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________________ सबका नम्र प्रणाम RADHE -श्री मोहन सोनी, (दानीगेट, उज्जन) जिनके तप से सुबह सुहानी, और सलोनी शाम, प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्री को, सबका नम्र प्रणाम ।। संवत् उन्नीस सौ पैंसठ, वैशाख पूर्णिमा आई, जयपुर की धरती से रवि की. प्रखर किरन टकराई। श्री गुलाब की फुलवारी में महकी गंध सुहानी, किसे पता था लिखी जायेगी, तप की नई कहानी । है कृतज्ञ हर जैन, आपने पाया मन निष्काम, प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्री को, सबका नम्र प्रणाम । श्री ज्ञानश्रीजी की शिष्या का दर्शन हितकारी, सब उपाधियाँ मिलीं आपसे, धन्य हो गईं सारी। आठ दशक के तपश्चर्य की आभा चमक रही है, जितना किया लोकहित उसकी महिमा महक रही है। किये आपके दर्शन हमने मिला पुण्य परिणाम, प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्री को, सबका नम्र प्रणाम । सन् बयासी में प्रवर्तिनी पद ने शोभा पाई, त्याग तपस्या संयम देखा धन्य हुई पुरवाई। तीर्थ तीर्थ में जाकर मन से दूर भगाई माया, वीर प्रभु के विमल स्वरों को जन जन तक पहुँचाया । जहाँ आपके चरण पड़े हैं धन्य हुआ वह ग्राम, प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्री को, सबका नम्र प्रणाम । तप का अभिनन्दन कर, हमने गौरव प्राप्त किया है, किसी पुण्य के फल से ही, अनुभव पर्याप्त किया है। मन के भावों को शब्दों में, लाये अर्पित करने, युगों युगों तक मिलें आपके शुभाशीष के झरने । दरस आपका इन आँखों में बना रहे अविराम, प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्री को सबका नम्र प्रणाम । हमें शक्ति दें आप कि जीवन भक्तिभाव में बीते, हृदय सभी के, सत्य अहिंसा से न कभी हों रीते । जो भटके हैं उन्हें ज्ञान की ज्योति राह दिखलायें, ध्यान हमारा दुराचरण में कभी अटक ना पाये । जिधर आपकी दृष्टि जाय, हो जाये तीरथ धाम, प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्री को सबका नम्र प्रणाम । FREE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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