SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 398
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ह४ खरतरगच्छ के तीर्थं व जिनालय : श्री भंवरलाल नाहटा बीकानेर - राजस्थान के सभी नगरों में खरतरगच्छ का वर्चस्व रहा है। बीकानेर बसने से पूर्व भी कई स्थान अतिप्राचीन थे। रिणी, राजलदेसर, नौहर, भटनेर, छापर, पल्लू आदि अनेक स्थानों में जिनालय प्रसिद्ध थे । पूगल, सोरूड़ा, छापर, ददरेवा, पल्लू आदि में अब मन्दिर नहीं रहे हैं । राव बीकाजी ने बीकानेर बसाया तभी से मन्दिरों का निर्माण होना प्रारम्भ हो गया था। सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में चार मन्दिर बने जिनमें तीन मन्दिर खरतरगच्छीय महानुभावों ने के एक कंवलागच्छ का था । सोलहवीं शताब्दी में चिन्तामणिजी, भाण्डासरजी और नमिनाथजी तोनों मन्दिर शिल्पकला की दृष्टि से उच्च कोटि के थे । भांडासर जी का मन्दिर तो त्रैलोक्य दीपक नाम से प्रसिद्ध था । सतरहवीं शताब्दी में समयसुन्दर जी ने बीकानेर नगर की तीर्थरूप में गणना की है - बीकानेरज वंदिये, चिरनंदिये रे अरिहंत देहरा आहे । तीरथ ते नमु रे । ये चार मन्दिर १७वीं शती में बने । बाद में १६वीं शताब्दी में सब मिलाकर ३५ मन्दिर हो गये । जांगल देश की राजधानी जांगलू थी जिसका अजयपुर उपनगर था । वहाँ की एक ही मिती में प्रतिष्ठित दो प्रतिमाएँ सं० १९७६ मिती मिगसर वदी ६ के विधित्यों की हैं। विक्कमपुर प्राचीन नगर भी बीकानेर रियासत के भूभाग में है जहाँ सवालाख नव्य जैन प्रतिबोध में मन्दिर प्रतिष्ठाएँ आदि श्रीजिनदत्तसूरि जी महाराज ने की थीं । द्वितीय दादा की जन्मभूमि भी वहीं है जहाँ अब कुछ भी पुरातत्व नहीं बचा है। बीकानेर रिसायत में चूरू, सुजानगढ़ आदि के जिनालय कलापूर्ण व दर्शनीय हैं । श्रीचिन्तामणिजी के भूमिगृह में ११०० जिनप्रतिमाएँ इतिहास की अमूल्य निधि हैं । विशेष जानने के लिए हमारा "बीकानेर जैनलेख संग्रह " ग्रन्थ द्रष्टव्य है । बीकानेर से अनेकशः महातीर्थों के संघ निकले हैं। बीकानेरी संघ द्वारा निर्माण कराये हुए जिनालय तीर्थों में सर्वत्र हैं । सम्मेतशिखर, शत्रुंजय, सौरीपुर, गिरनार आदि में उसके प्रमाण विद्यमान हैं । शत्रुंजय पर खरतरजयप्रासाद, तलहटी की सतीवाव सं. १६५७ में लिंगागोत्रीय सेठ सतीदास की अमरकीर्ति है । खरतरवसही तो कर्मचन्द्र वच्छावत के पूर्वजों द्वारा निर्मापित है । मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र के पूर्वजों ने पाटण, भीलडियाजी, कुडलू, जैसलमेर, लाहौर, अमरपुर, बीकानेर, ताल, फलौदी, सीरोही, तोसाम, सांगानेर आदि स्थानों में अनेक जिनालय व दादावाडियों का निर्माण कराया था । सम्राट अकबर ने समस्त तीर्थ मन्त्रीश्वर के अधीन कर दिये थे - " मन्त्री साच्चक्रिरे नूनं, पुंडरीकाचलादयः " ( कर्मचन्द्र मंत्रि वंश प्रबन्ध) । सुजानगढ़ का मन्दिर पनाचन्दजी सिंघी के परिवार द्वारा बनवाया हुआ है । बीकानेर ज्ञान भण्डारों में हस्तलिखित ग्रन्थ अच्छे परिमाण में उपलब्ध हैं । कोटा, बूँदी, अलवर, भरतपुर आदि अनेक नगर खरतरगच्छ के ऐतिहासिक महापुरुषों की सेवा प्रोत हैं । जयपुर तो राजस्थान की राजधानी है । वहाँ की सेवायें भी कम नहीं हैं । सांगानेर, मालपुरा आदि स्थान तथा राजस्थान के सैकड़ों गाँव अपने इतिहास में स्वस्थान में अधिवास करने वाले धर्मप्राण श्रावकों की सेवा अपने ज्ञात-अज्ञात इतिवृत्त में स्वर्णाक्षरों से मण्डित हैं । सीमित स्थान में उनका उल्लेख करना कठिन है । अलवर का रावण पार्श्वनाथतीर्थ का शिलालेख अरड़क सोनी गोत्र के खरतर - उच्छीय श्रावक की यशोगाथा वर्णन करता है । चूरू का मन्दिर, दादावाड़ी और उपाश्रय यतिवर्य ऋद्धिकरणजी की त्यागभावना का ज्वलन्त उदाहरण है । स्थली प्रदेश में सर्वत्र जिनालय, दादावाड़ियाँ हैं पर साधुओं के विहार के अभाव में मूर्तिपूजक हो गए । मालव प्रदेश, वागड़ आदि सभी स्थान खरतरगच्छ के केन्द्र थे । उज्जैन, इन्दौर, धार, सैलाना, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy