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________________ १०२ खरतरगच्छ के तीर्थ व जिनालय : श्री भंवरलाल नाहटा सागर मुनि राज (बाद में आचार्य) के हाथ से प्रतिष्ठित हो गया। जैसलमेर से सं० १५३६ में श्री जिनभद्रसूरिजी के पट्टधर श्री जिनचन्द्रसूरिजी महाराज के कर कमलों से प्रतिष्ठित दो प्रतिमाएँ भी प्राप्त हो गई । मन्दिर विशाल हो गया, धर्मशाला के बगल में नवरतन संज्ञक विशाल धर्मशाला है और उसके पृष्ठ भाग में भी भूखण्ड क्रयकर और विशाल करने का आयोजन है। पहले यहाँ बिहार के महत्तियाण संघ द्वारा जीर्णोद्धारित सं० १६९८ का मन्दिर था जिसके नीचे भी पुरानी नींव आदि के चिन्ह देखे गये थे । यहीं तीर्थ को जैन श्वेताम्बर पेढी है। अति प्राचीनकाल से यहाँ खरतरगच्छ का वर्चस्व रहा है । बिहार के महत्तियाण मुहल्ले में उनका मन्दिर व सैकड़ों घरों की बस्ती थी। कालान्तर में आज एक भी घर नहीं रहा तो वहाँ के मन्दिर से प्रतिमाएँ उत्थापितकर केवल अधिष्ठाता भैंरोजी रहे हैं। बिहार शरीफ में जिनालय और दादावाड़ी है जिसकी व्यवस्था वहाँ के निवासी श्री धन्नूलालजी सुचन्ती तथा बाद में लक्ष्मीचन्दजी सुचन्ती करते थे। अब ट्रस्टियों का चुनाव होता है। जल मन्दिर-यह विशाल तालाब/कमल सरोवर के बीच अत्यन्त सुन्दर कलापूर्ण संगमरमर निर्मित जिनालय है। लाल पत्थर की विशाल ६०० फुट लम्बे पुल को पार कर मन्दिर में पहुँचते हैं। मध्यवर्ती मन्दिर में बीच में भगवान महावीर के प्राचीन चरण और दोनों ओर गणधर गौतम स्वामी, सुधर्मास्वामी के चरण हैं। यहाँ दीपावली के दिन निर्वाण के लड्डू हजारों यात्रीगण चढ़ाते हैं। चारों ओर गुम्बद बने हैं जिनमें १६ सती, ११ गणधर, दादा जिनकुशलसूरि और दीपविजय गणि के चरण हैं जो खरतरगच्छ की जिनरंगसूरि शाखा के थे। गाँव मन्दिर की धर्मशाला में खरतरगच्छ की रंगसूरि शाखा का उपाश्रय है। जल मन्दिर के पास मुर्शिदाबाद धर्मशाला, नाहरजी, दुधोड़ियाजी तथा गुईबाबू की धर्मशाला है । जल मन्दिर के सामने महताब बीबी का द्वितल मन्दिर और पुराने चरण स्थापित समवशरण मन्दिर है। गाँव मन्दिर की सड़क पर जल मन्दिर के पास भव्य दादावाड़ी है जिसमें चारों दादा साहब की प्रतिमाएँ श्री उदयसागरजी द्वारा प्रतिष्ठित हुई है। जल मन्दिर से सड़क के किनारे पर जिनयशःसूरिजी महाराज का समाधि मन्दिर है जिसमें उनकी प्रतिमा विराजमान है । उन्होंने ५३ उपवास करके पावापुरी में ही स्वर्गगति प्राप्त की थी। पावापुरी के सभी मन्दिर, दिगम्बर मन्दिर और धर्मशाला तथा सभी स्थान तीर्थ भण्डार की भूमि पर निर्मित हैं। जैन संघ द्वारा नाहरजी की दानशाला में प्रतिवर्ष चावल, कम्बलें आदि गरीबों को बाँटा जाता है। दीवाली के दिन गांव मन्दिर से भगवान की सवारी निकलती है । पटना--यह प्राचीन पाटलीपुत्र नगर और बिहार प्रान्त की राजधानी है। यहाँ पर सुदर्शन सेठ के शील प्रभाव से शुली का सिंहासन हुआ था और कोशा वेश्या के यहाँ स्थूलिभद्र स्वामी का चातुर्मास हुआ था। गुलजार बाग में ये दोनों मन्दिर बने हुए हैं। नगर में जैन श्वे. मन्दिर और धर्मशाला है। महाराज कोणिक-अजातशत्र के बाद राजा उदायी ने इसे मगध की राजधानी बनाया । अंगदेश भी इसी के अन्तर्गत था। यहाँ १४ पूर्वधर भद्रबाहु स्वामी, वज्रस्वामी आदि अनेक महान जैनाचार्यों ने विचरण किया है। गुणायाजी-नवादा स्टेशन से पावापुरीजी जाते एक मील पर सड़क के पास ही यह तीर्थ है । तालाब के बीच में सुन्दर श्वेताम्बर जैन मन्दिर बना हुआ है। धर्मशाला में से पुल द्वारा जाने का मार्ग है। मन्दिर में प्राचीन चरण पादुकाएँ तथा प्रतिमाएँ हैं। यहाँ गौतम स्वामी को केवलज्ञान हुआ था। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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