________________
तुमको मेरा प्रणाम
शत-शत अभिनन्दन
-० कविता डागा
-सुधाकर श्रीवास्तव 'सुधाकर',
(नवलगढ़ राज०)
चिन्तन, मनन, प्रेम की धारा, उज्ज्वल ज्योति, निर्मल, गंभीरा, नभ की ज्योतिर्मयी तारिका, तुम सफल कवयित्री, सफल लेखिका, करते हम तुझको शत् वन्दन, अभिनन्दन ! तेरा अभिनन्दन ॥
महताब कुंवर की कोख संवारी नाम "गुलाब" किया उजियारा, आत्म-विश्वासी, आत्म - संयमी, तेरी दृढ़ता का हम सब करते हैं वन्दन
अभिनन्दन ! है अभिनन्दन ॥ राजस्थान, बंगाल, गुजरात, में, फैलाया वीर प्रभु का सन्देश प्यारा, उतर-प्रदेश, मध्य-प्रदेश में भी, बही अहिंसा की शुचि धारा, जैन धर्म फैलाने वाली, वन्दन है शत् शत् वन्दन, अभिनन्दन । है अभिनन्दन ।
शान्त स्वभावी, निर-अभिमानी, सेवाभावी, मधुर है वाणी, अध्यात्म की अप्रतिम प्रतिमा, मेरा सब कुछ है चरणों में अर्पण,
अभिनन्दन है अभिनन्दन ।। "पुण्य जीवन ज्योति" लिखकर, जैन-धर्म का किया प्रचार, तपस्या में रही विचक्षण, तेले, बेले का नहीं पारावार, जिन धर्म की प्रतिभा, सज्जन श्रीजी, "कविता" करती है वन्दन, अभिनन्दन है अभिनन्दन ।
स्वाध्यायशील “सज्जन श्रीजी" तुमको मेरा शत शत प्रणाम ।
उद्देश्य समुज्ज्वल निस्पृह ले, रह रहीं कर्म में नित्य व्यस्त, बस एक चिरन्तन-चिन्तन है,
हो ध्वस्त त्रस्त कटुता निरस्त । मुक्ति पथ जिधर, बढ़ गयीं उधर, खिंच गई रेख उर पर ललाम ।
पथ बाधा तृण के तुल्य तोड़, तड़िता सी तड़प लिए आयीं । साहस असीम भर कर उर में,
बढ़ चलीं दिशा दस कतरायीं। तुम स्वाभिमान की व्रती-वीर, निश्छल, निर्मल, निष्काम-काम ।
"श्रीकल्पसूत्र" "समुदाय-सूत्र", लिखकर प्रबोध अध्यात्म दिया। जिसका आस्वादन कर सबने,
निज-निज जीवन कृतकृत्य किया। व्यक्तित्व तुम्हारा निखर रहा, बनकर जग में आदित्य-धाम ।
स्वाध्यायशील "सज्जनश्रीजी", तुमको मेरा शत्-शत् प्रणाम ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org