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________________ अभिनन्दन -श्रावक 'श्री छगन' ओ! धर्म प्राण ! ओ तप्त त्राण ! गुण रत्न खांण अभिनन्दन है। ओ! दिप्त भाँण ओ शांत प्राण, वैराग्य खांण शत वन्दन है । तुम आगम ज्योति उजागर हो। ज्योतिर्मय गरिमा गागर हो। कवितव्य हृदय रस सागर हो । ओ ! ज्ञानवान चारित्रवान, दर्शननिधान अभिनन्दन है। ओ! दिप्त भांण, ओ शांत प्राण, वैराग्य खांण शत वन्दन है । विनयी हो सौम्य स्वभाव मयी। मधुरिम वाणी अभिमान नहीं । परदुःखकातर वात्सल्यमयी ।। ओ! नीतिवान ओ रीतिवान, ओ कीर्तिवान अभिनन्दन है। ओ! दिप्त भांण, ओ शांत प्राण वैराग्य खांण शत वन्दन है । है विकथा का लवलेश नहीं । स्व-श्लाघा मन अवशेष नहीं । रति अविरति कुछ शेष नहीं । अवमान् मान मन क्लेश नहीं ॥ ओ! त्यागवान, विरागवान, अनुरागवान अभिनन्दन है। ओ! दिप्त भांण ओ शांत प्राण वैराग्य खांण शत वन्दन है । हो प्रोढ़ा पर गतिशीला हो । स्वाध्याय ध्यान लवलीना हो । तन रुग्ण आत्मबलशीला हो। ओ! धैर्यवान ओ शौर्यवान, गाम्भीर्यवान अभिनन्दन है। ओ ! दिप्त भांण ओ शांत प्राण वैराग्य खांण शत वन्दन है ।। वन्दन है बारम्बार तुम्हें । शत आयु हो अभिलाष हमें । सज्जन हो सज्जन चरणों में। "छगन" शीश पुनि-पुनि नमे ॥ ओ! "खरतर" की जागृत ज्योति बार-बार अभिनन्दन है। ओ! दिप्त भांण, और शांत प्राण, वैराग्य खांण शत वन्दन है । ( ४१ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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