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खण्ड ३ : इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठ
तपश्चर्या–प्रायः देखा जाता है कि ज्ञानाभ्यासी साधु साध्वी वर्ग तपस्या से वंचित रह जाते हैं। किन्तु आप महानुभाव इसके अपवादरूप थे। ज्ञानार्जन, एवं काव्य प्रणयन के साथ ही तपश्चर्या भी समय-समय पर किया करते थे । ४२ वर्ष के संयमी जीवन में आपने मास क्षमण, पक्ष क्षमण, अट्ठाइयाँ, पंचौले आदि किये । तेलों की तो गिनती ही नहीं लगाई जा सकती।
साहित्य सेवा-आपने सैकड़ों छोटे-मोटे चैत्यवन्दन, स्तुतियाँ, स्तवन, सज्झाय आदि बनाये । रत्नत्रय पूजा, पार्श्वनाथ पंचकल्याणक पूजा, महावीर पंचकल्याणक पूजा, चौंसठ अष्ट कर्म प्रकारी पूजा, तथा चारों दादागुरुओं की पृथक्-पृथक् पूजाएँ एवं चैत्री पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा विधि, उपधान, विंशतिस्थानक, वर्षी तप, छमासी तप आदि के देववन्दन आदि विशिष्ट रचनाएँ की है। आप संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी में समान रूप से रचनाएँ करते थे । बहुत सी रचनाओं में आपने अपना नाम न देकर अपने पूज्य गुरुदेव का, गुरुभ्राताओं का एवं अन्यों का नाम दिया है । इस सारे साहित्य का पूर्ण परिचय विस्तार भय से यहाँ नहीं दिया जा रहा है।
आपकी प्रवचन शैली ओजस्वी व दार्शनिक ज्ञानयुक्त थी। भाषा सरल सुबोध और प्रसाद गुण युक्त थी, रचनाओं में अलंकार स्वभावतः ही आ गये हैं । इस प्रकार आपको एक प्रतिभाशाली कवि भी कहा जा सकता है।
आचार्य पद-विक्रम सं० २०१७ की पौष शुक्ला १० को प्रखरवक्ता व्याख्यान वाचस्पति वीर पुत्र श्री जिनआनन्दसागर सूरीश्वरजी म० सा० के आकस्मिक स्वर्गगमनान्तर सारी समुदाय ने आप ही को समुदायाधीश बनाया। अहमदाबाद में चैत्र कृष्णा ७ को भी खरतरगच्छ संघ द्वारा आपको महोत्सपूर्वक आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया ।
आप श्री स्वभाव से ही मिलनसार और गम्भीर थे। दयालुता और हृदय की विशालता आदि सद्गुणों से सुशोभित थे। आप श्री के अन्तःकरण में शासन, गच्छ व समुदाय के उत्कर्ष की भावनाएँ सतत जागृत रहती थीं । पालीताना में निर्मायमान श्री जिन हरि बिहार भी आपश्री की सत्प्रेरणा का कीर्ति स्तम्भ है।
__ आपश्री के कई शिष्य हुए पर वर्तमान में केवल श्री कल्याणसागरजी म. सा० तथा मुनिवर्य श्री कैलाश सागर जी महाराज ही विद्यमान है।
समुदाय के दुर्भाग्य से आपश्री पुरे एक वर्ष भी आचार्य पद द्वारा सेवा नहीं कर पाये कि करालकाल ने निर्दयतापूर्वक इस रत्न को समुदाय से छीन लिया । उग्र विहार करते हुए स्वस्थ सबल देहधारी ये महान् पुरुष अहमदाबाद से केवल २० दिन में मन्दसोर के पास बूढ़ा ग्राम फा० सुदी एकम को संध्या समय पधारे । वहाँ प्रतिष्ठा कार्य व योगाद्वहन कराने पधारे थे; परन्तु फा० सुदी ५ शनिवार की रात्रि को १२.३० बजे अकस्मात् हृदय गति के रुक जाने से नवकार का जाप करते एवं प्रतिष्ठा कार्य के लिए ध्यान में अवस्थित ये महानुभाव संघ व समुदाय को निराधार निराश्रित बनाकर देवलोक में जा विराजे । दादा गुरुदेव व शासनदेव उस महापुरुष की आत्मा को शान्ति एवं समुदाय को उनके पदानुसरण की शक्ति प्रदान करे । यही हार्दिक अभिलाषा है ।
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