SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 324
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ खरतरगच्छ का संक्षिप्त परिचय : महोपाध्याय विनयसागरजी इन्द्रमहिता" इत्यादि शार्दूलविक्रीडित छन्दोबद्ध नवीन काव्य का निर्माण कर उसका ऐसा सुन्दर प्रवचन पत्तनीय संघ के सम्मुख किया कि सब आश्चर्यचकित हो गये और आपको "बालधवलकुचल सरस्वती" इस उपाधि से सुशोभित किया । सोमकुञ्जर कृत पट्टावली के अनुसार यह विरुद इन्हें पाटण से प्राप्त हुआ था । गया था । संवत् १४०० वैशाख शुक्ला दशमी के दिन लघु अवस्था में ही आपका स्वर्गवास हो (१४) जिनलब्धिसूरि आचार्य जिनपद्मसूरि के पट्टधर जिनलब्धिसूरि हुए । तरुणप्रभाचार्य कृत जिनलब्धिसूरि बहत्तरी के अनुसार आपका जीवनवृत्त इस प्रकार है : जैसलमेर निवासी नौलखा गोत्रीय धणसीह के ये पुत्र थे, इनकी माता का नाम खेताही था । संवत् १३६० मिगसर सुदी बारस के दिन अपने ननिहाल सांचोर में इनका जन्म हुआ था । जन्म नाम लखनसिंह था । कलिकाल केवली जिनचन्द्रसूरि से प्रतिबोध पाकर संवत् १३७० माघ सुदी ग्यारस को अणहिलपुर पाटण में जिनचन्द्रसूरि के करकमलों से ही दीक्षा ग्रहण की । दीक्षावस्था का नाम था लब्धिनिधान । मुनिचन्द्र गणि, राजेन्द्रचन्द्राचार्य, तरुणप्रभाचार्य एवं जिनकुशलसूर के पास गहन अध्ययन कर स्वशास्त्र और परशास्त्र के परम निष्णात बने थे। संवत् १३८८ मिगसर सुदि ग्यारस के दिन देरावर में जिनकुशलसूरिजी ने इन्हें उपाध्याय पद से विभूषित किया था । संवत् १४०६ आश्विन सुदी बारस के दिन नागौर में आपका स्वर्गवास हो गया । श्री संघ ने आपके अग्नि संस्कार स्थान पर स्तूप का निर्माण करवाकर इनके चरणों की प्रतिष्ठा करवाई थी । आपकी निर्मित कृतियों में चैत्यवंदनकुलकवृत्ति पर टिप्पण एवं कई जिनस्तोत्र प्राप्त हैं । (१५) जिनचन्द्र सूरि जिनलब्धिसूरि के पट्टधर जिनचन्द्रसूरि हुए। इनका जन्म कुसुमाण गाँव में हुआ था । इनके पिता का नाम केल्हा था और माता का नाम सरस्वती था । जन्म नाम था पातालकुमार । संवत् १३८० आषाढ़ बदी छठ के दिन बड़े महोत्सव के साथ शत्रुंजय तीर्थ पर दादा जिनकुशलसूरिजी के करकमलों से दीक्षा ग्रहण की थी। आपका मुनि अवस्था का नाम था यशोभद्र । अमृतचन्द्र गणि के पास आपने विद्याध्ययन किया था | अन्तिम समय में जिनलब्धिसूरि ने इनको पाट पर बिठाने का संकेत किया था । तदनुसार ही तरुणप्रभाचार्य ने संवत् १४०६ माघ सुदी दशमी को जैसलमेर में आपको गच्छनायक पद पर प्रतिष्ठित किया । गच्छनायक बनने पर आपका नामकरण किया गया जिनचन्द्रसूरि । आचार्य पद का महोत्सव सेठ हाथीशाह ने किया था । संवत् १४१४ आषाढ़ बदी तेरस के दिन आपका स्वर्गवास हुआ । वहीं कृपाराम में आपका स्तूप बनवाया गया । (१६) जिनोदयसरि जिनचन्द्रसूरि के पट्ट पर जिनोदयसूरि आरूढ़ हुए। आपका जन्म संवत् १३७५ में पालनपुर निवासी मालू गोत्रीय शाह रुद्रपाल की पत्नी धर्मपत्नी धारलदेवी की कुक्षि से हुआ था । जन्म नाम समर www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy