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खरतरगच्छ के तीर्थ व जिनालय : श्री भंवरलाल नाहटा
लौद्रव-पार्श्वनाथ तीर्थ-जैसलमेर से १० मील पश्चिम की ओर लौद्रवाजी तीर्थ है जहाँ प्राचीन काल में भाटियों की राजधानी थी। सं० १२१२ में जैसलमेर बसने के बाद एकदम उजड़ गया। सगर राजा के पुत्र श्रीधर और राजधर ने जैन बनकर जिनालय वनवाया। फिर विप्लव में नष्ट हो जाने से सेठ खमसी ने जीर्णोद्धार कराया । पुत्र जूनसी ने जो १७वीं पीढ़ी में था, उसके पौत्र थाहरूशाह भनशाली ने सं० १६०५ में जीर्णोद्धार कराया। एक विशाल कोट में पंचमेरु या पंचअनुत्तर विमान के प्रतीकस्वरूप मंदिर बने । इसकी प्रतिष्ठा श्री जिनराज सूरिजी ने कराई । चारों ओर के मन्दिर सं० १६६३ में प्रतिष्ठित हुए। शतदल पद्म यंत्र और पट्टावली पट्टक बड़े महत्वपूर्ण हैं । भमती के शिखर के बाह्य भाग में अधिष्ठाता नागराज धरणेन्द्र की बाँबी है, जो कभी-कभी स्वयं भक्तों को दर्शन देते हैं । अष्टापदजी पर धातुमय कल्पवृक्ष विशाल और दर्शनीय है । दादावाड़ी संलग्न धर्मशाला में है।
ब्रह्मसर-यह स्थान जैसलमेर से उत्तर की ओर चार कोश पर है, जहाँ स्वनामधन्य श्री मोहनलालजी महाराज के सदुपदेश से सं० १९४४ में बागरेचों द्वारा निर्मापित जिनालय है । एक मील दरी पर दादाजी का स्थान है । लूणिया परिवार को सुरक्षित देरावर से निकालकर लाने की चमत्कारिक घटना प्रसिद्ध है।
देवीकोट-यह जैसलमेर से १२ कोश दक्षिण-पूर्व की ओर है । अब जैनों की बस्ती नहीं रही। जिनालय सं० १८६० में जिनहर्षसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित है। गाँव से बाहर दादाजी का स्थान है । जो सं० १८७४ में प्रतिष्ठित है।
पोकरण- यहाँ तीन जिनालय हैं । अब ओसवाल लोग बाहर जाकर बस गये, थोड़े से माहेश्वरी जैन धर्माबलम्बी हैं । मन्दिरों की व्यवस्था जैसलमेर लौद्रवा तीर्थ की पेढ़ी के अन्तर्गत है । उपाश्रय में दादाजी के चरण और ज्ञानभंडार भी हैं।
फलौदी-यह नगर खरतरगच्छ का केन्द्र होने से पचासों साधु-साध्वी इसी पुण्यभूमि से खरतरगच्छ में दीक्षित हुए । मन्दिर व दादावाड़ियों आदि का प्रभाव पर्याप्त प्रसिद्ध है । यहाँ से अनेकशः यात्री संघ भी तीर्थयात्रा हेतु निकले हैं ।
खीचन-यहाँ भी खरतरगच्छ का पर्याप्त प्रभाव रहा है । मन्दिर उपाश्रय आदि हैं, दादावाड़ी . भी हैं।
लोहावट-यहाँ के मन्दिर उपाश्रय ज्ञान-भंडारादि प्रसिद्ध हैं। खरतरगच्छ के अनेक घर बाहर जा बसे हैं फिर भी गच्छ का अच्छा प्रभाव है, चातुर्मासादि होते रहते हैं।
ओसियांतीर्थ-यहाँ का प्राचीन जिनालय ओसवालों की उत्पत्ति होने से पर्याप्त प्रसिद्ध है। मन्दिर का जीर्णोद्धार स्वनामधन्य मोहनलाल जी महाराज के उपदेश से हुआ। यहाँ का प्रसिद्ध विद्याधाम खरतरगच्छ की महिमामण्डित है।
जोधपुर-यह राजस्थान का प्रमुख नगर है, खरतरगच्छ की अच्छी बस्ती है । कई जिनालय, ज्ञान-भंडार और दादावाड़ियाँ अवस्थित हैं । साधु-साध्वियों के चातुर्मास होते रहते हैं।
कापरड़ाजी-जोधपुर से ३० मील सुप्रसिद्ध सौधशिखरी जिनालय वाला तीर्थ है। सुप्रसिद्ध राज्याधिकारी भानाजी भंडारी ने इसे तीन मंजिल ऊँचा निर्माण कराया । अब यहाँ जैनों के घर न रहने से राजस्थान के नगरों की कमेटी ही व्यवस्था करती है ।
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