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________________ --दर्शनाचार्य साध्वी शशिप्रभाश्री (प्र. सज्जन श्री जी म० की सुशिष्या, आगम एवं दर्शनशास्त्र की विदुषी : प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रन्थ की मुख्य सम्पादिका) क्रान्ति के विविध रूप तथा धार्मिक क्रान्तिकारक अनादि काल से इस जगत में परिवर्तन होता है। यहाँ सभी पदार्थ, कार्यव्यवस्थाएँ भले ही वे व्यक्तिगत हों या सार्वजनिक हों, वैयक्तिक हों या सामाजिक हों, अथवा राजनैतिक हों या धार्मिक, उनमें परिवर्तन होता ही रहता है । आत्मा से लेकर जड़ पदार्थों में उत्थान-पतन ह्रास विकासादि की क्रिया निरन्तर गतिशील रहती है । अनादिकालीन सनातन शाश्वत स्वभाव सभी पदार्थों-द्रव्यों का कभी परित्याग नहीं करता। जगत की यह स्वाभाविक स्थिति है। किन्तु यहाँ क्रान्ति सभी द्रव्यों में, भले वे जड़ हो या चेतन चलती रहती हैं । क्रान्ति शब्द की व्युत्पत्ति और भावार्थ-भ्वादि गणीय “क्रमु" पादविक्षपे धातु से स्त्रियांक्तित्" सूत्र से क्तिन् प्रत्यय लगाकर क्रान्ति शब्द की निष्पत्ति होती है जिसका सामान्य अर्थ होता है घूमना, चलना, भ्रमण करना, स्थानान्तरण करना, प्रगति करना। और इस क्रमु के उपसर्ग लगाने से तो भिन्नभिन्न प्रकार के रूप बनकर अर्थ भी अनेक प्रकार के हो जाते हैं । जैसे उत्क्रान्त, विक्रान्त, उत्क्रम, पराक्रम, अपक्रम, अनुक्रम, आक्रमण, संक्रमण, परिक्रमण-प्रतिक्रमण आदि अनेक शब्द हैं, जो पृथक-पृथक अर्थों में प्रयुक्त होते हैं। धातु के मूल अर्थ में परिवर्तन हो जाता है । क्रान्ति कई प्रकार की होती है । यथा-भौतिक, सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक, वैयक्तिक, राजनैतिक, धार्मिक, नैतिक, आध्यात्मिक इत्यादि । वर्तमान व्यवस्था में परिवर्तन होना क्रान्ति है। भौतिक-पंचभूत, पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, इन पाँच तत्वों में दो प्रकार की क्रान्ति होती है। प्रथम स्वभाव से, दूसरी मनुष्य द्वारा प्रायोगिक । जैसा कि आज वैज्ञानिक कर रहे हैं और इन तत्वों में मनुष्यादि के लिए विभिन्न सुख-सुविधाएँ प्रदान करने वाले अन्नादि का निर्माण भोज्यवस्तुएँ, औषधियाँ, पीने के पदार्थ, नवीन प्रकार के सुख देने वाली, मनोरंजन करने वाली अनेक विधाएँ टेलीफोन, टेलीविजन, सिनेमा, नाटक, रेल, मोटर, वायुयान, अन्तरिक्षयान आदि का सृजन । यहाँ तक कि यन्त्र मानव रोबोट, टेस्ट ट्यूब में मानव शिशु बनाने तक में सफलता प्राप्त करली है । और मनुष्य के विचारों तक में ( ३७ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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