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गुरुपरम्परा प्रशस्तिः
-श्री भंवरलाल नाहटा, (कलकत्ता) श्री जिनदत्त गुरु नत्वा सूरेश्च कुशल प्रभोः। श्री हेमेन्द्रगणाधीश-तत्पट्टोदयसागरः । सुविहितस्य मार्गस्थ लिख्यतेऽयं प्रशस्तिकाः ॥१॥ द्वितीयोऽनुयोगाचार्य - कान्त्यब्धिसुप्रभावकः ।। ८ ।। गच्छे खरतरे स्वच्छे क्षमाकल्याणपाठको। संघयात्रा सुसंस्थान-सूपधानाधनेकशः। शुद्ध साधु क्रियाधारी विद्वज्जैनशिरोमणिः ॥ २॥ प्रतिष्ठा जिनबिम्बादि कारितानि महोत्सवैः ।। ६ ।। श्रमणार्या सुसंघोऽभूत् परम्परा सुविस्तृता। समायोजिते संघेन जयपुरे हि सदुत्सवै । तपस्वी क्रियापात्राश्च गणाधीश परम्परा ॥ ३॥ आषाढ़ षष्ठी दिवसे सूरिपदो द्वौ सद्गुरौ ।।१०।। सूरिपदप्राप्तो . येनऽजीमगंजपुरेवरे। स्वनामधन्य प्रतापीश्च सन्मुनि मोहनलालजित् । श्री हरिसागराचार्यः जैनधर्मप्रभावकः ॥ ४॥ जिनयशः सूरिपट्ट जिद्धिरत्नसूरयः ।।११।। पट्टोद्धारकस्सद्वक्ता सूरयानन्दसागरः। लब्धि-केशर-बुद्धिञ्च पाठकपन्यासो गणी। वीरपुत्राभिधानेन ख्यातिमाप्तः सुभारते ॥ ५॥ जयानन्द क्रियापात्र प्रवचने वाचस्पतिः ॥१२॥ सुमति सिन्धूपाध्याय पट्टे श्री मणिसागरः। अत्याग्रहेनुपाध्याय संघेनालंकृता पदे । सूरि पदं प्राप्तं येन शास्त्रवादि शिरोमणिः ॥ ६॥ चिरं नन्दन्तु वर्द्धन्तु श्रमणसंघो च भूतले ॥१३॥ सत्काव्य कला प्रतिभा-धारी कवीन्द्रसूरयः। आगमज्ञा सद्विदुषी आश्रिी सज्जनाभिधा । रचितानि यैश्च सत्पूजा स्तवकाव्यान्यनेकशः ।। ७॥ प्रवर्तिनी पदारूढ़ा कवयित्री सल्लेखिका ॥१४।।
भक्त्या भँवरलालेन विरचिता प्रशस्तिका।
_शासनोन्नतिं कुर्वन्तु दीर्घायुषि गुरुत्तमा ॥१५॥ अभिनन्दन स्वीकारो
-सुदीप एवं गौरव लूनिया अभिनन्दन है बुआ दादीजी का, जिनका सज्जनश्री है नाम । सुदीप-गौरव पौत्र आपके, कोटि-कोटि करते प्रणाम ।।
धर्म-ज्ञान संयम-नियम का, पाठ आपने हमें पढ़ाया।
बातों ही बातों में चौबीस तीर्थंकरों का नाम सिखाया । कितना अच्छा लगता है जब, लोग बताते हैं हमको। आप ज्ञान की अतुल राशि हैं, ज्ञान बाँटती है सबको ।
आप विदुषी हैं-प्रवर्तिनी मां ऐसा कहती है।
लेकिन हमको आप भुवाश्री, केवल “ममतामयी" लगती है ।। कोटि-कोटि वन्दन चरणों में, करते हैं शतबार नमन । धन्य हुए हम आज मनाकर, जन्म दिवस पर अभिनन्दन ।।
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