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________________ खण्ड ३ : इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठ बड़ी हुई, यहीं विवाहित जीवन जीया, यहीं दीक्षा बाद में परम्परा चली वे मुख्यतः ५ हुई थीं। उन ग्रहण की और यहीं अब आपका अभिनन्दन समा- पांचों के नाम इस प्रकार हैं :रोह होने जा रहा है। अभिनन्द्यमान सज्जनश्रीजी प्रतापश्रीजी, देवश्रीजी, ज्ञानश्रीजी, प्रेमश्रीजी का विस्तार से परिचय अन्यत्र दिया गया है अतः और विमल श्रीजी। अब इन पाँचों के परिवार का उसका यहाँ पिष्ट-पेषण करना उपयुक्त नहीं है। संक्षिप्त ब्यौरा इस प्रकार है :संवत् २०३७ से प्रवर्तिनी पद को सुशोभित कर (१) प्रवर्तिनी प्रतापश्रीजी रही हैं। अभी आपकी आज्ञा में निम्नांकित साध्वी समुदाय विचरण कर रहा है : शिवश्रीजी के स्वर्गवास के पश्चात् ये प्रवर्तिनी बनीं। इनकी दीक्षा संवत् १६४८ मिगसर वदी दूज १. शशिप्रभाश्रीजी आदि १२ ठाणा, सज्जनश्री को हुई थी। गृहस्थावस्था में ये सूरजमलजी झाबक जी महाराज की ही शिष्याएँ हैं । की पत्नी थीं और नाम ज्योतिबाई था । आपने २. स्वर्गीया चंपाश्रीजी महाराज की शिष्याएँ अनेक शिष्याएँ बनाई थीं, इनमें से दिव्यश्रीजी, जितेन्द्रधीजी, १२ ठाणा से विचरण कर रही हैं। मोहनश्रीजी आदि आज विद्यमान हैं। ३. विचक्षण मण्डल की ५१ साध्वियाँ अनेक (२) प्रवर्तिनी देवश्रीजी स्थानों पर विचरण कर रही हैं। इनके सम्बन्ध में किसी भी प्रकार की जानकारी ४. रतिश्रीजी ७ ठाणा के साथ फलोदी में प्राप्त नहीं हैं। प्रतापश्रीजी के स्वर्गवास के पश्चात् विराजमान हैं। इस समुदाय का नेतृत्व इन्होंने संभाला था और ५. स्वर्गीया पवित्रश्रीजी की शिष्याओं में दिव्य- इन्होंने प्रवर्तिनी पद प्राप्त किया था । चन्द्रकांताप्रभाश्रीजी ८ ठाणा के साथ हैं । श्रीजी आदि कुछ साध्वियाँ इनकी परम्परा में विद्यअंत में प्रवतिनी सज्जनश्रीजी महाराज दीर्घ मान हैं। जीवी हों और शासन तथा खरतरगच्छ के अभ्युदय (३) प्रवर्तिनी प्रेमश्रोजी में निरन्तर सहयोग देती रहें, यही हार्दिक शुभ प्रवर्तिनी देवश्रीजी के पश्चात् प्रेमश्रीजी ने कामना है। प्रवर्तिनी पद प्राप्त किया था । फलोदी में ही इनका स्वर्गवास हुआ या । इनकी परम्परा में निम्नांकित (२) शिवश्रीजी महाराज साध्वियाँ विद्यमान हैं :का समुदाय १. विकासश्रीजी ठाणा ३ २. विनोदश्रीजी उद्योतश्रीजी. महाराज की लघु शिष्या थी । शिवश्रीजी । इनके सम्बन्ध में किसी भी प्रकार की ३. विदुषी साध्वी हेमप्रभाश्री जी ठाणा १४ जानकारी अभी तक प्राप्त नहीं हो सकी है। किंतु जिनके उपदेश से इस वर्ष बीकानेर में उपधान तप आपका साध्वी समुदाय भी विशाल होने के कारण हुआ था। शास्त्रों की अच्छी जानकार हैं और यह समुदाय शिवश्रीजी के समूदाय के नाम से अच्छी वक्ता हैं। प्रसिद्ध है । अनेकों को दीक्षा दी होगी, किंतु जिनकी ४. सुलोचनाश्रीजी ठाणा ६ । खण्ड ३! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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