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खरतरगच्छीय साध्वी परम्परा : डॉ. शिवप्रसाद
१३०६ मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी को मुक्तिसुन्दरी को साध्वी दीक्षा दी गयी । 1 वि०सं० १३१३ फाल्गुन सुदी चतुर्दशी को जावालिपुर में जयलक्ष्मी, कल्याणनिधि, प्रमोदलक्ष्मी और गच्छवृद्धि इन चार नारियों श्रमणी दीक्षा दी गयी । वि०सं० १३१५ आषाढ़ सुदी १० को पालनपुर में बुद्धिसमृद्धि, ऋद्धिसमृद्धि, ऋद्धिसुन्दरी और रत्नसुन्दरी को आचार्य श्री द्वारा साध्वी दीक्षा दी गयी | वि०सं० १३१६ माघ सुदी चतुर्दशी को जालौर में आचार्यश्री ने प्रवर्तिनी पद पर प्रतिष्ठित किया 14
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वि० सं० १३१६ माघ बदी पंचमी को विजयश्री तथा वि० सं० १३२१ फाल्गुन सुदी २ को चित्तसमाधि एवं शान्तिसमाधि को पालनपुर में आचार्यश्री के हाथों साध्वी दीक्षा प्रदान की गई। विक्रमपुर में वि० सं० १३२२ माघ सुदी चतुर्दशी को मुक्तिवल्लभा, नेमिवल्लभा, मंगलनिधि और प्रियदर्शना तथा वि० सं० १३२३ वैशाख सुदी ६ को वीरसुन्दरी की प्रव्रज्या हुई । इसी वर्ष विक्रमपुर में ही भार्गशीर्ष सुदी पंचमी को विनयसिद्धि और आगमसिद्धि को साध्वीदीक्षा दी गयी। 7
वि० सं० १३२४ अगहन बदी २ शनिवार को जावालिपुर में अनन्तश्री, व्रतलक्ष्मी, एकलक्ष्मी और प्रधानलक्ष्मी तथा वि० सं० १३२५ वैशाख सुदी १० को पद्मावती ने भागवती दीक्षा अंगीकार की । 8 वि० सं० १३२६ में आचार्यश्री ने श्रेष्ठिवर्ग की प्रार्थना पर २३ साधुओं तथा लक्ष्मीनिधि महत्तरा आदि १३ साध्वियों के साथ शत्रुंजय तीर्थ की यात्रा की । "
वि० सं० १३२८ ज्येष्ठ बदी चतुर्थी को जावालिपुर में हेमप्रभा को साध्वी दीक्षा तथा वि० सं० १३३० वैशाख बदी ६ को कल्याणऋद्धि गणिनी को महत्तरा पद दिया गया । 1 वि० सं० १३३१ में आचार्य जिनेश्वरसूरि (द्वितीय) का स्वर्गवास हुआ 1
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आचार्य जिनेश्वरसूरि के स्वर्गारोहण के पश्चात् वि० सं० १३३१ फाल्गुन वदि को आचार्य जिनप्रबोध सूरि ने खरतरगच्छ का नायकत्व प्राप्त किया । आपके वरदहस्त से अनेक मुमुक्षु महिलाओं ने दीक्षा प्राप्त की, जिसका विवरण इस प्रकार है
आचार्यश्री ने वि० सं० १३३१ फाल्गुन सुदी ५ को केवलप्रभा, हर्ष प्रभा, जयप्रभा, यणप्रभा इन चार महिलाओं को दीक्षा प्रदान कर श्रमणीसंघ में सम्मिलित किया । दीक्षा महोत्सव जावालिपुर में सम्पन्न हुआ । 2
वि० सं० १३३२ ज्येष्ठ वदी प्रतिपदा शुक्रवार को जावालिपुर में ही लब्धिमाला और पुण्यमाला को साध्वीदीक्षा प्रदान की गयी । 13 वि० सं० १३३३ माघ वदी १३ को आचार्यश्री ने गणिनी कुशल श्री को प्रवर्तिनी पद पर प्रतिष्ठित किया । 14
वि० सं० १३३४ चैत्र बदी ५ को आचार्यश्री शत्रुञ्जय तीर्थ की यात्रा पर गये । इस यात्रा में
१. खरतरगच्छ बृहद्गुर्वावली पृ० ५०
४. वही पृ० ५१.
७. वही पृ० ५२
१०. वही पृ० ५२. १३. वही पृ० ५५.
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२. वही पृ० ५१.
५. वही पृ० ५२
८. वही पृ० ५२.
११. वही पृ० ५४
१४. वही पृ० ५५.
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३. वही पृ० ५१
६. वही पृ० ५२.
६. वही पृ० ५२ १२. वही पृ० ५४.
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