________________
खण्ड ३ : इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठ
८३
पुर तक यात्रा कर वापस आये और बिहार नगर में चातुर्मास किया । इधर आचार्यश्री अनेक स्थानों, तीर्थो, पाटण, साचौर, शंखेश्वरजी आदि में विचर कर ध्वजारोहण, उद्यापना उत्सव कराके भीमपल्ली आये और बीजापुर में चौमासा कर जावालिपुर आये ।
सं० १३५४ ज्येष्ठ बदी १० को जावालिपुर में अनेक महोत्सव हुए । सिरियाणक गाँव में महावीर प्रासादोद्धार कर बड़े ठाठ से सं० १३५५ महावीरप्रभु स्थापित किए। सं० १३५८ जैसलमेर के पार्श्वनाथ विधिचैत्य में समेतशिखरादि बिम्बों की प्रतिष्ठा की । सं० १३६१ में शांतिनाथ विधिचैत्य में वै० सु० ६ को जाबालिपुर सवालक्ष देश के संघ की उपस्थिति में श्रीपार्श्वनाथादि नाना बिम्बों की प्रतिष्ठा की ।
सं० १३६६ में खंभात के सा० जेसल ने अपने बड़े भाई तोलिय के संघपति पद और लघुभ्राता सा० लाखू के पृष्ठरक्षक पद संभालने पर श्रीपतन, भीमपल्ली बाहड़मेर, शम्यानयनादि के संघ एकत्र होने पर स्तंभ तीर्थ से देवालय प्रचलन महोत्सव किया। आचार्यश्री जिनचन्द्रसूरिजी साधु-साध्वियों सहित पीपलाउली गाँव से शत्रुंजय महातीर्थ पर्वत का अवलोकन करते हुए पहुँचे । सा० सलखण के पुत्र मोकल ने इन्द्रपद महोत्सव विस्तारपूर्वक किया । शत्रुञ्जय यात्रा के पश्चात् कटकोपद्रव रहते हुए भी सौराष्ट्र में भ० नेमिनाथ और अंबिकादेवी के सान्निध्य से सुखपूर्वक गिरनारजी की तलहटी में पहुँचे । सा० कुलचन्द्र के पुत्र बीजड़ ने इन्द्र पद लिया । भगवान् नेमिनाथ को नमस्कार कर संघ सहित खम्भात पहुँचे । सा० जैसल ने देवालय और पूज्यश्री आदि का प्रवेश महोत्सव कर चातुर्मास कराया । बीजापुर में सं० १३६७ में वासुपूज्य स्वामी को वंदन किया। मिती माघ कृष्णा को श्रीमहावीर स्वामी आदि के शैलमय बिम्बों की बड़े समारोह से प्रतिष्ठा की ।
इसके पश्चात् भीमपल्ली के सेठ सामल ने अनेक नगरों के संघ को आमंत्रित कर बड़े विस्तार से तीर्थ यात्री संघ का आयोजन श्रीजिनचन्द्रसूरिजी महाराज के नेतृत्व में किया । चैत्र शुक्ला १३ को देवालय के साथ संघ का प्रस्थान हुआ । श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थ में वन्दना कर आठ दिन पर्यन्त महामहोत्सव का आयोजन कर भक्ति की । वहाँ पाटला ग्राम के श्री नेमिनाथ तीर्थपति को नमस्कार कर १६ साधु और १५ साध्वियों सहित संघ शत्रुंजय गिरिराज की यात्रा कर समारोहपूर्वक गिरनार तीर्थ पहुँचे । गीत-गान और वाजित्रादि के साथ तीर्थों की यात्रा की । स्वधर्मीवात्सल्य और अवारित सत्र चालू थे । भिन्न-भिन्न श्रावकों व संघपति आदि ने जो लाभ लिया वह गुर्वावली में विस्तार से वर्गित है । वायड़ गाँव में श्री महावीर (जीवित) स्वामी की यात्रा बड़े विस्तार से करके श्रावण कृष्णपक्ष में भीमपल्ली में प्रवेशोत्सव हुआ ।
श्रीजिनचन्द्रसूरिजी महाराज भीमपल्ली से जाबालिपुर पधारे। ज्येष्ठ बदी १० को दीक्षा मालारोपणादि अनेक महोत्सव हुए। इसके पश्चात् म्लेच्छों द्वारा जावालिपुर का भंग होने से अनेक ग्रामों के संघ को सन्तुष्ट कर रूणापुर से ३०० गाड़ों के संघ सहित श्रीफलवर्धी तीर्थयात्रार्थं पधारे। म्लेच्छ व्याकुल सवालक्ष देशरूपी खारे समुद्र में भगवान् पार्श्वनाथ की अमृतकप तुल्य बड़े समारोहपूर्वक यात्रा महोत्सव हुआ । फिर नागौर संघ की विनती से नागौर पधारे ।
इसके पश्चात् सिन्धु देश के ग्राम नगरों में विचरकर फिर संवत् १३७४ के शेष में लौटे । कन्यानयन- वागड़ देश और सपादलक्ष देश के संघसंह द्वितीय बार फजवद्धि तीर्थ की यात्रा की । अवारित
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org