SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 377
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खण्ड ३ : इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठ किया । यही साध्वी रत्नश्री आगे चलकर गच्छ प्रवर्तिनी बनीं । वि०सं० १२६० में आचार्यश्री ने लवणखेड में आर्यां आनन्दश्री को महत्तरा पद प्रदान किया। इसी नगरी में वि०सं० १२६३ में विवेकश्री, मंगलमति, कल्याणश्री और जिनश्री ने उनके वरदहस्त से भागवती दीक्षा ली और साध्वी धर्मदेवी ने प्रवर्तिनी पद प्राप्त किया। लवणखेड़ में ही वि०सं० १२६५ में आसमति और सुन्दरमति तथा वि०सं० १२६६ में विक्रमपुर में ज्ञानश्री ने उनसे साध्वी दीक्षा ली। वि०सं० १२६६ में चन्द्रश्री और केवलश्री को साध्वी-दीक्षा दी गयी और साध्वी धर्मदेवी को महत्तरा पद प्रदान कर उन्हें प्रभावती के नाम से प्रसिद्ध किया गया । वि०सं० १२७५ में आचार्यश्री ने भुवनश्री, जगमति और मंगलश्री को भागवती दीक्षा देकर श्रमणीसंघ में प्रविष्ट कराया। इस प्रकार स्पष्ट है कि आचार्य जिनपतिसूरि के समय खरतरगच्छीय श्रमणीसंघ में पर्याप्त साध्वियाँ थीं। आचार्य जिनपतिसूरि के स्वर्गारोहण के पश्चात् जिनेश्वरसूरि (द्वितीय) खरतरगच्छ के प्रधान आचार्य बने ।' इनके समय में भी अनेक महिलाएँ साध्वीसंघ में प्रविष्ट हुईं। इन्होंने वि०सं० १२७६ में श्रीमालपुर में ज्येष्ठ सुदी १२ को चारित्रमाला, ज्ञानमाला और सत्यमाला को साध्वी दीक्षा दी। वि०सं० १२७६ माघ सुदी पंचमी को आपने विवेकश्री गणिनी, शीलमाला गणिनी और विनयमाला गणिनी को संयम प्रदान किया। वि०सं० १२८० माघ सुदि द्वादशी को श्रीमालपुर में पूर्णश्री तथा हेमश्री और वि०सं० १२८१ वैशाख सुदी ६ को जावालिपुर में कमलश्री एवं कुमुदश्री को साध्वी दीक्षा प्रदान की गई। वि०सं० १२८३ माघ वदि ६ को वांगसेर में आर्यामंगलमति प्रतिनी पद पर प्रतिष्ठित की गयीं।11 वि०सं० १२८४ में बीजापुर में वासुपूज्य जिनालय में प्रतिमा प्रतिष्ठा के अवसर पर श्रावकों द्वारा भव्य महोत्सव का आयोजन किया गया ।12 इसी नगरी में वि०सं० १२८४ आषाढ़ सुदी द्वितीया को आचार्यश्री ने चारित्रसुन्दरी और धर्मसुन्दरी को साध्वी दीक्षा प्रदान की ।13 वि०सं० १२८५ ज्येष्ठ सुदी द्वितीया को बीजापुर में ही उदयश्री ने भगवती दीक्षा ग्रहण की।14 वि०सं० १२८७ फाल्गुन सुदि ५ को पालनपुर में कुलश्री और प्रमोदश्री साध्वी संघ में सम्मिलित हुई । वि०सं० १२८८ भाद्रपद सुदि १० को आचार्यश्री ने जावालिपुर में स्तुपध्वज की प्रतिष्ठा की।16 इसी बर्ष इसी नगरी में पौष शुक्ल एकादशी को धर्ममति, विनयमति, विद्यामति और चारित्रमति खरतरगच्छीय श्रमणीसंघ में दीक्षित की गई। वि०सं० १२८६ ज्येष्ठ सुदी १२ को चित्तौड़ में राजीमती, हेमावली, कनकावली, रत्नावली और मुक्तावली को आचार्यश्री ने प्रव्रज्या दी ।18 चित्तौड़ में इसी वर्ष आषाढ़ वदी २ को आचार्यश्री ने ऋषभनाथ, नेमिनाथ और पार्श्वनाथ के नवनिर्मित जिनालयों में प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की।19 वि०सं० १२६१ वैशाख सुदी १० को जावालिपुर में शीलसुन्दरी और चन्दनसुन्दरी ने प्रव्रज्या ली।20 वि०सं० १. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली पृ ० ३४ ४. वही, पृ० ३४ ७. वही पृ. ४४ १०. वही पृ. ४४ १३. वही पृ. ४४ १६. वही पृ. ४४ १६. वही पृ. ४६ खण्ड ३/१० २. वही पृ० ३४ ५. वही पृ० ३४ ८. वही पृ. ४४ ११. वही पृ. ४४ १४. वही पृ. ४४ १७. वही पृ. ४४ २०. वही पृ० ४६. ३. वही पृ० ३४ ६. वही पृ. ३४ ६. वही पृ. ४४ १२. वही पृ. ४४ १५. वही पृ. ४४ १८. वही पृ० ४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy