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________________ खण्ड ३ : इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठ १०३ क्षत्रियकुण्ड–नवादा से जमुई रोड पर सिकन्दरा गाँव से दो मील पर लिछुबाड़ नामक गाँव में इस तीर्थ की तलहट्टिका रूप धर्मशाला व महावीर स्वामी का जिनालय है। यहाँ धर्मशाला में ठहरने की सुविधा है तथा रसोडा-भोजनशाला भी चालू है। यहाँ से ३ मील जाने पर कुण्डघाट बाँध और नदी के दोनों ओर भगवान के दीक्षा व च्यवन कल्याणक के प्राचीन मन्दिर है। सात पहाड़ी का चढ़ाव पार करने पर भगवान के जन्म स्थान का भव्य मन्दिर आता है जहाँ डेढ़ हजार वर्ष प्राचीन महावीर स्वामी की मनोज्ञ प्रतिमा है। लोधामानी जो यहाँ से दो मील है सिद्धार्थ राजा के महल के खण्डहर है जहाँ भगवान का जन्म हुआ था। क्षत्रियकुण्ड पहाड़ पर जीर्णोद्धार, कराके श्री कन्हैयालालजी वैद ने कमरे, स्नान घर और सुन्दर बगीचा बना दिया है। ___ काकन्दी-ये जमुई से चार मील दूर प्राचीन गाँव है जहाँ नौवें तीर्थंकर श्री सुविधिनाथजी की जन्म कल्याणक भूमि है । मन्दिर व धर्मशाला का जीर्णोद्धार हो रहा है । यहाँ सं० १५०४ की प्रतिमा है। एक अति प्राचीन १८०० वर्ष प्राचीन प्रतिमा महापण्डित राहुल सांकृत्यायन ने देखी थी जो बहुत वर्ष पूर्व ही गायब हो गई थी। अनेक तीर्थमालाओं में इस तीर्थ का उल्लेख है। चम्पापुरी--यह वासुपूज्य भगवान के पंच कल्याणक का महातीर्थ है। स्टेशन भागलपुर और नाथनगर से निकट है। कोणिक ने अंग-मगध की राजधानी कायम की थी। चम्पानाले के पास धर्मशाला में दो मन्दिर व दादाजी का स्थान भी है। भगवान की निर्वाण भूमि मन्दारहिल बतायी जाती है जो यहाँ से ३० मील है, वहाँ दिगम्बर जैन मन्दिर भी है। भागलपुर-लूप लाइन के स्टेशन के सामने ही जैन धर्मशाला में दूगड़ परिवार का बनाकर जैन संघ को समर्पित किया हुआ जैन मन्दिर भी है । भागलपुर जैन संघ देख-देख रखता है । मिथिलानगरी नमिनाथ स्वामी एवं मल्लिनाथ स्वामी की चार कल्याणक भूमि है। वहाँ की प्रतिमा व चरण पादुकाएँ लाकर भागलपुर मन्दिर में रख देने से तीर्थ विच्छेद हो गया है । अब नेपाल की भूमि में दिगम्बर समाज तीर्थ स्थापन कर रहा है । श्वेताम्बर समाज को भी तीर्थ स्थापन करना आवश्यक है। श्री जिनहर्षसूरिजो महाराज के प्रतिष्ठित मूर्ति चरणों के मिथिला तीर्थ में प्रतिष्ठित करना आवश्यक है । __ बराकड़-यह गिरीडीह से सम्मेतशिखरजी के मार्ग में भगवान महावीर स्वामी की केवलज्ञान भूमि है जहाँ धर्मशाला में मन्दिर ऋजुवालुका (बराकड़) नदी के तट पर बना हुआ है । दादा साहब के चरण भी प्रतिष्ठित हैं। गिरीडीह-स्टेशन के सामने जैन धर्मशाला में दुधोडिया परिवार द्वारा निर्मापित जिनालय है। अब धर्मशाला दूगड़ परिवार की निजी सम्पत्ति घोषित हो गई है। सम्मेतशिखर महातीर्थ-पारसनाथ पहाड़ी नाम से प्रसिद्ध यह पवित्र स्थान २० तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि है । यहाँ से असंख्य मुनि मोक्ष गये हैं । बीस तीर्थंकरों की निर्वाण स्मृति में प्राचीन काल से टूकें बनी हुई हैं जिनका समय-समय पर जीर्णोद्धार होता रहा है । सर्वत्र प्रभु के चरण पादुके प्रतिष्ठित हैं। गौतमस्वामी की ट्रॅक पहले आती है । जलमन्दिर नामक स्थान में विशाल मन्दिर में प्रभु प्रतिमाएं हैं । जलमंदिर को दो सौ वर्ष पूर्व अजीमगंज के सामसुखा सुगालचंद आदि ने बनवाया था जिनके द्वारा अजीमगंज में भी दादासाहब आदि के स्थान बने थे । मन्दिर की प्रतिमाएँ सामसखा परिवार ने सूरत में हई प्रतिष्ठा के समय अंजनशलाका करके मँगवाई थी। पार्श्वनाथ स्वामी की टोंक पर कलकत्ता के राय बद्रीदास बहादुर ने सौध शिखरी सर्वोच्च जिनालय निर्माण कराया था। अवशेष सभी टोंके तथा जलमन्दिरादि अभी सं० २०१७ में साध्वीजी रजनश्रीजी के सदुपदेश से जीर्णोद्धारित हुए थे । सम्मेत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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