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________________ खण्ड ३ : इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठ गांगाणी-यहाँ एक मन्दिर है, जैनों की बस्ती न रहने से मन्दिर खाली है। सं० १६६२ में यहाँ भूमिगृह से अति प्राचीन मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं जों सम्राट संप्रति और चन्द्रगुप्त द्वारा निर्मापित थीं। यहाँ अर्जुनहेम (प्लेटिनम) की मूर्ति भी मिली थी, इससे अर्जुनपुरी नाम प्रसिद्ध था। प्राचीन अभिलेखों की लिपि अम्बिका देवी की सहायता से जिनराजसूरि ने पढ़ी थी। पाली-यह स्थान भी खरतरगच्छ का केन्द्र और आद्यपक्षीय खरतरगच्छ के श्रीपूज्यों की गादी रही है । मन्दिर, उपाश्रय, दादावाड़ी आदि हैं । साधु-साध्वियों के चातुर्मास, उपाधान आदि होते हैं । बालोतरा-यहाँ खरतरगच्छ की अच्छी बस्ती और भावहर्षीय शाखा के श्रीपूज्यों की गद्दी रही है । मन्दिर, उपाश्रयादि सभी हैं। बाड़मेर-यहाँ खरतरगच्छ के सहस्राधिक घर हैं और पर्याप्त सम्पन्न हैं । जिनालयादि सभी धर्मस्थान पर्याप्त प्रसिद्ध हैं। नाकोड़ाजी तीर्थ-यह महातीर्थ पहाड़ों के बीच अत्यन्त प्रभावशाली है जहाँ श्रीकीतिरत्नसूरिजी के कुटुम्बी संखवाल (संखलेचा) श्रावकों के आवास थे । अधिष्ठायक नाकोड़ा भैरव प्रत्यक्ष चमत्कारी हैं। सामने ही कीर्तिरत्नसूरि जी की मूत्ति विराजमान है । दो दादावाड़ियाँ व पहाड़ी पर नेमिनाथ भगवान हैं । राजस्थान के तीर्थों में सर्वाधिक आमदनी वाला और सुव्यवस्थित है, जहाँ से लाखों रुपया बाहर के मन्दिरों के जीर्णोद्धारादि में, साहित्य प्रकाशन आदि में लगते रहते हैं । पहले इसकी व्यवस्था बालोतरा वालों के हाथों में थी। ___ नागौर - यह भी अति प्राचीन नगर है जहाँ खरतरगच्छ का अच्छा प्रभाव रहा है। श्री जिनवल्लभ सूरिजी प्रतिष्ठित प्राचीन मन्दिर था । अन्य मन्दिर, दादावाड़ी और उपाश्रयादि प्रसिद्ध हैं। फलौदी पार्श्वनाथ तीर्थ-यह तीर्थ मेड़ता रोड स्टेशन के पास है। यह अति प्राचीन है । यहाँ सभी गच्छों का प्रभाव रहा है । खरतरगच्छ युगप्रधानाचार्य गुर्वावली के अनुसार यहाँ श्री जिनपतिसूरि ने भी प्रतिष्ठा सं० १२३४ में कराई थी जो मुस्लिमों द्वारा उपद्रवित होने पर भी होना सम्भव है । यहाँ हरिसागरसूरि जी का स्वर्गवास हुआ, उन्होंने छात्रालय स्थापित किया व दादावाड़ी भी है। मेड़ता-यह प्राचीन नगर जैनों की पर्याप्त बस्ती वाला रहा है । चोपड़ा आसकरण के परिवार द्वारा निर्मापित शान्तिनाथ जिनालय की प्रतिष्ठा श्री जिनराजसूरि-जिनसागरसूरि ने करवाई थी। जिनसिंह सूरिजी महाराज का स्वर्गवास यहीं पर हुआ था । सुप्रसिद्ध योगिराज श्री आनन्दघन जी महाराज का जन्म और महाप्रयाण भूमि भी यही है। श्री कलापूर्णसूरि जी उनका स्मारक निर्माण का प्रशंसनीय कार्य कर रहे हैं । स्टेशन के निकट दादाजी का स्थान है। बिलाड़ा- यह अकबर प्रतिबोधक श्री जिनचन्द्रसूरि चतुर्थ दादा की स्वर्गवासभूमि है । उपाश्रय, मन्दिरादि नगर में है। अभी प्र. श्री विचक्षणश्री जी म. की प्रेरणा से नई दादावाड़ी, जिनालय व यात्रियों के ठहरने के कमरे आदि बने हैं। श्री कान्तिसागरजी महाराज ने उसकी प्रतिष्ठा करवाई । आश्विन बदी २ को मेला भरता है। अजमेर--यह दादा श्री जिनदत्तसूरिजी की निर्वाण भूमि है । यहाँ अष्टम शताब्दी के पश्चात् काफी उन्नति हुई है । आषाढ़ सुदी ११ को मेले में हजारों की उपस्थिति होती है । भोजनशाला व छात्रों के रहने की व्यवस्था है । वृद्धाश्रम भी खोला गया है। नगरों में उपाश्रय मंदिर आदि हैं। उत्साही कार्यकर्ता श्री अमरचन्द जी लूणिया, महेन्द्र पारख आदि अच्छी सेवायें दे रहे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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