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________________ ३८ क्रान्ति के विविध रूप तथा धार्मिक क्रान्तिकारक : दर्शनाचार्य साध्वी शशिप्रभाश्री परिवर्तन कर देने वाली औषधियों और इन्जेक्शनों का निर्माण कर लिया है। जीव तथा जड़, स्थावर जंगम सभी को नष्ट कर देने वाले अनेक अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण भी इस भौतिक क्रान्ति की देन है। स्वाभाविक भौतिक क्रान्ति-अतिकृषि, वज्रपात, तूफान, भूकम्प आदि से होती है। किन्तु इससे उतनी क्रान्ति नहीं होती जितनी कि मनुष्य ने विज्ञान द्वारा करने की योजनाएँ बनायी हैं । क्योंकि उन अस्त्रों से जगत् प्रलय होने में एक मिनट भी नहीं लगेगा। सामाजिक क्रान्ति-संसार में निवास करने वाले भाँति-भाँति के रंगरूपधारी मनुष्यादि देश परिस्थितियों के अनुसार अपना समाज-एक समूह बनाकर उसके रहन,सहन, आचार, व्यवहार आदि की एक आचार संहिता रचकर उसके अनुसार जीवन-यापन करते हैं। जिस व्यक्ति से आचार संहिता का पूर्ण पालन नहीं होता, वह नियम भंग करके स्वेच्छाधारी बना मनुष्य केवल अपना ही स्वार्थ सिद्ध करने लग जाता है। तब सामाजिक क्रान्ति होती है। कभी-कभी तो यह क्रान्ति उन्नति का कारण न बनकर मनुष्य जाति को अवनति के गहरे गर्त में ढकेल देती है। जिससे मनुष्य का जीवन अत्यन्त अशान्त और दुखमय बन जाता है। आज का मनुष्य तो नैतिक और धार्मिक नियमों का भंग करना ही क्रान्ति मान बैठा है। आर्थिक क्रान्ति-जब अर्थ का एक स्थान या व्यक्ति में पुजीकरण होने लगता है, जनता दीन, दरिद्र, अभावग्रस्त बन जाती है तो आर्थिक क्रान्ति होती है। प्रायः यह क्रान्ति कभी-कभी तो मनुष्यों की हत्या या व्यक्ति की, स्वतन्त्रता का अपहरण कर उसे किसी व्यवस्थापक-शक्तिशाली के सर्वथा अधीन रहने को बाध्य कर देती है। पारिवारिक क्रान्ति-परिवार का मुखिया या कोई सदस्य जब परिवार के प्रति अपना उत्तरदायित्व भूलकर स्वयं की सुख-सुविधा का ही ध्यान रखता है या अनैतिक आकांक्षाओं की पूर्ति की ओर उन्मुख होकर वैसा आचरण करने लग जाता है तो परिवार के सदस्य उससे पराङ मुख हो जाते हैं। और व्यक्ति स्वयं भी अकेला पड़ जाता है। परिवार में भी विघटन होकर छिन्न-भिन्न होने लगता है। ऐसे कठिन समय में परिवार का कोई बुद्धिमान, सदाचारी, विवेकी, विनयी व्यक्ति अपने मधुर व्यवहार द्वारा विघटन को रोककर परिवार के पुनर्गठन द्वारा सुव्यवस्थित बनाकर, वास्तविक क्रान्ति -उत्क्रान्ति कर लेता है अन्यथा परिवार भंग हो जाते हैं । और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता में सुख खोजने वाले व्यक्ति अधिक परतन्त्र और परिवार से कटकर रहने के कारण स्वयं को अकेला सा अनुभव करते हुए दिमागी टेन्शन में रहने के कारण रोगों से ग्रस्त हो, दुःखी जीवन बिताने को बाध्य हो जाते हैं। वैयक्तिक क्रान्ति-व्यक्ति जब अपने जीवन में से समस्त दोषों विकारों, व्यसनों को निष्क्रान्त कर देता है, उत्तम विचारों, सद्गुणों और सत्कर्मों की ओर अग्रसर होता है तो वह व्यक्तिगत क्रान्ति होती है। वर्षों के ही नहीं अनन्तकाल से परिचित सेवित कोधादि कषाय, इन्द्रियजनित सुख सामग्रियों, मन को भाने वाले सभी पदार्थों का परित्याग करना, सभी प्रकार के व्यसनों का क्षणमात्र में त्याग कर देना वीर आत्माओं के लिए सामान्य कार्य है। ऐसों के इतिहास से भारतीय इतिहास के पत्र स्वर्णाक्षरों से भरे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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