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________________ जीवन ज्योति : साध्वी शशिप्रभाश्रीजी ऐसी विषम परिस्थितियों में साध्वियों ने उन ग्रामों में विचरण किया। प्यार से समझाया, ओजस्वी प्रवचन दिये, रुचिकर कहानियाँ और मधुर कण्ठ से राग-रागिनियाँ, स्तवन, सज्झाय, चौपी आदि सुनाये । इन प्रयासों से वहाँ की जनता का भ्रम दूर किया । वे लोग यथार्थता से परिचित मन्दिरों के दरवाजे खुले तो वहाँ की दशा देखकर हृदय दुःख से भर गया । सफाई आदि के बाद लोग मंदिर आने लगे, मन्दिरों की रौनक पुनः लौटी । प्रतिदिन प्रातःकाल भक्तामर, मांगलिक आदि का कार्यक्रम चलने लगा । लोग दर्शन विधि भी भूल गये थे। इन्हें विधिपूर्वक दर्शन की विधि सिखाई और कइयों को तो कण्ठस्थ भी कराई । इनकी रुचि बढ़ी तो बहुत लोग पूजन-सेवा भी करने लगे। बहुत लोगों ने पुनः मन्दिरमार्गी आम्नाय को स्वीकार कर लिया और दादा गुरुदेव जिन कुशल सूरि के स्वर्ण जयन्ति वार्षिक महोत्सव पर मालपुरा भी जाने लगे । जनता यहाँ तक प्रभावित हुई कि चातुर्मास के लिए विनती करने लगी किन्तु आपश्री को बड़ी दीक्षा के लिए लोहावट फलोदी पहुँचना था, इसलिए धर्म-जागरणा और धर्म की जाहो जलाली करते हुए आगे बढ़ते गये। __मार्गस्थ ग्रामों में शासन प्रभावना करते हुए ब्यावर, जैतारण विलाड़ा, आदि में सात-सात, आठ-आठ दिन रुककर कापरड़ा तीर्थ पहुँचे। वहाँ की यात्रा करके फाल्गुन सुदी ११ को जोधपुर (सूर्यनगरी) पहुँचे। जोधपुर में साध्वी सज्जनश्रीजी की नानीसुसराल है। मूथाजी, जो इनके नानी ससुर थे, नगर के बाहर इनके द्वारा बनवाया हुआ एक मंदिर है जो मूथाजी के मन्दिर नाम से प्रसिद्ध है, साध्वीमंडल उस मंदिर में ही कुछ दिन के लिए ठहरा, प्रवचन आदि का खूब प्रभाव रहा। मूथा परिवार ने भरपूर लाभ लिया। वहाँ से आप सभी शहर में केशरियानाथजी की धर्मशाला में विराजित पूज्यवर्या श्री लालश्री जी म० सा०, श्री धर्मश्री जी म० सा०, आदि जो वहाँ ठाणापति के रूप में विराज रही थीं और श्री फूलश्री जी म० सा० के दर्शन हेतु पधारी । मधुर मिलन हुआ। उन्होंने आप लोगों का हर्षपूर्वक स्वागत किया । यद्यपि वहाँ आपका ३-४ दिन रुकने का विचार था किन्तु पूज्या साध्वियों के आग्रह, श्रावकों की भावभरी विनती ने नवपद ओली तक रुकने को विवश कर दिया। आपकी प्रेरणा से कई श्रावकों ने नव पद ओली तप की आराधना शुरू की। प्रातः श्रीपाल चरित्र श्री सज्जनश्रीजी सुनाती और मध्यान्ह में ओली को क्रिया आप तथा पूज्या उपयोगश्रीजी विभिन्न राग-रागनियों से करवाती । वातावरण बहुत ही आनन्दमय बन जाता, सभी अध्यात्मरस में डूब जाते। धर्म का रंग ऐसा जमा कि जोधपुर के श्रावक-श्राविकाओं ने चातुर्मास के लिए पुरजोर विनती की; किन्तु आपश्री पहले ही फलोदी चातुर्मास की स्वीकृति दे चुके थे अतः जोधपुर का चातुर्मास स्वीकृत न हो सका। लगभग सवा महीना जोधपुर रुककर तिंवरी-ओसिया तीर्थ की यात्रा करते हुए आपश्री तपस्वी बापजी की पुण्यभूमि लोहावट पधारे। पू० प्रेमश्रीजी म. सा., पूज्य पवित्रश्रीजी म. सा. आदि वहाँ विराजित थे। मधुर मिलन हुए । कुछ दिन वहाँ रुककर आपश्री ने फलोदी की ओर अपने कदम बढ़ाए । मार्ग में पलाना स्टेशन, जो फलोदो से मात्र २ मंजिल ही दूर था, वहाँ धर्मशाला में ठहरी । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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