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खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनाएँ
॥ श्री कन्हैयालालजी लोढा
आपके जीवन में झाँका जावे तो आपकी शासन महासती श्री सज्जनश्रीजी अपने नाम के सेवा, धर्म के प्रति गहरो निष्ठा ही दृष्टिगोचर होती अनुरूप ही सज्जनता की प्रतिमा है। तप, त्याग, है, तथा आध्यात्मिकता एवं सत्य, अहिंसा का अद्सेवा, सदाचरण, संयम आपके जीवन का मूल मंत्र भुत समन्वय प्रतीत होता है। है । आप प्रकृति से सरल, मन से उदार हैं । आप आपश्रीजी का जीवन, कमल की भाँति, राग-द्वेष, मोह के जीतने के लिए सतत प्रयत्नशील पर्वतशिखर पर चढ़ने वाले यात्री की भाँति सदा रहती हैं, चाहे जैसी प्रतिकूल परिस्थिति हो आपकी निर्लिप्त, सतत जाग्रत और उच्चतम ध्येय के प्रति शान्ति अक्ष ण्ण रहती है। आप दिखावा, भीड़- केन्द्रित तथा गतिशील रहता है। भाड से दूर रहने वाले हैं। आप सरलता, नम्रता जिस प्रकार मौन उषा, अपने कर में सुन्दर करुणा की साक्षात मूर्ति ही हैं। आपका व्यक्तित्व पुष्पमाला से सजी सुनहरी लाली लेकर पृथ्वी का प्रभावक व प्रेरणादायक है । आप दीर्घायु हों, शासन अभिषेक करने आती है, ठीक उसी प्रकार आपश्री की सेवा करते रहें, यही शुभ भावना है। 0 जी अपने स्वर्ण कुम्भ से सत्य, अहिंसा का शीतल डॉ० सू०प्र० वर्मा दल्ली राजहरा/म०प्र०) अमृत पान कराती रहती हैं। आपके जीवन की
' शतायुता की मंगल कामना करते हैं। प्रवर्तिनी सज्जनश्रीजी महाराज का तपोमय जीवनरूपी स्वर्ण, उत्कृष्ट साधना की प्रचण्ड भट्टी
श्री मोहनजी सोनी (कवि एवं गीतकार) में तपकर, विशुद्ध, कुन्दन बना है। आप अदम्य
दानीगेट, उज्जैन। इच्छाशक्ति, अतुलनीय प्रभुभक्ति, औदार्य, आत्मचिन्तन, तपस्विता, तीक्ष्ण बुद्धिमत्ता, दूरगामी
परमपिता परमात्मा जब अपना कोई सन्देश कल्पनाशक्ति से सम्पन्न नीति प्रीति परमार्थ के
हम पृथ्वीवासियों तक पहुँचाना चाहता है तो वह
महान् सन्तों के द्वारा पहुँचाता है। ऐसी ही पूज्यप्रकाश ज की प्रतीक, परहिताकांक्षी, सरलता की
वर्या, प्रवर्तिनी महोदया, प्रातःस्मरणीया, वन्दनीया, प्रतिमूर्ति, सौम्य सौजन्य, संकल्प की दृढ़ता, संतुलित
चिन्तनशीला, विदुषोवर्या, कवयित्री, संगीतसारिका, दिनचर्या एवं मधुर वातावरण की प्रणेता आदि गणों से सम्पन्न हैं । आप में, तर्क की सूक्ष्मता,
विनयवती, निरभिमानी, मधुर भाषिणी, वात्सल्यविषय प्रतिपादन की क्षमता, विचारों की स्पष्टता,
हृदया और सर्वभूतेषु मैत्री की कल्याणमयी भावना भावों की कोमलता, व्यवहार की सरलता, दुखियों
से ओतप्रोत तथा सरलता की प्रतिमूर्ति श्रीसज्जन
श्री महाराज साहब को वीर प्रभु की सन्देश वाहिका के प्रति सहानुभूति आदि गुण इतने स्वाभाविक रूप
के रूप में पाकर, सम्पूर्ण जैन और जैनेतर समाज में हैं कि आपके सम्पर्क में आने वाला व्यक्ति सहज
अपने भाग्य की सराहना करता है । विलक्षणता की ही आकृष्ट हो जाता है।
प्रतिमूर्ति, मूर्तिमंत अध्यात्मज्ञान गंगा, सात्विक आपके उद्बोधन से यह परिलक्षित होता है, मनीषी और हम सबकी पूज्या, आपको कोटिशः कि “आज का मानव अज्ञान से परेशान नहीं, वह वन्दन एवम अभिनन्दन । तो गलत ज्ञान से परेशान है।"
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