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________________ सूरज सरीखा व्यक्तित्व : श्रीसज्जन श्रीजी महाराज सूरज धरती पर उतर आया है और उसकी किरणें बिखर गयीं हैं घरों के बन्द / खुले आँगन पर शुष्क और साफ है किसी पहाड़ी चट्टान की तरह । सूरज दरवाजे पर दस्तक देता है, खिड़की से झाँकता है और सीढ़ियों से ऊपर चढ़ जाता है । ति/अर्द्ध मीलित आँखों को खोलता है सोयों को जगाता हैं हँसता है / हँसाता है बच्चे हों या जवान या फिर बूढ़े सभी के साथ खेलता है आँख मिचौनी एकदम अनहोनी । सूरज कितना विचित्र है साथ रहता है पर दूर है । मजबूर है । नाम असत् का छोड़ा तुमने साथ, सत्संग को बढ़ाया हाथ । सत्-जन में गुंजाया, सज्जन नाम है तुमने पाया ॥ गुण सौरभ पाई पिता गुलाब से, तत्व-ज्ञान मिला माता महताब से । सुसंस्कारों का हुआ बीज वपन, साकार हुआ उनका सपन ॥ ज्ञान गुरु से पाई गुण गरिमा, उपयोगगुरु की बढ़ाई महिमा | सत्य सेवा और स्वाध्याय से, धो डाली कलुषित कालिमा ॥ Jain Education International - प्रो० डॉ संजीव प्रचंडिया 'सोमेन्द्र, साधक है, तपस्वी है पर, मान अभिमान से नितांत दूर है। मजबूर है || आओ जरा अपने को देखें सूरज की किरणों को गौर से देखें कूड़ा-करकट को झाड़ें-बुहारें पूज्य को पूजें गुणों का गान करें । समरस का आव्हान करें । आओ सूरज से नित नए भोर की किरणें माँगें प्रमोद को छोड़ें अज्ञता के घुप्प अँधेरे से अपने मुख को मोड़ें बुराइयों को हम न दुहरायें एक संकल्प लें स्वयं जगें और दूसरों को जगाएँ || सज्जन नाम है तुमने पाया - साध्वी सुरेखाश्री पुण्य समुदाय की तुम लड़ी, हाथ में पुस्तक रहे हर घड़ी । जिन प्रवचन का करतीं पान, जिन शासन की रखी शान ॥ कर-कमलों जब लेखनि होती, स्वाति बूँद से निकले मोती । विरुद दिया आशु कवयित्री, तत्वज्ञा हो तुम आगम ज्योति ॥ गुरु विचक्षण के पाट पर, हुई तुम प्रवर्तिनी नभ पर रहे चाँद रहो धरा पर तुम पदासीन । ओ सूरज, आसीन ॥ ( ५४ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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