SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 603
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खण्ड ५ : नारी-त्याग, तपस्या, सेवा की सुरसरि १७५ दूसरे के सहयोगी हैं । ऐसा नहीं है कि मात्र स्त्री ही पुरुष की सहभोगी है और पुरुष ऐसे किसी भी दायित्व से मुक्त है। . पुरुष ने साम, दाम, दण्ड, भेद सभी प्रकार के उपायों से स्त्री को दासता की ओर धकेला है। आवश्यकता पड़ने पर उसे पूजा भी, सोने से लादा भी, सहलाया भी। अन्ततः नारी अपनी पहचान ही भूल गई । पुरुष ने कहा नारी बुद्धिहीन है और वह मान गई । पुरुष ने कहा कि वह आत्मिक विकास के पथ पर चलने की योग्य नहीं है और वह मान गई । पुरुष ने कहा कि वह जन्म-जन्मान्तर से पुरुष की दासी है और वह मान गई । पुरुष ने कहा कि उसके विकास की चरम परिणति पुरुष के नाम पर बलि दी जाने में है और वह मान कर सहर्ष चिता पर चढ़ गई । पुरुष ने कहा कि वह अबला है और वह मानकर समर्पित होने में ही अपने को धन्य समझने लगी। नारी जब-जब भी उस निरन्तर जकड़ते धर्म, राज्य तथा समाज के शासन के विरोध में आवाज उठाती है, एक अजीब-सी प्रतिक्रिया सामने आती है-"नारी स्वतन्त्र होने के नाम पर स्वच्छन्द होने की चेष्टा करती है।" स्वतन्त्रता और स्वच्छन्दता के बीच की सीमा-रेखा क्षेत्र तय होगा। स्वच्छन्द न होने के नियम क्या केवल नारी के लिये ही हैं ? सामाजिक तथा नैतिक विधानों का पुरुष के द्वारा उल्लंघन क्या स्वच्छन्दता नहीं है ? काल के परिप्रेक्ष्य में देखें तो क्या पिछले पचास वर्षों में पुरुष समुदाय ने सभी सीमा रेखाएँ पार नहीं कर दी हैं ? फिर स्त्री पर ही स्वच्छन्दता की ओर बढ़ने का आरोप क्यों? संत्रस्त नारी के भीतर का ज्वालामुखी यदि फूट पड़ता है तब उसके भटक जाने का दोष नारी पर नहीं उसी वर्ग पर है जिसके त्रास ने उसे ज्वालामुखी बना दिया । और यह त्रास मात्र भौतिक या शारीरिक नहीं है । कोई क्षेत्र ऐसा नहीं छोड़ा गया जहाँ नारी को पीड़ित न किया गया हो। तब उसने समय रहते प्रतिकार क्यों नहीं किया ? क्या स्त्री सत्रमुच अबला है ? क्या वह शारीरिक तथा मानसिक रूप से वास्तव में पुरुष की तुलना में हेय है ? नहीं ? यथार्थ तो पारम्परिक मान्यताओं से सर्वथा विपरीत है। पिछले दशक के खेल रिकार्डों को देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि स्त्री ने पुरुष को अनेक क्षेत्रों में पीछे छोड़ दिया है। शरीर के वजन के अनुपात से पता चलता है, वह शरीर सौष्ठव (बाड़ी बिल्डिंग) के हर अंग में पुरुष से स्पर्धा जीत सकती है । दौड़, तैराकी तथा अन्य व्यायामों में उसकी स्पर्धा की क्षमता पुरुष के समान पाई गई है। बीस वर्ष पूर्व स्त्रियों को डेढ़ मील से अधिक दूरी की दौड़ में भाग नहीं लेने दिया जाता था, यह सोचकर कि इससे उसके शरीर को हानि पहुँचेगी। पाँच वर्ष पूर्व महिलाओं की मेराथन दौड ओलम्पिक खेलों में प्रथम बार शामिल हुई । दौड़ने की गति में विकास को देखें तो पाते हैं कि पिछले पन्द्रह वर्षों में महिलाओं ने अपने मेराथन दौड़ के समय में ४० मिनिट की कमी की है जबकि उसी दौरान पुरुष धावक केवल २ मिनिट ही कम कर पाये। पिछले वर्ष ही बर्फीली हवाओं में हिमांक से ५० डिग्री नीचे के तापमान में ३३ वर्षीय महिला सूसर नबुकर ने १०४६ मील कुत्तागाड़ी दौड़ लगातार तीसरी वार जीती थी। इस दौड़ में विश्व के सर्वश्रेष्ठ पुरुष प्रतियोगी भी शामिल होते हैं । खेल चिकित्सकों तथा मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि स्त्री में लम्बी अवधि तथा दूरी के खेलों के लिए स्वाभाविक शारीरिक व मानसिक अभिरुचि तथा क्षमता होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy