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सुखसागरजी महाराज के समुदाय की साध्वी परम्परा का परिचय : सन्तोष विनयसागर जैन (४) प्रवर्तिनी वल्लभश्री जी में हुई थी। ये भी आगम और साहित्य की अच्छी प्रेमश्रीजी महाराज के स्वर्गवास के पश्चात्
... जानकार थीं। इनकी साध्वी परम्परा में प्रकाशश्री
जी, विजयेन्द्रश्रीजी, और विद्य तप्रभाश्रीजी ठाणा ७ साध्वी समुदाय का नेतृत्व वल्लभश्रीजी के कन्धों पर आया, प्रवर्तिनी बनीं। वल्लभश्री जी ज्ञानश्री
आदि विद्यमान हैं । विद्य तप्रभाश्री जी अच्छी जी महाराज की शिष्या थीं। ज्ञानश्रीजी प्रेमश्रीजी
लेखिका हैं और अभी डाक्टरेट के लिए शोध प्रबन्ध
लिख रही हैं। प्रमोदश्रीजी महाराज का २०३६ से बड़ी थी. किन्तु स्वर्गवास पूर्व हो जाने के कारण
पौष बदी १० को बाडमेर में स्वर्गवास हुआ। प्रवर्तिनी पद प्रेमश्रीजी को प्राप्त हुआ था और तत्पश्चात् वल्लभश्रीजी को। वल्लभश्रीजी अच्छी विदुषी थीं, आगमों की जानकार थीं, उपदेश देने
(६) प्रवर्तिनी जिनश्रीजी में पट थीं। आपका स्वर्गवास भी फलोदी में हुआ
प्रमोदश्रीजी के पश्चात् प्रवर्तिनी पद पर था। इनकी शिष्या-प्रशिष्याओं में लगभग ३५ अभी
प्रवर्तिनी वल्लभश्रीजी महाराज की शिष्या जिनश्री विद्यमान हैं । जिनका विवरण इस प्रकार हैं :
जी विभूषित हुई । इनका जन्म संवत् १६५७ १. प्रवर्तिनी जिनश्रीजी ६ ठाणा अमलनेर आश्विन सुदी ८ को तिवरी में हुआ था। पिता का २. निपुणाश्रीजी आदि
नाम बूरड लाधूरामजी और माता का नाम धुणी
देवी था। संवत् १९७६ में मिगसर सुदी ५ को ३. छत्तीसगढ़शिरोमणि मनोहरश्रीजी १६
आपने बल्लभश्रीजी महाराज के पास दीक्षा ग्रहण ठाणा। ये अच्छी विदुषी साध्वी हैं। इनकी समस्त
की थी। २०४० वैशाख शुक्ला दूज को आपने साध्वियाँ व्याख्यान देने में पटु हैं।
प्रवर्तिनी पद प्राप्त किया था। ८८ वर्ष की वृद्धा४. कुसुमश्रीजी आदि।
वस्था और शारीरिक अस्वस्थता के कारण अभी (५) प्रवर्तिनी प्रमोदश्रीजी
आप ६ ठाणों से अमलनेर में विराजमान हैं। शिब
श्रीजी समुदाय की लगभग ६० साध्वियों का आप प्रवर्तिनी वल्लभश्रीजी के स्वर्गवास के पश्चात् नेतत्व कर रही हैं। प्रवर्तिनी पद पर प्रमोदश्रीजी की स्थापना हुई। प्रमोदश्रीजी शिवश्रीजी महाराज की प्रशिष्या और उपसंहार-शिवश्रीजी महाराज के समुदाय विमलश्रीजी की शिष्या थीं। इनका जन्म सं० १६५५ का ब्यौरेवार इतिहास समय और सामग्री के अभाव कार्तिक सुदी ५ को फलौदी में हुआ था। गोलेछा के कारण नहीं लिखा जा सका। यथाशीघ्र ही गोत्रीय सूरजमलजी की पत्नी जेठीबाई की पुत्री थीं। समय निकाल कर इसकी अवश्य ही पूर्ति की इनकी दीक्षा सं० १६६४ माघ सुदी ५ को फलौदी जायेगी।
सज्जन वाणी
१. जिन्होंने सत्य को आचरण में उतारा है, जिनकी वाणी सत्य से ओत-प्रोत
है, जिनका मन भव्य चिंतन में लीन है। वे संसार के पूज्य बन
जाते हैं। २. जिन्होंने अस्तेय व्रत धारण लिया, उन्हें सभी सम्पत्तियाँ अनायास मिलती
हैं उनके जीवन में कभी दरिद्रता नहीं आती । और वे सभी के विश्वासपात्र बन जाते हैं।।
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