाश्रय में पधारीं । वहाँ विराजित पू० श्री ताराश्री जी म० सा०, हितश्री जी म० सा० आदि के दर्शन तथा विधिपूर्वक वन्दन करके आशीर्वाद प्राप्त किया ।
उन दिनों फलोदी एक प्रकार से धर्मक्षेत्र बना हुआ था । वहाँ लगभग १२०० परिवार थे और सभी धार्मिक थे । अत्यन्त सुन्दर विशाल जिनमन्दिर, ४ विशाल दादावाड़ियाँ - जिनमें भक्तजनों की भीड़ रहती, उपाश्रय भी अनेक थे जिनमें साधु-साध्वी विराजते और श्रावक-श्राविकाओं की धर्मक्रियाओं से गू ँजते रहते । यहाँ अनेक भव्यात्माओं ने चारित्रधर्म स्वीकार किया और आत्म-कल्याण के साथ-साथ पर-कल्याण करके जिनशासन को दिपाया है ।
उन्हीं में मण्डलाधिनायिका परम श्रद्धया पुण्यशालिनी पुण्यश्रीजी म. सा., जापपरायणा, ज्ञानध्याननिमग्ना पूज्या श्री ज्ञानश्रीजी म. सा. ( चरितनायिका सज्जन श्री जी की गुरुवर्या) पू. श्री उपयोगीजी म. सा. भी हैं ।
पूज्यवर्याओं की तपःपूत पावन जन्मभूमि फलोदी ( फलवद्धि) नगरी में आकर हमारी चरित नायिका ने भी स्वयं को धन्य माना ।
बड़ी धर्मशाला में प्रातः साढ़े आठ से साढ़े नौ बजे तक चरितनायिका जी प्रवचन फरमाती और मध्यान्ह में पू. उपयोगश्री जी म. सा. महाबल - मलया की चौपी मधुर स्वर में सुनातीं । प्रवचन और चौपी सुनकर श्रोतागण बहुत प्रभावित होते । प्रवचन प्रभा की रश्मियाँ विकीर्ण होने लगीं । जो एक बार सुन लेता, बार-बार आता, भीड़ बढ़ने लगी, बड़ी धर्मशाला का विशाल हॉल भी श्रोताओं से
खचाखच भर जाता ।
आपकी प्रवचन कला की विशेषता थी कि आपश्री शास्त्रीय तत्व-अपने वर्ण्य विषय को उदाहरणों से -पटकथाओं से पुष्ट करतीं, भाषा प्रांजल और प्रवाहमय थी, वाणी में ओज-तेज -संप्रेषणीयता तथा भावों को वहन करने की क्षमता थी । इसी कारण लोग आपका व्याख्यान सुनने उमड़े चले आते थे ।
फलौदी में उस समय कई तत्व रसिक, आगमज्ञ श्रावक भी थे, उनमें फूलचन्दजी झावक, मेघराजजी मुणोत, रेखचन्दजी लूँ कड़, कँवरलालजी गोलेच्छा आदि मुख्य थे । ये लोग प्रवचन तो सुनते ही थे, अतिरिक्त समय में तत्व चर्चा भी करते और अपने प्रश्नों का शास्त्रीय समाधान पाकर और भी प्रभावित होते तथा आपश्री के उज्ज्वल भविष्य की कामनाएँ करते ।
अनेक कन्याएँ आपश्री के पास प्रतिक्रमण सीखने आतीं और रात्रि शयन भी वहीं करतीं ।
खण्ड १/४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org