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________________ खरतरगच्छ के तीर्थ व जिनालय : श्री भंवरलाल नाहटा सत्र और स्वधर्मी वात्सल्यादि का बड़ा ठाठ रहा। फिर तीसरी बार दिल्ली, हरियाणा-वागड़ सवालक्ष, मरुधर देश के संघ सहित अत्यन्त ठाट-बाट से यात्रार्थ पधारे। संवत् १३७५ वैशाख बदी ८ को मन्त्रीदलीय ठा० प्रतापसिंह के पुत्र अचल ने सुल्तान कुतुबुद्दीन से फरमान प्राप्त कर नागौर, रूण, कोसवाणा, मेड़ता, नौहा, झंझणु, नरहड़, कन्यानयन, आसिका (हाँसी), दिल्ली, धामइना, यमुनापार नाना स्थान वास्तव्य संघ के साथ हस्तिनापुर, मथुरा यात्रार्थ श्रीजिनचन्द्रसूरि सपरिकर यात्रा की। श्री महावीर जी, कन्नाणा तीर्थ में आठ दिन तक अठाई महोत्सवादि महान् धर्मप्रभावक कार्य किये । यमुना पार वागड़ देशीय संघ के ४०० घोड़े, ५०० गाड़ियाँ, ७०० वृषभ थे। चातुर्मास खंडासराय में करने को रुके फिर मथुरा तीर्थ की यात्रा भी बड़े विस्तार से की। मथुरा में सुपार्श्व, पाव और महावीर तीर्थंकरों की यात्रा हुई। अवारित सत्र और स्वधर्मीवात्सल्यादि का बड़ा ठाठ रहा । दिल्ली में दादा श्रीजिनचन्द्रसूरि स्तूप की दो बार समारोहपूर्वक यात्रा की। लौटते हुए फिर कन्यानयनीय महावीर जी आदि तीर्थों की यात्रा कर एक मास ठहरे फिर २४ दिन मेड़ता में रुककर कोसवाणा पधार कर स्वर्गवासी हुए। सं० १३७६ में गुजरात की राजधानी पाटणतीर्थ में शान्तिनाथ विधिचैत्य में बड़े भारी समारोह से प्रतिष्ठोत्सव हुआ । इसी दिन शत्रुजय तीर्थ पर आदिनाथ विधिचैत्य का निर्माण आरम्भ हुआ। वहाँ के लिए भी पाषाण; रत्न और धातुमय अनेक जिनबिम्ब, गुरुमूर्तियों आदि की प्रतिष्ठा श्रीजिनकुशलसूरिजी महाराज ने की। बीजापुर के वासुपूज्य तीर्थ की यात्रा करने पधारे। तीसरा चौमासा भी पाटण में हुआ। शत्रुजय के मानतुग विहार-खरतरवसही के मूलनायक हेतु २७ अंगुल की अति उज्ज्वल बिम्ब निर्माण हुआ और अनेक पाषाण व धातुमय बिम्ब गुरुमूर्तियों की प्रतिष्ठा हेतु शत्रुजय गिरराज यात्रा की, कुकुम पत्रिकाएँ भेजी गई और दिल्ली के रयपति आदि अनेक श्रावक श्रीजिनकुशलसूरिजी का आदेश प्राप्त कर सुलतान गयासुद्दीन तुगलक के फरमान के साथ सभी नगर प्रान्तों के संघसहित पाटण आये । उन्हें श्रीजिनकुशलसूरिजी १७ साधु और १६ साध्वियों का साथ/सान्निध्य प्राप्त हो गया। यह संघ कन्यानयन के श्रीमहावीरजी, नरभट के नवफणा पार्श्वनाथ, फलौदी, पार्श्वनाथ, जालौर-स्वर्णगिरि आदि मार्गवर्ती तीर्थों की यात्रा करके आया था। पाटण से मार्ग में श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ की यात्रा कर आषाढ़ बदी ६ के दिन सूरिजी श्री शत्रुजय महातीर्थ पहुंचे । श्री जिनकुशलसूरिजी ने विद्वत्तापूर्ण नव्यस्तोत्र-स्तुति रचना द्वारा प्रभु को नमस्कार किया। प्रतिष्ठा महोत्सव अभूतपूर्व उत्साह से समारोहपूर्वक हुआ। मिती आषाढ़ बदी ७ को जलयात्रा करके आदिनाथ भगवान् के मूल मन्दिर में नेमिनाथस्वामी आदि के अनेक बिम्ब व अनेक गुरुमूर्तियाँ समयशरणादि की प्रतिष्ठा बदी ६ को हुई। हजारों स्त्री-पुरुषों ने नवमी के दिन नन्दि महोत्सवपूर्वक व्रत ग्रहण किये। संघ ने बड़े आडम्बरपूर्वक प्रयाण किया और निरुपद्रव श्री गिरनार जी पहुंचे। यहाँ भी आषाढ़ चौमासी के दिन तीर्थपति नेमिनाथ भगवान् की नवनिर्मित स्तुति स्तोत्रों से वन्दन किया। श्रावकों ने तलहटी में आकर तीन दिन तक स्वर्णाभरण, वस्त्रादि प्रचुर परिमाण में वितरित किये। फिर समस्त संघ निराबाध रूप से श्रावण शुक्ल १३ को पाटण नगर के उपवन में पहुँचे । संघ के समाधान हेतु १५ दिन विराजकर बड़े भारी समारोह से भाद्रपद वदी ११ के दिन पाटण नगर में प्रवेश किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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