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________________ खरतर गच्छ का संक्षिप्त परिचय : महोपाध्याय विनयसागरजी (१८) जिनभद्रसूरि आचार्यप्रवर जिनराजसूरि के पट्ट पर सागरचन्द्राचार्य ने जिनवर्धनसूरि को स्थापित किया था। किन्तु, उन पर देवी प्रकोप हो गया था अतः १४ वर्ष पश्चात् गच्छ की उन्नति के निमित्त जिनराजसूरि के पट्ट पर संवत् १४७५ में जिनभद्रसूरि को स्थापित किया गया। जिनवर्धनसरि से खरतरगच्छ की पिप्पलक शाखा का उद्गम हुआ । अतः उनके सम्बन्ध में पिप्पलक शाखा के परिचय में लिखा जाएगा। जिनभद्रसूरि का परिचय इस प्रकार है : मेवाड़ देश के देउलपुर नगर में छाजेड़ गोत्रीय श्रेष्ठी धीणि। रहते थे। उनकी पत्नी का नाम खेतलदेवी था। खेतलदेवी की कुक्षि से इनका जन्म संवत् १४४६ चैत्र शुक्ला (बदी) छठ को हुआ। आपका जन्म नाम राभणकुमार था। किन्हीं पट्टावलियों में इनका गोत्र छाजेड़ के स्थान पर भंसाली प्राप्त होता है। संवत् १४६१ में जिनराजसूरि के उपदेश से प्रतिबोध पाकर आपने दीक्षा ग्रहण की। मुनि अवस्था का नाम रखा गया कीर्तिसागर । वाचनाचार्य शीलचन्द्रगणि के पास रहकर इन्होंने समस्त शास्त्रों का अध्ययन किया। संवत् १४७५ माघ सुदी पूनम को सागरचन्द्राचार्य ने कीर्तिसागर को आचार्य पद देकर जिनभद्रसूरि नाम रखा और जिन राजसूरि का पट्टधर घोषित किया। आचार्य पद का महोत्सव नाल्हिग शाह ने किया था। उपाध्याय क्षमाकल्याण रचित पट्टावली के अनुसार पद स्थापना के समय सात भकारों का उल्लेख मिलता है :-१. भाणसोल नगर, २. भाणसालीक गोत्र, ३. भादो नाम, ४. भरणी नक्षत्र, ५. भद्राकरण, ६. भट्टारक पद, ७. भद्रसूरि नाम । आचार्य बनने के पश्चात् आपने अपने जीवनकाल में दो विशिष्ट कार्य किये। १. जिन मन्दिरों का निर्माण और प्रचुर प्रमाण में अर्थात् सहस्राधिक जिन मूर्तियों की प्रतिष्ठा । २. ज्ञान भंडारों की स्थापना। आबू, गिरनार तीर्थों पर तो प्रतिष्ठाएँ करवाई ही, साथ ही जैसलमेर में सहस्राधिक जिन मूर्तियों का निर्माण करवाकर प्रतिष्ठा करवाई। यही कारण है कि जैसलमेर तीर्थ स्वरूप को प्राप्त हो गया। मुगलों के द्वारा ज्ञान भंडारों की होली को देखकर हजारों शास्त्रों की प्रतिलिपियाँ करवाकर आपने देवगिरि, नागौर, जालौर, पाटण, माण्डवगड, आशापल्ली, करणावती, खम्भात और जैसलमेर आदि में ज्ञान भंडारों की स्थापना करवाई। सुरक्षा और पर्यावरण की दृष्टि से संवत् १४६२ से १४६७ के मध्य जैसलमेर ज्ञान भडार की स्थापना करवाई। सैकड़ों प्राचीनतम ताडपत्रीय ग्रन्थों और उनकी प्रतिलिपियाँ करवाकर इस ज्ञान भंडार को समृद्ध किया। प्रतिलिपियों का संशोधन स्वयं भी करते थे और अपने विद्वत् साधुमण्डल से भी करवाते थे। जैसलमेर का ज्ञान भंडार प्राचीनतम एवं दुर्लभ ताडपत्रीय ग्रन्थों के कारण भारत भर में अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है । इस 'जिनभद्रसूरि ज्ञान भंडार' में ऐसी-ऐसी अप्राप्य एवं दुर्लभ सैकड़ों कृतियाँ हैं जो अन्यत्र अप्राप्त हैं। जैसलमेर को छोड़कर आपके द्वारा स्थापित सात ज्ञान भंडारों का अता-पता ही नहीं है। हाँ, उनके द्वारा लिखापित सैकड़ों कृतियाँ आज भी पाटण और खम्भात के ज्ञान भंडारों से प्राप्त होती हैं। जैसलमेर के इस ज्ञान भंडार के लिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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