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________________ डॉ0 शिवप्रसाद (शोध छात्र-पार्श्वनाथ विद्याश्रम, वाराणसी) खरतरगच्छीय साध्वी परम्परा - - समाज की सृष्टि में नारी का विशिष्ट योगदान है । समाज का अर्थ ही है नर और नारी । उसका अर्थ न तो नर ही है और न केवल नारी। नारी के बिना सृष्टि की रचना, समाज का संगठन, जातीय कार्यकलाप, गृहस्थ जीवन सभी अधूरे हैं। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र, चाहे वह धार्मिक आदर्श हो. चाहे समाज-सुधार अथवा राजनीति हो, में नारी का सक्रिय योगदान रहा है । जहाँ तक नारियों के संन्यास या प्रव्रज्या का प्रश्न है, वैदिक युग में नारियों के लिये ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी। बृहदारण्यक उपनिषद्, रामायण और महाभारत में नारियों के संन्यास लेने के प्रसंग मिलते हैं । इन नारियों ने पति के संन्यास लेने, उसकी मृत्यु अथवा योग्य वर न मिलने पर संन्यास का आश्रय लिया था । श्रमण परम्परा के जैन और बौद्ध दोनों धर्मों में इन कारणों के साथ-साथ वैराग्य के कारण भी स्त्रियों के संन्यास लेने की व्यवस्था दृष्टिगत होती है। जहाँ तक जैन धर्म में स्त्रियों की प्रव्रज्या का प्रश्न है, सूत्रकृतांग के द्वितीय श्र तस्कन्ध से ज्ञात होता है कि पार्श्वनाथ की परम्परा महावीर से भिन्न थी। उत्तराध्ययनसूत्र २३/८७ में तो पाश्र्वापत्यीय श्रमणों और श्रमणियों के लिए पंचमहाव्रतों को स्वीकार करवाकर ही महावीर के संघ में सम्मिलित करने का उल्लेख है। इसी प्रकार स्पष्ट है कि महावीर के पूर्व ही जैन धर्म में भिक्ष-भिक्षणी संघ की स्थापना हो चुकी थी। आचारांगसूत्र में श्रमण एवं श्रमणियों के आचार सम्बन्धी नियमों की चर्चा से स्पष्ट है कि जैनधर्म में श्रमण संघ और श्रमणी संघ दोनों की ही साथ-साथ स्थापना हुई थी। समाज के प्रत्येक वर्ग की महिलाओं के प्रवेश के लिए जैन श्रमणी संघ का द्वार खुला हआ था। स्थानांगसूत्र और उसकी टीका में १० विभिन्न कारणों का उल्लेख है, जिनके कारण ही स्त्रियाँ दीक्षा १. बृहदारण्यकोपनिषद्, ४-४ २. रामायण २-२६-१३, ३-७३-२६, ३-७४-३ ३. महाभारत, आदिपर्व ३-७४-१० ४. सूत्रकृतांग २,७,७१-८० ५. स्थानांग १०-७१२, टीका भाग-५, पृ० ३६५-६६ ( ७० ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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